महाश्वेता और दलित लेखिकाओं को DU के सिलेबस में वापस लाएं, अरुंधति-शबाना व रोमिला सहित 1 हजार बुद्धिजीवियों ने उठाई मांग
दिल्ली यूनिवर्सिटी के सिलेबस से महाश्वेता देवी और दो अन्य दलित लेखिकाओं को हटाए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है, पांचवें सेमेस्टर के अंग्रेजी पाठ्यक्रम से इन्हें हटाने पर विवि को ।विरोध का सामना करना पड़ रहा है..
जनज्वार। दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) के सिलेबस से महाश्वेता देवी और दो अन्य दलित लेखिकाओं को हटाए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। डीयू को दो दलित लेखकों के साथ प्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता को पांचवें सेमेस्टर के अंग्रेजी पाठ्यक्रम से हटाने पर विरोध का सामना करना पड़ रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अब देशभर के हजारों बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों सहित कई दलित अधिकार संगठनों ने हस्ताक्षर के साथ राष्ट्रपति और डीयू के कुलपति को ज्ञापन भेज इन तीनों को फिर से सिलेबस में शामिल करने की मांग की है।
इन लोगों ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सिलेबस में दो दलित लेखिकाओं (बामा और सुखीरथरानी) और महाश्वेता देवी की वापसी की मांग उठाई है। इसे लेकर देश के 1,150 हस्ताक्षरकर्ताओं ने डीयू के कुलपति के साथ राष्ट्रपति से हटाई गई महिला लेखकों को बहाल करने के लिए याचिका दायर की है।
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हस्ताक्षर करने वालों में लेखिका अरुंधति रॉय, स्कॉलर राम चंद्र गुहा, लेखक विक्रम चंद्रा व पेरुमल मुरुगन, अभिनेत्री शर्मिला टैगोर व नंदिता दास, स्कॉलर रोमिला थापर व जयति घोष सहित 1150 बुद्धिजीवी, कलाकार और लेखक-स्कॉलर शामिल हैं। साथ ही अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच, एशिया दलित अधिकार मंच, बांग्ला दलित साहित्य संस्था और दलित मानवाधिकार के लिए राष्ट्रीय अभियान सरीखे दलित संगठनों द्वारा भी हस्ताक्षर किए गए हैं।
याचिका पर हस्ताक्षरकर्ताओं ने अपने संयुक्त बयान में कहा, "1947 के दशकों बाद अनुवाद और अंग्रेजी में भारतीय साहित्य को डीयू के अंग्रेजी सिलेबस के उपनिवेशित परिसर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी। क्या लेखकों की जाति, वर्ग और लिंग के संदर्भ में और उनके द्वारा जीवंत किए गए संसार के संदर्भ में प्रक्रिया को रोक दिया जाना चाहिए? हम विवि से अपने फैसले पर फिर से विचार करने का आग्रह करते हैं।"
बयान में आगे कहा गया है कि "हटाए गए ग्रंथ मौलिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे दलित और आदिवासी समुदायों के प्रणालीगत उत्पीड़न को महसूस करने में मदद करते हैं। खासकर लिंग के संदर्भ में…और हमारे समकालीन लोकाचार और राजनीति की बेहतर प्रशंसा प्रदान करते हैं। क्या यह ऐसा कुछ नहीं है, जिसे स्वतंत्र भारत के युवा पुरुषों और महिलाओं को जानने और उनसे जुड़ने की जरूरत है? एक बेहतर और समान दुनिया का निर्माण कैसे होगा? या क्या हम विरोध करने वाली महिला और आदिवासी को दिल्ली विवि 2021 के पाठ्यक्रम की परिधि में वापस ला रहे हैं? हम किससे डर रहे हैं?"
बता दें कि इन तीनों को सिलेबस से हटाए जाने के बाद डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने आलोचना का जवाब देते हुए कहा था कि पाठ्यक्रम "समावेशी" था, लेकिन उन्होंने कहा कि "विवि इस विचार की सदस्यता लेता है कि अध्ययन के एक भाषा पाठ्यक्रम में पाठ का हिस्सा बनने वाली साहित्यिक सामग्री में ऐसी सामग्री होनी चाहिए जो किसी भी व्यक्ति की भावना को चोट न पहुंचाए।"
इसी बीच, दक्षिणपंथी शिक्षकों के समूह एनडीटीएफ ने कहा कि "हिंदू धर्म और हमारी प्राचीन सभ्यता को बदनाम करने, सामाजिक जातियों के बीच दुश्मनी को कायम रखने, आदिवासियों के बीच उग्रवादी माओवाद और कट्टरवाद को प्रोत्साहित करने आदि" का प्रयास किया गया था।
बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) की ओवरसाइट कमेटी द्वारा जानी-मानी लेखिका महाश्वेता देवी की शार्ट स्टोरी को अंग्रेजी के सिलेबस से हटा दिया गया है। इसके साथ ही दो दलित लेखकों की रचनाओं को भी सिलेबस से हटा दिया गया है। ओवरसाइट कमिटी का तर्क है कि यह महज सिलेबस रिवीजन भर है, जिसके तहत कुछ पुरानी चीजें हटाई जाती हैं और नई चीजें जोड़ी जाती हैं।
वहीं यूनिवर्सिटी एकेडमिक काउंसिल के कुछ सदस्यों का आरोप है कि ऐसा करने के लिए ओवरसाइट कमिटी द्वारा कोई तर्क नहीं दिया गया है। बुधवार 25 अगस्त को एकेडमिक काउंसिल की संपन्न हुई मीटिंग में काउंसिल के 15 सदस्यों ने इसको लेकर अपना विरोध दर्ज कराया है। इन सदस्यों ने ओवरसीज कमेटी के काम करने के तरीके पर असहमति दर्ज कराई।
डीयू की एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में इन 15 एसी मेंबर्स ने असहमति पत्र दिया। इन एसी मेंबर्स ने कहा है कि लर्निंग आउटकम्स बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (LOCF) इंग्लिश सिलेबस में काफी छेड़छाड़ की गई है और उसके पीछे तर्क भी नहीं दिया गया है। यह सेमेस्टर 5 का सिलेबस है।