स्कूली पाठ्यक्रमों से हटा दिए गए दलितों-अल्पसंख्यकों से जुड़े अध्याय, बच्चे नहीं जान पाएंगे आश्रम, वर्ण और जाति का इतिहास

एनसीईआरटी ( NCERT ) द्वारा पिछले आठ साल के दौरान हटाये गए चैप्टर्स को साल 2007 में 'एक न्यायपूर्ण समाज की भावना का निर्माण' करने के लिहाज से पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया गया था।

Update: 2022-06-19 13:15 GMT

नई दिल्ली। मोदी राज ( Modi Raj ) में कक्षा छह से 12 की पाठ्य पुस्तकों ( Text Books ) में अब तक शामिल विविधता और भेदभाव, आश्रम व्यवस्था ( Ashram System ), वर्ण व्यवस्था ( Varna System ) और जाति प्रथा ( Caste System ) से संबंधित अध्यायों को एक-एककर पिछले आठ साल में हटा दिए गए हैं। इस बात का खुलासा इंडियन एक्सप्रेस की पड़ताल में हुआ है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान परिषद ( NCERT ) ने कक्षा 6-12 की किताबों में कई चैपटर्स में बदलाव किए हैं। इन कक्षाओं की पाठ्य पुस्तकों में शामिल दलितों ( Dalit ) और अल्पसंख्यकों ( Minority ) पर आधारित वाक्य हटा दिए गए हैं। इस बारे में NCERT ने जो सफाई दी है वो समझ से परे लगता है।

एनसीईआरटी ( NCERT) की इस पहल से साफ है कि जातीय आधार पर भेदभाव वाले वाक्य जैसे "एक दलित के पारंपरिक व्यवसायों जैसे खेतों में मजदूरी करना, मैला ढोने या चमड़े के काम तक सीमित रहने की संभावना है …" अल्पसंख्यकों को "इस रिस्क का सामना करना होगा कि बहुसंख्यक समुदाय राजनीतिक सत्ता पर कब्जा कर लेगा और उनके धार्मिक या सांस्कृतिक संस्थानों को दबाने के लिए राज्य की मशीनरी का उपयोग करेगा …" अब स्कूली पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है। खास बात ये है कि ये बदलाव पीएम मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए के सत्ता में आने के बाद हुआ। पिछले आठ साल के दौरान हटाये गए चैप्टर्स को साल 2007 में 'एक न्यायपूर्ण समाज की भावना का निर्माण' करने के लिहाज से पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया गया था।

बदलाव के पीछे एनसीईआरटी के तर्क

राष्ट्रीय शैक्षणिक एवं अनुसंधान परिषद ( NCERT ) ने इसके पीछे तर्क दिया है कि इस अभ्यास का उद्देश्य छात्रों को कोविड की वजह से हुए नुकसान को जल्द रिकवरी करने के लिए सिलेबस के भार को कम करना है। ताकि छात्र जल्दी से जल्दी अपने सिलेबस को पूरा कर सकें। हालांकि इसके पहले भी जातियों के कंटेंट को लेकर एनसीईआरटी सुर्खियों में रहा है।

NCERT ने क्या-क्या हटा दिए

कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन के दौरान दलित आइकन बी आर अंबेडकर पर एक कार्टून के विरोध के बाद 11वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया था। पिछले साल भाजपा नेता विनय सहस्रबुद्धे की अध्यक्षता वाले एक थिंक-टैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकें जाति पर अधिक ध्यान देती हैं। कक्षा 6 की इतिहास की किताब ('हमारा इतिहास – I') में वर्णों पर सेक्शन को आधा कर दिया गया है। वर्णों की वंशानुगत प्रकृति, अछूतों के रूप में लोगों का वर्गीकरण और वर्ण व्यवस्था से जुड़े चैप्टर 'राज्य, राजा और एक प्रारंभिक गणराज्य' किताब से हटा दिए गए हैं। कक्षा 6 के इतिहास की पाठ्यपुस्तक के अध्याय 6 में "आश्रम – पुजारियों द्वारा परिभाषित जीवन के चार चरणों के खंड से भी कुछ अंश हटा दिए गए हैं। कक्षा 6 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ('सामाजिक और राजनीतिक जीवन – भाग I') में 'विविधता और भेदभाव' शीर्षक वाले अध्याय में भेदभाव पर सेक्शन का एक बड़ा हिस्सा हटा दिया गया है।

मनुवादी व्यवस्था को बनाए रखना BJP-RSS की साजिश

सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ( Atul Anjaan) का कहना है कि तार्किक विषयों को पाठ्य पुस्तकों से हटाना पुरातनपंथी जाति व्यवस्था को बनाए रखने की प्रक्रिया का हिस्सा माना जाएगा। एनसीईआरटी ( NCERT ) केवल स्कूली बच्चों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करने या पुस्तक लिखने की संस्था मात्र नहीं है। एनसीईआरटी के पास भारतीय समाज, इतिहास, राजनीति, व जीवन के सभी पहलुओं को लेकर वर्षों का अनुभव और वैज्ञानिक सोच है। एनसीईआरटी में शामिल सभी विषय आदर्श समाज के निर्माण करने में सहायक हैं। उसे हटना या उसमें संशोधन करना निश्चित रूप से वर्ण व्यवस्था को और मजबूत रखने का दृष्टिकोण होगा। अगर ऐसा हो रहा है तो यह भाजपा और आरएसएस ( BJP-RSS ) की पुरातनपंथी सोच को बनाए रखने की राजनीति है। आरएसएस मनुवादी व्यवस्था ( Manuvadi system ) को हर हाल में बनाए रखना चाहती है।

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि हमारा दृष्टिकोण किसी तरह की जातिवादी, वर्णवादी व्यवस्था के खिलाफ है। उन्होंने नव अंबेडकरवादियों को भी सचेत करते हुए कहा कि अगर आप अपनी जाति की बात करेंगे तो कांउटर में दूसरी जाति का अस्तित्व ही मजबूत होगा। कर्नाटक के मंत्री ईश्वरप्पा के बयानों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में उन्होंने कहा था कि वर्तमान व्यवस्था हमारे हितों के अनुकूल नहीं है। ऐसे में सवाल यही उठता है कि क्या वो मनुवादी या पुरातन जातिवादी व्यवस्था को बनाए रखना चाहते हैं। अगर नहीं, तो नई पीढ़ी के बच्चे को स्कूलों में जाति, वर्ण व अल्पसंख्यवाद की कमियों के बारे में जागरूक करना जरूरी है। ऐसा इसलिए कि जब वो इन बुराइयों को जानेंगे तभी उससे दूर रहने का प्रयास भी करेंगे। सामाजिक बुराइयों के बारे में नई पीढ़ी के बच्चे जानकारी नहीं देने का मतलब होगा उन्हें वर्तमान व्यवस्था का पोषक बनाना।

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