छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार पर मीडिया को डराने-धमकाने के आरोप, कई पत्रकार हैं जेल में बंद
छत्तीसगढ़ में मीडिया परिदृश्य की चिंताजनक हालात पर फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट...
रायपुर (छत्तीसगढ़) : एक पुरानी कहावत है - दो गलतियाँ मिलकर एक सही नहीं हो जाती हैं। अनुभवी पत्रकार प्रदीप सौरभ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी (फैक्ट फाइंडिंग) टीम ने छत्तीसगढ़ की अपनी लगभग सप्ताह भर की यात्रा के दौरान यह पता लगाया। वरिष्ठ पत्रकार अजय झा और यशवंत सिंह उस टीम के दो अन्य सदस्य थे, जिसने छत्तीसगढ़ प्रशासन के आतंक के खिलाफ बढ़ती शिकायतों का सच जानने के लिए रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर और बस्तर का दौरा किया। रायपुर स्थित पत्रकार सुनील नामदेव और नीलेश शर्मा की गिरफ्तारी ने इन चिंताओं को और बढ़ा दिया था।
अपनी जांच के दौरान टीम ने पाया कि छत्तीसगढ़ सरकार अनुकूल मीडिया कवरेज सुनिश्चित करने और अपने कथित गलत कामों पर नकारात्मक रिपोर्टिंग को रोकने के लिए ललचाने और हड़काने का तरीका अपनाती है। अनुकूल कवरेज के लिए पत्रकारों और मीडिया संगठनों को तो प्रोत्साहन दिया जाता है, लेकिन अनुकूल रिपोर्टिंग की शर्तें नहीं मानने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी की जाती है।
हिंदी चैनल आज तक के रायपुर स्थित पूर्व पत्रकार सुनील नामदेव का मामला इसी नीति का उदाहरण है। शुरू में राज्य सरकार के साथ उनके मधुर संबंध थे, लेकिन जब संबंधों में खटास आई तो स्थिति बिगड़ गई। वैसे तो वरिष्ठ नौकरशाहों और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ व्यक्तिगत हमलों तक की उनकी अनैतिक पत्रकारिता की सराहना नहीं की जा सकती है, लेकिन उनके खिलाफ की गई अधिकारियों की कार्रवाई बेहद निंदनीय है।
टीम ने रायपुर के बाहरी इलाके में नामदेव के ध्वस्त कर दिये गये घर का दौरा किया और उनकी पत्नी से मुलाकात की, जो इस चिलचिलाती गर्मी में टेंट में रहने को मजबूर हैं। लगता है कि विध्वंस के पीछे पत्रकार को चुप कराने का कोई निजी एजेंडा था। अगर मकान अनधिकृत था तो पूरे मोहल्ले में ऐसी ही कार्रवाई होनी चाहिए थी। यह समझना मुश्किल है कि केवल एक खास घर को ही अवैध क्यों माना गया जबकि पड़ोस के घर अछूते रहे।
घर गिराना एकमात्र मुद्दा नहीं था; नींव की भी खुदाई की गई। मौके पर टीम का सामना एक राजमिस्त्री से हुआ जो मरम्मत के काम कर रहा था और पुलिस को नामदेव की जेब में प्रतिबंधित नशे का पैकेट रखते हुए देखा है। इसके बाद नामदेव को नशीली दवा रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। किसी पत्रकार को मादक पदार्थों की तस्करी में फंसाना अनुचित है। वह भी तब जब उसके अपराध की सजा दिलाने के लिए कानूनी रास्ते उपलब्ध हैं। राजमिस्त्री ने अदालत में गवाही देने और सच बताने की अपनी तैयारी भी व्यक्त की। लेकिन सच बोलने पर उत्पीड़न या गिरफ्तारी की आशंका भी जताई।
यह दिलचस्प है कि नामदेव के सहयोगी वीडियो पत्रकार साजिद को भी उसी रात गिरफ्तार किया गया था, जब टीम ने नामदेव के ध्वस्त घर का दौरा किया था। टीम को पता चला कि साजिद नामदेव के वीडियो पर आपत्ति जताता था और नामदेव के वीडियो से काफी सामग्री हटा देता था, फिर भी उसे केवल नामदेव के साथ काम करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया।
नामदेव की पत्नी ने अपने पति की जान को लेकर डर जताया, खासकर 31 मई 2023 को उनकी दूसरी गिरफ्तारी के बाद, जो कथित तौर पर सुबह में हुई थी, जबकि पुलिस रिकॉर्ड में दिन में गिरफ्तारी दिखाई गई है। जाहिर है, नामदेव को निशाना बनाने का कारण यह है कि पहली गिरफ्तारी के बाद उन्होंने सबक सीखने से इनकार कर दिया था कि सरकार के खिलाफ किसी भी नकारात्मक रिपोर्टिंग को दंडनीय पाप माना जाता है।
एक पत्रिका का प्रकाशन करने वाले नीलेश शर्मा का परिवार डर के मारे छिप गया है और उनका पता नहीं चल सका। उसे सिर्फ इसलिए गिरफ्तार किया गया, क्योंकि वह लगातार सुनील नामदेव के संपर्क में रहता था।
अगले दिन, टीम ने नामदेव और शर्मा से मिलने का प्रयास किया, जो रायपुर से गिरफ्तार किये जाने के बाद बिलासपुर सेंट्रल जेल में कैद हैं। वैसे तो टीम के प्रति जेल अधिकारी का व्यवहार सम्मान वाला था, लेकिन उन्होंने मुलाकात की अनुमति देने से इनकार कर दिया। उनका दावा था कि राज्य में फैक्ट फाइंडिंग टीम के आने की जानकारी उन्हें पहले से थी और जब वह जेल परिसर में पहुंची तो उन्हें सतर्क कर दिया गया। उन्होंने कहा कि उच्च अधिकारियों से उन्हें मुलाकात से इनकार करने का निर्देश मिला है।
पीड़ितों/अभियुक्तों से मुलाकात से इनकार करने की राज्य सरकार की कार्रवाई अस्वीकार्य है। अगर उनके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है तो मिलने नहीं देने का कोई कारण नहीं है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि टीम की गतिविधियों पर राज्य के अधिकारियों द्वारा निगरानी रखी जा रही थी। ये कार्रवाइयां संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं।
छत्तीसगढ़ में पत्रकारों से चर्चा में उनके बीच व्याप्त भय की व्यापक भावना का पता चला। वे बात करने के लिए तैयार थे, लेकिन नाम न छापने पर जोर दिया, उन्हें डर था कि सरकार के खिलाफ गवाही देने पर उन्हें पुलिस हिरासत या जेल में डाला जा सकता है। वे निरंतर भय में रहते हैं, उनकी आवाज़ बंद कर दी गई है और उनकी कलम अक्षम बना दी गई है। सरकारी इच्छा के अनुपालन को विभिन्न तरीकों से पुरस्कृत किया जाता है।
स्थानीय अधिकारियों के संभावित हस्तक्षेप के कारण, फैक्ट फाइंडिंग टीम को आखिरकार अपने दौरे के अंत में एक प्रेस कांफ्रेंस में अपनी रिपोर्ट जारी करने का विचार छोड़ना पड़ा। ऐसा संभव प्रतीत हुआ कि अधिकारियों द्वारा स्थानीय पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से दूर रहने या दंडनीय कार्रवाई के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया जाएगा।
फैक्ट फाइंडिंग टीम का निष्कर्ष है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अपनाई गई ललचाने और हड़काने की नीति मीडिया की स्वतंत्रता के लिए सीधा खतरा है। मीडिया एक दर्पण के रूप में काम करता है जिसे अपने सामने आने वाली घटनाओं के आधार पर अच्छे, बुरे और बदसूरत को प्रतिबिंबित करना चाहिए। हालाँकि, यह किसी भी कारण से स्थापित मीडिया नैतिकता और मानदंडों की अवहेलना करने वाले पत्रकारों को उचित नहीं ठहराता है।
साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार मीडिया को डराने-धमकाने और उसका गला घोंटने की कोशिश की दोषी है। टीम राज्य सरकार से निराधार आरोपों पर गिरफ्तार किए गए सभी पत्रकारों को तुरंत रिहा करने और केंद्रीय जांच ब्यूरो जैसे संगठन द्वारा एक स्वतंत्र और सक्षम जांच शुरू करने का आह्वान करती है। इस तरह की जांच से सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को जेल में डालने और विधानसभा चुनावों तक दूसरों को सख्त चेतावनी देने की सरकार की योजना जिससे मीडिया में उनके कुकर्मों के उजागर होने से रोका जा सके - जैसे सभी आरोपों का समाधान होना चाहिए। टीम भारतीय प्रेस परिषद, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, केंद्रीय गृह मंत्रालय और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अलावा मीडिया यूनियनों और संघों से तत्काल हस्तक्षेप की मांग करती है।