Coal Shortage In India : बिजली के लिए कोयला व जल आधारित 82% ऊर्जा संयंत्रों पर हमारी निर्भरता, वैकल्पिक उर्जा का नहीं हुआ अपेक्षित विस्तार

Coal Shortage In India : देश में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से 60 से ज्यादा ऐसे हैं, जहां कोयले का स्टॉक खत्म होने वाला है, केवल 2-4 दिन का ही स्टॉक बचा है।

Update: 2021-10-12 10:06 GMT

(भारत में होता है 1,70,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन)

Coal Shortage In India। देश अभूतपूर्व बिजली के संकट (Electricity Crisis) से जूझ रहा है। जिसके अभी कई महीनों तक बरकरार रहने के आसार हैं। दूसरी तरफ धरातल पर हकीकत है कि दुनिया के विकसित व विकासशील देशों (Devloped And Devloping Countries) के गणना में भारत में बिजली की खपत काफी कम है। बिजली उत्पादन (Electricity Production) का अधिकांश हिस्सा (60 फीसदी से अधिक) कोयला और भूरा कोयला (लिग्नाइट) से पैदा होता है, जबकि जल विद्युत परियोजनाओं से लगभग 22 फीसदी बिजली का उत्पादन होता है। ऐसे में बिजली के लिए कोयला व जल आधारित 82 प्रतिशत ऊर्जा संयंत्रों पर हमारी निर्भरता बनी हुई है। जिसका नतीजा है कि कोयला का संकट (Coal Crisis) गहराते ही बिजली को लेकर देश में हाहाकार मच गया है।

देश में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट में से 60 से ज्यादा ऐसे हैं, जहां कोयले का स्टॉक खत्म होने वाला है, केवल 2-4 दिन का ही स्टॉक बचा है। अगर ऐसा हुआ तो देश के कई हिस्सों में अंधेरा छा जाएगा और इनमें राजधानी दिल्ली भी शामिल होगी। यूपी, बिहार में इसका असर दिखने लगा है। हाल यह है कि भारत में 1,70,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। जब 1947 में देश आजाद हुआ था, उस समय सिर्फ 1362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था। लगातार बिजली की मांग होने के बावजूद भारत में प्रति व्यक्ति सबसे कम बिजली की खपत होती है। पूरी दुनिया में औसतन बिजली की खपत 2429 यूनिट है जबकि भारत में यह 734 यूनिट है।

उधर कनाडा (Canada) में बिजली की खपत सबसे अधिक 18, 347 यूनिट है जबकि अमरीका में यह 13,647 यूनिट और चीन में 2456 यूनिट है। भारत में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत इतना कम है जबकि हर साल उसकी मांग में सात फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। उद्योग और व्यापार की तुलना में बिजली की खपत घरेलू और कृषि उत्पाद में ज्यादा होती है। वर्ष 1970-71 में उद्योग जगत 61.6 फीसदी बिजली खपत करता था जो वर्ष 2008-09 में घटकर 38 फीसदी हो गया। भारत में स्वतंत्रता के समय से ही बिजली की भयंकर कमी रही है जबकि इसके उत्पादन में आठ फीसदी की दर से बढ़ोतरी होती रही है। नीति आयोग के अनुसार पीक समय में बिजली की कमी दस फीसदी होती है जबकि समान्यतया 7 फीसदी बिजली की कमी होती है।

बीते दो महीनों में ही बिजली की खपत 2019 के मुकाबले में 17 प्रतिशत बढ़ गई है. इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फीसदी तक बढ़े हैं जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है। भारत में यूं तो दुनिया में कोयले का चैथा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन खपत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नंबर पर है।

उधर हाल यह है कि भारत में कुल संघीय पूंजी का 15 फीसदी या उससे अधिक राशि बिजली उत्पादन पर खर्च किया जाता है तब भी बिजली का हाल इतना बुरा है। राज्यों का विद्युत बोर्ड पूरी तरह कंगाल हैं, कोयले की भारी कमी है, सब्सिडी का कोई उपयुक्त तरीका नहीं है, अमीर सब्सिडी से सबसे अधिक लाभ पाते हैं, बिजली की चोरी होती है, नीति आयोग के अनुसार 'उत्पादन से ज्यादा वितरण में परेशानी' है। वितरण और पारेषण में वर्ष 1995-96 में 22 फीसदी का क्षरण हुआ था जबकि 2009-10 में यह बढ़कर 25.6 फीसदी हो गया। कमोबेश यही आंकड़ा अभी बरकरार है। जम्मू कश्मीर, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक विद्युत क्षरण होता है।

मांग के अनुसार वैकल्पिक उर्जा का नहीं हुआ विस्तार

बिजली संकट गहराने के बाद एक बार फिर वैकल्पिक उर्जा के स्रोतों के विस्तार पर चर्चा शुरू हो गई है। एक वर्ष पूर्व री-इन्वेस्ट (Re-Invest) के तीसरे संस्करण के दौरान प्रतिनिधि राष्टों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने कहा था कि आज भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में विश्व में चैथे स्थान पर पहुंच गया है और दुनिया के सबसे तेज नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन वाले देशों में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable Energy) उत्पादन क्षमता वर्तमान में बढ़ते हुए 136 गीगावॉट हो गई है जो कि हमारे कुल ऊर्जा क्षमता का 36 प्रतिशत है। 2022 तक, अक्षय क्षमता का हिस्सा बढ़कर 220 गीगा वॉट हो जाएगा। भारत लगातार नवीनीकरणीय क्षेत्र में निवेश का पसंदीदा स्थल बनता जा रहा है। पिछले 6 वर्षों के दौरान भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 5 लाख करोड़ रुपये यानि 64 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है।

यह गौर करने वाली बात है कि पिछले 150-200 वर्षों में मनुष्य ने ऊर्जा जरुरतों को पूरा करने के लिये पृथ्वी की सतह के नीचे दबे संसाधनों पर भरोसा किया है। जलवायु परिवर्तन (Paris Climate Change Agreement) पर पेरिस समझौते के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित हमारे योगदानों और एक स्वच्छ ग्रह के प्रति हमारी जिम्मेदारी को ध्यान में रखते हुए भारत ने संकल्प लिया है कि 2030 तक बिजली उत्पादन की हमारी 40 फीसदी स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी। साथ ही यह भी निर्धारित किया गया है कि 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी।

इसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायो-पावर से 10 गीगावाट और छोटी पनबिजली परियोजनाओं से 5 गीगावाट क्षमता शामिल है। हालांकि सरकारी दावों के सापेक्ष प्रगति निराशाजनक है। जानकारों का मानना है कि योजनाओं की घोषणा के तुलना में अमल उतनी नहीं दिखती है। इसके पीछे अफसरशाही के साथ ही भ्रष्टाचार बड़ा सवाल बना हुआ है। जिससे छूटकारा पाए बिना किसी भी योजना को लागू करन पाना आसान नहीं है।

उधर वैकल्पिक ऊर्जा के विकास के लिए देश में योजनाओं की कमी नहीं है। सरकारी योजनाओं पर गौर करें तो गोबर्धन योजना पशुओं से प्राप्त गोबर और ठोस अपशिष्ट को उपयोगी कंपोस्ट, बायोगैस और बायो-सीएनजी में बदलने पर ही केंद्रित है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय देश में बायोमास से बिजली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कई कार्यक्रम चला रहा है। इसका उद्देश्य देश में उपलब्ध बायोमास संसाधनों जैसे- गन्ने की खोई, चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल आदि का उपयोग बिजली उत्पादन में करना है। नीति आयोग भी कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस को मेथनॉल में बदलने की योजना पर विचार कर रहा है। ऐसा होने पर घरेलू रसोई गैस की खपत कम होने की उम्मीद की जा सकती है।

इसी क्रम में पूर्वी असम के डिब्रूगढ़ (Dibrugarh) जिले के नामरूप में असम पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड (Assam Petro- Chemicals Ltd.) द्वारा पायलट परियोजना के हिस्से के रूप में मेथनॉल गैस पर आधारित खाना पकाने के स्टोव का निर्माण किया गया। यह परियोजना खाना पकाने वाले ईंधन से शुरू हुई है, जो महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये एक नई पहल है। नीति आयोग (NITI Aayog) के अनुसार, 'मेथनॉल एक स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन' है जिसके द्वारा 2030 तक कच्चे तेल के आयात में 10 फीसदी तक की कमी आ सकती है। पिछले दिनों दुनिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क 'शक्ति स्थल' कर्नाटक के पावागढ़ में बनाया गया है। साथ ही देश के 21 राज्यों में कुल 26,694 मेगावाट क्षमता के 47 सौर पार्क स्थापित करने को मंजूरी मिली है।

इन सबके बीच कहने के लिए तो भारत कुल स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता और सौर ऊर्जा (Solar Energy) के लिहाज से विश्व में पाँचवें स्थान पर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में चैथे स्थान पर है।लेकिन बड़ी आबादी के कारण मांग के अनुसार यह उत्पादन काफी कम है। जिसका नतीजा है कि हम कोयला व पनबिजली परियोजनाओं पर ही अभी भी निर्भर होकर रह गए हैं।

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