Corruption in Namami Gange Project : इलाहाबाद HC का बड़ा फैसला, पूछा - अडाणी की कंपनी से ऐसे करार की जरूरत क्या है, क्यों न बंद कर दें UPPCB?

Corruption in Namami Gange Project : गंगा की सफाई के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अडानी की कंपनी चला रही है। करार है कि किसी समय प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आया तो उसे शोधित करने की जवाबदेही अडाणी की कंपनी की नहीं होगी।

Update: 2022-07-29 08:56 GMT

Corruption in Namami Gange Project : गंगा प्रदूषण मामले की सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High court ) में चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। इस खुलासे को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक आदेश दिया है। साथ ही ये भी कहा कि गंगा की सफाई के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अडानी की कंपनी चला रही है। करार है कि किसी समय प्लांट में क्षमता से अधिक गंदा पानी आया तो उसे शोधित करने की जवाबदेही नहीं अडाणी की कंपनी ( Adani company ) की  होगी। करार की इस शर्तों को सुनकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज भौचक्के रह गए। इस पर हाईकोर्ट ने सख्त नाराजगी जाहिर करते हुए चौंकाने वाली टिप्पणी की है।

क्यों न बंद कर दें यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की पूर्णपीठ चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एमके गुप्ता और जस्टिस अजित कुमार ने कहा कि अडाणी की कंपनी से ऐसे करार से तो गंगा साफ होने से रही। कोर्ट ने कहा ऐसी योजना बन रही जिससे दूसरों को लाभ पहुंचाया जा सके और जवाबदेही किसी की न हो। बता दें कि राहुल गांधी पीएम मोदी पर तीन से चार पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने का लगातार आरोप लगाते आये हैं। फिलहाल, हाईकोर्ट ने कहा कि जब ऐसी संविदा है तो शोधन की जरूरत ही क्या है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर कहा कि बोर्ड साइलेंट एक्सपेक्टेटर बना हुआ है। इसकी जरूरत ही क्या है। इसे बंद कर दिया जाना चाहिए। बोर्ड एक्शन लेने में क्या डर है, कानून में बोर्ड को अभियोग चलाने तक का अधिकार है।

सीपीसीबी दे अपना सुझाव

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन को निर्देश दिया है कि वह प्रयागराज के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट व नालों के प्रदूषण की जांच कर ऐक्शन ले। साथ ही क्लीन गंगा परियोजना को लेकर अपना सुझाव भी दे। इतना ही नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जलशक्ति मंत्रालय के अंतर्गत नमामि गंगे योजना के तहत करोड़ों खर्च के बाद भी स्थिति में बदलाव न आने पर तल्ख टिप्पणी की है। कोर्ट के आदेश पर कमेटी के साथ बोर्ड ने नालों के पानी के सैंपल लिए, आईआईटी कानपुर नगर व बीएचयू वाराणसी सहित यूपीसीडा को जांच सौंपी गई। इन एजेंसियों ने रिपोर्ट में मानक व पैरामीटर का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया है। कोर्ट ने कहा जल निगम एसटीपी की निगरानी कर रहा है लेकिन उसके पास पर्यावरण इंजीनियर नहीं है।

नमामि गंगे परियोजना के डीजी से पूछे ये सवाल

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में नमामि गंगे परियोजना के महानिदेशक से पूछा है कि क्लीन गंगा के मद में कितना धन आवंटित किया गया है और यूपी को कितना धन दिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि क्या धन योजना उद्देश्य पूरा करने में ही खर्च किया गया है। भविष्य की क्या योजना है। कानपुर उन्नाव के चर्म उद्योग शिफ्ट करने पर भी केंद्र सरकार से जानकारी मांगी है। कोर्ट ने कहा कि जल निगम द्वारा प्रयागराज में आने वाली भीड़ व घरों में लगे वाटर पंप के पानी को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना में शामिल नहीं किया। केवल जल आपूर्ति व भविष्य की आबादी पर योजना लागू कर दी। ऐसी योजना का क्या फायदां

एसटीपी तो हैं ही नहीं

इससे पहले जनहित याचिका पर न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरूण कुमार गुप्ता, वीसी श्रीवास्तव, अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी, शशांक शेखर सिंह, डॉ. एचएन त्रिपाठी, राजेश त्रिपाठी सहित अन्य अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा। कोर्ट को बताया गया कि गंगा किनारे प्रदेश में 26 शहर है। अधिकांश मे एसटीपी नहीं है। सैकड़ों उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। वीसी श्रीवास्तव ने यमुना प्रदूषण का मामला भी उठाया। जहां एसटीपी है वह ठीक से काम कर रहा है कि नहीं, इसकी निगरानी नहीं की जा रही, सपा सरकार के समय चर्म उद्योगों में जीरो डिस्चार्ज योजना बनाई गई। इसे शिफ्ट करने की योजना रोकी गई। किंतु अब हलफनामे में शिफ्ट करने पर विचार करने की बात की गई है।

जल निगम का आरोप - अडानी की कंपनी बिना शोधन ले रही है पैसा

 जल निगम के अधिकारी ने बताया कि प्लांट अडानी की कंपनी चला रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड जांच कर रहा है। निगम ऑनलाइन चेक कर रहा है। हर महीने की एवरेज रिपोर्ट पेश की, जितना गंदा पानी उत्सर्जित हो रहा है उससे काफी कम क्षमता के प्लांट हैं। पानी अधिक आया तो कंपनी शोधन की जिम्मेदारी नहीं लेगी। ऐसा करार कर लिया गया है। कंपनी बिना शोधन पैसे ले रही। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपना दायित्व नहीं निभा रहा। गंदा पानी गंगा में जा रहा। कार्रवाई किसी पर नहीं हो रही है।

इसके अलावा हाईकोर्ट में बहस के दौरान डीएलडब्ल्यू व वाराणसी घाटों पर भी विचार किया गया। नालों के बायो रेमेडियल शोधन की विफलता का मुद्दा उठाया गया। अब इस मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त को होगी।

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