देश में 80% डिजिटल पेमेंट में इजाफा तो Cyber Crime 350% बढ़ा, जानें किस देश में लगता है साइबर हैकरों का मेला

Cyber Crime : एक रिपोर्ट के अनुसार, साइबर क्राइम होने के पीछे 90 प्रतिशत लोगों में जागरूकता में कमी सामने आई है। यानी लोग डिजिटल क्रांति का हिस्सा तो बन रहे हैं लेकिन जागरूक नहीं बन पा रहे हैं।

Update: 2021-10-08 15:35 GMT

मोना सिंह की रिपोर्ट

Cyber Crime जनज्वार। डिजिटल इंडिया (Digital India) पर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का फोकस हमेशा से ज्यादा रहा है। अभी हाल में ही 1 जुलाई 2021 को डिजिटल इंडिया प्रोग्राम के 6 साल पूरे हुए। इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चर्चा की। उन्होंने कोरोना में भारत के डिजिटलाइजेशन से होने वाले लाभों के बारे में बताया। बैंकों के डिजिटल ट्रांजैक्शन से लेकर डिजिटल लॉकर और आरोग्य सेतु एप पर चर्चा की। साथ ही भारत की डिजिटल टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने की बात की। यानी वे साफ-साफ डिजिटल क्रांति को बढ़ाने की बात कर रहे थे। अब देखा जाए तो ये आज के लिए भी जरूरी है। लेकिन जिस तरह से ऑनलाइन क्राइम के मामले बढ़ रहे हैं उसे रोकने के लिए कोई ठोस उपाय पर कोई बात नहीं की।

दरअसल, डिजिटल ट्रांजैक्शन (Digital Transaction) के माध्यम से कैशलेस इकोनॉमी डिवेलप करना चाहते हैं लेकिन जहां डिजिटल पेमेंट में 80 फीसदी बढ़ोतरी हुई है, वहीं साइबर क्राइम में भी 350 प्रतिशत की बढ़त हुई है। इसके बाद भी साइबर क्राइम को रोकने के लिए व्यापक स्तर पर कोई कदम उठाया नहीं जा रहा है। आलम ये है कि साइबर क्राइम के पीड़ित प्रति 10 लोगों में से सिर्फ 2 या 3 लोगों की ही शिकायत सुनी जा रही है। इनमें से भी इक्के-दुक्के मामले में ही कार्रवाई हो पा रही है. 10 फीसदी से भी कम लोगों के ठगे पैसे मिल पा रहे हैं। ऐसे में डिजिटल क्रांति की जरूरत तो है लेकिन जब उससे ठगी के मामले बढ़ जाएं तो रोकने के लिए भी सरकार को बड़े कदम उठाने की जरूरत है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, साइबर क्राइम होने के पीछे 90 प्रतिशत लोगों में जागरूकता में कमी सामने आई है। यानी लोग डिजिटल क्रांति का हिस्सा तो बन रहे हैं लेकिन जागरूक नहीं बन पा रहे हैं। क्योंकि डिजिटल पेमेंट के साथ लोगों को जागरूक करने के लिए ना तो सरकार और ना ही एजेंसी की तरफ से कोई कदम उठाया जा रहा है। यही वजह है आज क्राइम की घटना में हर तीसरा या चौथा व्यक्ति साइबर क्राइम का शिकार बन रहा है।

इस रिपोर्ट से जानिए, कैसे बढ़ रहा है साइबर क्राइम

एनपीसीआई (NPI) के आंकड़ों के अनुसार, 2020 में 4,16,176 करोड़ रुपये का डिजिटल पेमेंट के जरिए लेनदेन हुआ है। सरकार के ऑनलाइन प्रोत्साहन के कारण 2019 के मुकाबले में 2020 में ऑनलाइन लेनदेन 80 प्रतिशत बढा है। इसमें 120 फीसदी यूपीआई के जरिए बढ़ा, 73% ज्यादा पेमेंट जुलाई से दिसंबर 2020 में हुए हैं। इसके साथ साथ साइबर फ्रॉड भी 70 फीसदी बढ़ा है। जनवरी 2020 में डिजिटल भुगतान की बड़ी धोखाधड़ी क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड से हुए।

देश में 375 साइबर हमले हुए। एनसीपीआई के अनुसार साइबर ठग वैक्सीन रजिस्ट्रेशन के नाम पर आधार नंबर, बैंक खाता, एटीएम कार्ड, क्रेडिट कार्ड नंबर मांगते हैं और फिर ओटीपी मांगकर ठगी करते हैं। मोबाइल ऐप से लोन लेने के लिए जब लोग ऐप डाउनलोड करते हैं तो उस समय यूज़र की सारी फोन डिटेल हैकर्स के पास पहुंच जाती है। फेसबुक के जरिए भी ऑनलाइन ठगी हो रही है। एक और सर्वे के अनुसार, साइबर अपराधियों ने 2019 में भारतवासियों से 1.2 लख करोड़ की ठगी की।

ब्लॉक सर्वे के अनुसार, भारत के 70% लोग लोगों को पहचान के दुरुपयोग का डर है। 2019 में जहां पूरी दुनिया में 35 करोड़ लोग साइबर क्राइम का शिकार हुए हैं वहीं, भारत में 13.12 करोड़ लोग साइबर क्राइम का शिकार हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के डिजिटलाइजेशन की बात तो कर रहे हैं,लेकिन ऐसी स्थिति में साइबर ठगी से बचने के लिए क्या भारत तैयार है? क्या भारत के पास साइबर ठगी से बचने के लिए पर्याप्त जानकारियां उपलब्ध है?

आइए देखते हैं कौन सा देश साइबर ठगी के मामले में या साइबर क्राइम की दुनिया में कितना सशक्त है किसके पास कितनी ताकत है। दुनिया में सबसे ज्यादा साइबर अपराध किस देश में होते हैं? क्या होती है हैकिंग?

क्या होती है साइबर हैकिंग?

हैकिंग भी साइबर अपराध (Cyber Crime) के अंतर्गत ही आता है। इसमें कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से किसी की निजी जानकारी को प्राप्त करना और उसका गलत इस्तेमाल करना या चोरी कर लेना है। हैकिंग में मुख्यतः किसी की निजी जानकारी को चुराना जैसे कि उपयोगकर्ता का नाम या पासवर्ड या फिर उसमें फेरबदल करना हैकिंग कहलाता है।

किस देश में साइबर हैकिंग सबसे ज्यादा है

सबसे ज्यादा साइबर हमले अमेरिका में होते हैं। अक्सर ये हमले फर्जी सरकारी आईडी बनाकर और इसके जरिए लोगों की निजी या सरकारी जानकारियां चुरा कर किए जाते हैं। जैसे कि फर्जी आईडी बनाकर हैकर आपके ईमेल पर अपनी फर्जी आईडी से ईमेल भेजता है। वैसे आजकल ईमेल प्रोवाइडर्स जैसे जीमेल याहू ऐसे ईमेल आने पर उन्हें खुद ही स्पैम में डाल देते हैं लेकिन कई बार कस्टमाइज्ड सेटिंग की वजह से ऐसे मेल इनबॉक्स में भी दिख जाते हैं। ऐसी स्थिति में इन ईमेल्स पर दी गई किसी भी लिंक पर क्लिक नहीं करना चाहिए।

क्योंकि ये लिंक आपको किसी वेबसाइट पर ले जाकर आपसे डिटेल्स मांग सकती हैं। या फिर कुछ ऐसा डाउनलोड करवा सकती है, जिससे आपके लैपटॉप या डेस्कटॉप पर एक वायरस आ जाता है। जिसके जरिए व्यक्ति का सारा डाटा चुरा लिया जा सकता है। और साथ ही साथ आप पर लाइव नजर भी रखी जा सकती है कि आप क्या कर रहे हैं या क्या सर्च कर रहे हैं ।

दुनिया का सबसे बड़ा साइबर हमला

जून 2021 में सुपर पावर अमेरिका पर दुनिया का सबसे बड़ा साइबर अटैक हुआ था। 200 अमेरिकी कंपनियों पर साइबर अटैक हुआ। सबसे पहले फ्लोरिडा स्थित आईटी कंपनी कासिया को टारगेट किया गया। इसके बाद कंपनी के सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल करके वे कारपोरेट नेटवर्क के जरिए अन्य कंपनियों तक पहुंच गए। हैकर्स ने 70 मिलियन डॉलर मतलब 520 करोड़ की मांग की थी। जिसे क्रिप्टो करेंसी या बिटकॉइन में मांगा गया था। इस हमले के पीछे RE vil ransomware गैंग का हाथ था। राष्ट्रपति बाइडेन ने एफबीआई को जांच के आदेश दिए थे।

यहां लगता है हैकर्स का मेला

अमेरिका के लॉस वेगास में प्रत्येक वर्ष अगस्त के महीने में एक खास मेला लगता है। यह मेला खास इसलिए है क्योंकि ये कोई आम मेला नहीं बल्कि हैकर्स का मेला होता है। इसमें साइबर एक्सपर्ट से लेकर बच्चों तक हर उम्र का व्यक्ति हैकिंग का अपना हुनर दिखा सकता है।

इनके दिमाग की निगरानी अमेरिका के साइबर एक्सपर्ट्स करते हैं । यह पता करते हैं कि हैकिंग के समय इन हैकर्स का दिमाग कैसे काम करता है। वह कैसे बड़े बड़े कारनामों को अंजाम देते हैं।

हैकिंग की शुरुआत कहां से हुई?

1990 के दशक में सोवियत संघ (Soviet Union) के विघटन के बाद बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर और गणितज्ञ अचानक से बेरोजगार हो गए थे। ये लोग पैसे कमाने के लिए अलग अलग तरीके अपनाने लगे थे। इनमें से कुछ इंटरनेट (Internet) के जरिए भी कमाई का जरिया ढूंढने की कोशिश करने लगे, उस समय साइबर सिक्योरिटी को लेकर लोग और सरकार इतने सावधान नहीं थे। और ना ही इतनी जानकारियां उपलब्ध थी। इन्हीं रूसी इंजीनियरों और गणितज्ञों ने हैकिंग साम्राज्य की नींव रखी।

उन्होंने बैंकों और वित्तीय संस्थानों और दूसरे देशों की वेबसाइट को अपना निशाना बनाना शुरू किया। यह कुछ-कुछ 90 के दशक की हॉलिवुड फिल्म मैट्रिक से भी प्रभावित थे। उस दौर में हैकर्स खुद को हीरो समझते थे और रूस में हैकर्स नाम की पत्रिका भी छपती थी। जिसमें यह अपनी कामयाबी के किस्से बड़ी शान से बताते थे और हर बड़े रूसी हैकर का ताल्लुक हैकर्स पत्रिका से था। यहां तक कि रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी को इन हैकर्स के बारे में मालूम था।

रूस की हैकर सेना

रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी और सरकार को हैकर्स और हैकिंग के बारे में सब कुछ पता था। 2007 में रूसी हैकर्स ने सरकार के इशारे पर पड़ोसी देश एस्तोनिया पर बड़ा साइबर हमला किया था और वहां की सैकड़ों वेबसाइट को हैक कर लिया था। 2008 में इन्होंने जॉर्जिया की सरकारी वेबसाइट को साइबर अटैक से हैक कर लिया था। रूस ने फ्रीलांस हैकर्स पर भरोसा ना करते हुए खुफिया एजेंसी के रूप में अपनी सरकारी हैकर्स की सेना तैयार कर ली थी। 2008 में जॉर्जिया पर हमला रूसी सरकारी हैकर्स ने किया था। यह खुफिया एजेंसी के कर्मचारी थे ।

वर्तमान में रूस के पास दुनिया की सबसे ज्यादा ताकतवर साइबर सेना है ।रूस के ही फैंसी बियर नाम के ग्रुप में 2016- 2017 के अमेरिकी चुनाव के दौरान वाइट हाउस पर हमला किया था । इन साइबर हमलों से रूस दुनिया में खुद को साइबर साम्राज्य का बादशाह घोषित करना चाहता है ।

ईरान हैकिंग के क्षेत्र में बेहद खास

1990 के दशक में इंटरनेट के अस्तित्व और हैकिंग के अस्तित्व में आने के बाद ईरान (Iran) ने भी सरकारी हैकर्स को तैयार करना शुरू कर दिया था। साइबर हैकिंग के जरिए ईरान की सरकार ने 2009 में सरकार विरोधी प्रदर्शन जो मुख्यतः सोशल मीडिया पर चल रहे थे। उनको हैकर्स की मदद से सोशल मीडिया अकाउंट को हैक करके यह पता लगाया कि इन आंदोलनों के पीछे कौन है। उन लोगों की शिनाख्त करने के बाद डराया धमकाया गया और जेल में डाला गया। और सरकार के खिलाफ हो रही बगावत को शांत किया।

ईरान में दुनिया के एक से एक काबिल इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार होते हैं। लेकिन यह ज्यादा पैसे कमाने के लिए अमेरिका या दूसरे एशियाई देशों में चले जाते हैं ईरान को बचे कुचे लोगों से ही काम चलाना पड़ता है। ईरान के पास ट्विटर जैसे सोशल मीडिया को हैक करने का भी पावर है। ईरान की साइबर सेना वहां के मशहूर रिवॉल्यूशनरी गार्ड चलाते हैं।

साइबर पावर के मामले में ईरान तीसरे नंबर पर है। अमेरिका, रूस, चीन, इजराइल पहले नंबर पर हैं। और दूसरे नंबर पर यूरोपीय देश हैं। ईरान पर साइबर हमलों के पीछे अमेरिका इजरायल का हाथ होता है । 2012 में ईरान के तेल उद्योग को निशाना बनाया गया था। उसके सिस्टम की हार्ड ड्राइव से डाटा उड़ा दिए गए थे। 3 महीने बाद ईरान के हैकर्स ने भी जवाबी हमला करते हुए सऊदी अरब पर साइबर हमला करके 30,000 कंप्यूटर से डाटा उड़ा दिए थे।

उत्तर कोरिया में हैकिंग है वैध

उत्तर कोरिया (North Korea) में खुफिया एजेंसी हैकर्स की सेना को चलाती है, जो पूरी तरह से सरकारी और वैध है। यहां पर 13 से 14 साल की उम्र में ही हैकिग की ट्रेनिंग दी जाने लगती है। गणित और इंजीनियरिंग के छात्रों को सॉफ्टवेयर की ट्रेनिंग दी जाती है । बाद में ये या तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनते हैं, या हैकर बनते हैं। उत्तर कोरिया अपने यहां से तेजतर्रार छात्रों को आईटी की पढ़ाई पूरी करने के बाद चीन या दूसरे देशों में भेजता है, ताकि वह अच्छे साइबर एक्सपर्ट बनकर देश के काम आ सके। इनमें से कई छात्र पढ़ाई पूरी करके उन्हीं देशों में रुक कर अपने देश के लिए हैकिंग का काम करते हैं। और कमाई करके अपने देश पैसे भेजते हैं । उत्तर कोरियाई हैकर 1000 से 1 लाख डॉलर लेकर फ्रीलांस हैकिंग भी करते हैं, और अपने देश के लिए पैसे कमाते हैं। इनके निशाने पर क्रेडिट कार्ड डेबिट कार्ड और बैंक के खाते होते हैं।

उत्तर कोरिया का हैकर ग्रुप LAZARUS दुनिया के 6 बड़े देशों सिंगापुर, जापान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, भारत और यूके पर साइबर अटैक की तैयारी में है। इन देशों में कोरोना के लिए विशेष आकर्षक पैकेज लागू किया गया है। साइबर अटैक के लिए हैकर्स सरकारी डोमेन से आईडी बनाकर लोगों को ईमेल कर रहे हैं। क्रिप्टो करेंसी ज्यादातर हैकर्स आईटी प्रोफेशनल्स होते हैं जो 3 या 4 लोगों की टीम के रूप में काम करते हैं। ये एक दूसरे को असली नाम से ना जान कर कोड और नंबर से जानते हैं। और टेलीग्राम नाम के सोशल मैसेजिंग ऐप के जरिए कांटेक्ट में रहते हैं। यह ऐप आतंकवादियों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है। ये हैकर्स अब वर्चुअल करेंसी या बिटकॉइन को निशाना बना रहे हैं। यह वर्चुअल करेंसी को हैकिंग के जरिए अपने खाते में ट्रांसफर करके पैसा कमाते हैं।

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