Delhi Bulldozer News : 46 साल पहले जब कांग्रेस सरकार के बुल्डोजरों ने दिल्ली के तुर्कमान गेट पर बरपाया था कहर, जानिए पूरी कहानी

Delhi Bulldozer News : दिल्ली में यह पहला मौका नहीं है जब एक खास क्षेत्र को बुल्डोजर का निशाना बनाया गया है। इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।आइए आपको बताते हैं एक ऐसी ही घटना के बारे में...

Update: 2022-04-20 10:18 GMT

Delhi Bulldozer News : 46 साल पहले जब कांग्रेस सरकार के बुल्डोजरों ने दिल्ली के तुर्कमान गेट पर बरपाया था कहर, जानिए पूरी कहानी

Delhi Bulldozer News : 20 अप्रैल की तारीख दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके (Jahangirpuri Area) के लोगों को जेहन में भविष्य में लंबे समय तक रहेगा। दिल्ली के जहांगीपुरी में एमसीडी (MCD) ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर फिर बुल्डोजरों का इस्तेमाल किया है। हालांकि अतिक्रमण (Encroachment) हटाने का अभियान शुरू होने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की ओर से ​एक निर्देश जारी किया गया कि यथास्थिति बना कर रखी जाए। कोर्ट के इस निर्देश के बाद एमसीडी का अभियान बंद हो जाना चाहिए था पर आदेश की लिखित प्रति नहीं मिलने के नाम पर बुल्डोजर चलते रहे। यह सिलसिला तब रुका जब सुप्रीम कोर्ट ने फिर संज्ञान लेकर इसे तुरंत रोकने के निर्देश एमसीडी के अफसरों तक पहुंचाए। आपको बता दें कि जहांगीरपुरी में ही बीते 16 अप्रैल को महावीर जयंती के दौरान एक जुलूस पर पत्थरबाजी के बाद हिंसा हुई थी। पुलिस की स्पेशल ब्रांच इस घटना की जांच में जुटी है। कई लोगों को गिरफ्तार कर पूछताछ भी की जा रही है। उसी बीच एमसीडी की बुल्डोजर अटैक के बाद इस इलाके में एक बार फिर अफरातफरी मच गयी है।

जहांगीरपुरी में चले बुल्डोजर ने तुर्कमान गेट घटना की याद दिलायी

आपको बता दें कि दिल्ली में यह पहला मौका नहीं है जब एक खास क्षेत्र को बुल्डोजर का निशाना बनाया गया है। इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं।आइए आपको बताते हैं एक ऐसी ही घटना के बारे में जो आज से 46 साल पहले दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में हुई थी। उस वक्त केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी और देश में आपातकाल लागू था। बीबीसी की एक रिपोर्ट में रेहान फजल ने उस घटना के बारे में विस्तार से बताया है। जानिए क्या हुआ था 13 अप्रैल 1976 को दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में।

बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 13 अप्रैल, 1976 की सुबह आसफ अली रोड पर एक पुराना ज़ंग लगा बुलडोज़र तुर्कमान गेट की तरफ़ बढ़ रहा था. उसके पीछे धीमी रफ़्तार से चलता हुआ मज़दूरों से भरा एक ट्रक चल रहा था। उसके ठीक पीछे एक जीप थी जिसमें डीडीए के तहसीलदार कश्मीरी लाल बैठे हुए थे। उनको निर्देश थे कि कोई ऐसा आभास मत देना जिससे लोग डर जाएं. काम को चरणों में बाँट कर करना।

दो बार पीटकर भगा दिए गए थे अफसर

ये पहला मौक़ा नहीं था जब कश्मीरी लाल विध्वंस दस्ता लेकर तुर्कमान गेट जा रहे थे। इससे पहले वह दो बार और गए थे और दोनों बार पीटकर भगा दिए गए थे। उनको अभी तक याद था कि किस तरह एक डेयरी के मालिक ने एक बड़ी लाठी लेकर अकेले ही पुलिसवालों को पीटते हुए भगा दिया था। लेकिन वो इमरजेंसी से पहले के दिन थे। जैसे ही डीडीए का दस्ता तुर्कमान गेट ट्राँज़िट कैंप के ठीक सामने जाकर रुका, वहाँ रहने वाले लोगों ने उसे घेर लिया।

कश्मीरी लाल ने भीड़ से कहा, "कोई ख़ास बात नहीं हैं. हम ट्राँज़िट कैंप में रहने वाले लोगों को बेहतर जगह रंजीत नगर ले जाने के लिए आए हैं। मैं आश्वासन देता हूँ कि आपके लिए कोई समस्या नहीं होगी। थोड़ी देर में मज़दूरों ने कुदालों से ट्राँज़िट कैंप की दीवारें तोड़नी शुरू कर दीं. कैंप में रहने वाले लोगों ने कोई विरोध नहीं किया. तोड़फोड़ का ये काम दो दिन चला. कश्मीरी लाल अपनी टीम के साथ वापस चले गए। लेकिन 15 अप्रैल की सुबह-सुबह तुर्कमान गेट पर दो बुलडोज़र फिर पहुंच गए. जैसे ही कश्मीरी लाल अपनी जीप से नीचे उतरे, उन्हें नाराज़ लोगों ने चारो ओर से घेर लिया था।

कश्मीरी लाल ने उस समय कहा कि परेशान होने की बात नहीं है। हम सिर्फ़ फ़ुटपाथ को तोड़ने आए हैं। मेरा अनुरोध है कि फ़ुटपाथ से लगे जिन लोगों के घर हैं, वो अपना सामान हटा लें, ताकि उन्हें नुक़सान न पहुंचे। भीड़ की ओर से जवाब दिया गया कि कलेकिन आपको फ़ुटपाथ तोड़ने के लिए बुलडोज़रों की ज़रूरत नहीं हैं। कश्मीरी लाल ने उन्हें फिर आश्वस्त किया, "कोई घर नहीं तोड़ा जाएगा। हम सिर्फ़ फुटपाथ तोड़ेंगे। लेकिन लोग संदेह में थे।

लोग इधर-उधर मदद मांगने के लिए भटक रहे थे

अजय बोस और जॉन दयाल अपनी किताब, 'फॉर रीज़न्स ऑफ़ स्टेट डेल्ही अंडर इमरजेंसी में' लिखते हैं, "क़रीब 100 लोग जिसमें अधिक्तर युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता थे, महानगर पार्शद अर्जन दास के पास पहुंचे. एक समय मोटर मेकैनिक के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले अर्जन दास संजय गाँधी के बहुत थे अर्जन दास ने जब बुलडोज़रों की बात सुनी तो उन्हें थोड़ा आश्चर्य हुआ।

उन्होंने कुछ लोगों को अपनी कार में बैठाया और सीधे सूचना और प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल के निवास स्थान पर पहुंच गए। विद्याचरण शुक्ल ने डीडीए के उपाध्यक्ष जगमोहन को फ़ोन मिलाया और उनसे कहा कि वो बुलडोज़रों को वापस बुला लें। उन लोगों ने अर्जन दास का धन्यवाद किया लेकिन जब वो तुर्कमान गेट पहुंचे तो उन्होंने विनाश और तबाही का जो दृश्य देखा, उनके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।


कुछ घंटों पहले सड़कों के किनारे खड़े बुलडोज़र तब तक क़रीब 50 घरों को ज़मींदोज़ किया जा चुका था और अब वहां की ज़मीन को समतल कर रहे थे। मर्द, औरतें और बच्चे अपने टूटे हुए घरों के बाहर बैठे थे और उनका सामान उनकी बग़ल में चारों तरफ़ बिखरा पड़ा था।

रुख़साना सुल्ताना से मदद की गुहार

इसके बाद स्थानीय लोग तुर्कमान गेट से दो किलोमीटर की दूरी पर परिवार नियोजन कैंप चला रहीं रुख़साना सुल्ताना के पास भागे। जब तक रुख़साना उन लोगों के साथ उस जगह पहुंचीं जहां घर गिराए जा रहे थे, बीस घर और गिर चुके थे और बुलडोज़र वापस लौट चुके थे।

रुख़साना सुल्ताना ने इन लोगों को शाम को अपने जंतर मंतर रोड स्थित घर आने को कहा। क्रिस्टोफ़ जैफ़रेलॉट और प्रतिनव अनिल अपनी किताब 'इंडियाज़ फ़र्स्ट डिक्टेटरशिप द इमरजेंसी 1975-1977' में लिखते हैं, "उन्होंने एक शर्त पर तुर्कमान गेट के निवासियों को मदद करने की पेशकश की. उन्होंने कहा कि वो उनकी बात संजय गाँधी तक तभी पहुंचाएंगी अगर वो तुर्कमान गेट में परिवार नियोजन केंद्र स्थापित करने के लिए सहमत हों और हफ़्ते में कम कम से कम ऑपरेशन के लिए 300 केस उनके पास लाएं."

लोगों ने कहा कि वो ऐसा करने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें त्रिलोकपुरी और नंद नगरी ना भेज कर पास ही माता सुंदरी रोड या मिन्टो रोड भेज दिया जाए। इस पर रुख़साना के साथ रहने वाले एक शख्स राजू ने उनसे कहा कि तुम लोग जहन्नुम में जाओ। इस बीच तुर्कमान गेट में बुलडोज़र गलियों में अंदर घुसते चले गए। अब उनकी संख्या तीन हो गई थी और वो अपनी पूरी ताक़त से काम कर रहे थे।

हाउस टैक्स देने वाले घरों पर भी चला था बुल्डोजर

जॉन दयाल और अजय बोस लिखते हैं, "डीडीए के अधिकारियों ने उन लोगों को भी त्रिलोकपुरी और नंद नगरी में प्लॉट्स की एलॉटमेंट स्लिप देनी शुरू कर दी थी जिनके घर अभी गिराए नहीं गए थे। ये साफ इशारा था कि अभी और घर गिराए जाने हैं। अब तक डीडीए अधिकारियों के व्यवहार में भी फ़र्क आ चुका था. अब वह मीठी ज़ुबान में बात न कर हुक्म चला रहे थे। "वहाँ रहने वाले लोगों ने उन्हें लाख समझाया कि हम वहाँ पीढ़ियों से रह रहे हैं. हम झुग्गी-झोपड़ी वाले नहीं हैं और बाक़ायदा हाउस टैक्स दे रहे हैं. लेकिन डीडीए वालों पर उसका कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने कहा हमारे पास इन्हें गिराने के हुक्म हैं."

दूसरा पाकिस्तान नहीं बनने देंगे का दिया गया तर्क

18 अप्रैल को चूंकि रविवार था इसलिए उस दिन बुलडोज़र नहीं चले. उसी दिन तुर्कमान गेट के लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल डीडीए के उपाध्यक्ष जगमोहन से मिलने गया. उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि उन्हें तुर्कमान गेट से दूर न भेजा जाए और अलग अलग जगहों पर न भेज कर एक साथ रहने दिया जाए. इस पर दयाल और बोस लिखते हैं, "जगमोहन ने जवाब दिया, क्या आप समझते हैं कि हम पागल हैं कि एक पाकिस्तान तोड़ कर दूसरा पाकिस्तान बन जाने दें? हम आपको त्रिलोकपुरी और खिचड़ीपुर में प्लॉट देंगे और आपको उन 5 लाख लोगों की तरह वहाँ जाना पड़ेगा जिन्हें हम वहां बसाना चाहते हैं। और ये याद रखिए अगर आप वहाँ नहीं जाते हैं और डिमोलिशन का विरोध करने की बेवकूफ़ी जारी रखते हैं, तो इसके परिणाम गंभीर होंगे।

संजय गांधी जब तुर्कमान गेट से देखना चाहते थे जामा मस्जिद

दरअसल अप्रैल, 1976 की शुरुआत में जगमोहन और संजय गाँधी तुर्कमान गेट के दौरे पर गए थे। कैथरीन फ़्रैंक इंदिरा गाँधी की जीवनी में लिखती हैं, उसी समय संजय ने इच्छा प्रकट की थी कि वो चाहते हैं कि उन्हें तुर्कमान गेट से जामा मस्जिद साफ-साफ दिखाई दे। जगमोहन ने संजय गाँधी के इन शब्दों को आदेश की तरह लिया। तभी तय हुआ कि तुर्कमान गेट से जामा मस्जिद के दृश्य को बाधित करने वाली हर चीज़ को मिटा दिया जाएगा. कुछ ही दिनों में ये तय हो गया कि यहाँ रहने वाले लाखों लोगों को बीस मील दूर यमुना पार खाली पड़ी ज़मीन पर बसा दिया जाएगा। 7 अप्रैल को जगमोहन ने एक विशेष संदेशवाहक के ज़रिए डीआईजी पीएस भिंडर को एक संदेश भिजवाया कि वो 10 अप्रैल से तुर्कमान गेट में सफ़ाई अभियान शुरू कर रहे हैं और उन्हें वहाँ पुलिस और मजिस्ट्रेट की मदद की ज़रूरत होगी.

इमाम बुख़ारी से सरकार की नाराज़गी

तुर्कमान गेट में क्रैकडाउन की एक और वजह ज्ञान प्रकाश अपनी किताब 'इमरजेंसी क्रोनिकल्स' में बताते हैं। वो लिखते हैं, "इमाम बुख़ारी 1973 में जामा मस्जिद के इमाम बने थे। उनके पिता अपनी बढ़ती उम्र और बीमारी के चलते अपने पद से हट गए थे। पर वक्फ़ बोर्ड ने उनकी नियुक्ति पर इसलिए अपनी मोहर लगाने से इंकार कर दिया था, क्योंकि इस्लाम में इमाम की नियुक्ति में ख़ानदानी विरासत का सिद्धांत नहीं माना जाता। इस वजह से वो सरकार के घोर विरोधी हो गए थे और सरकार पर लगातार मुस्लिम विरोधी होने का आरोप लगा रहे थे और जुमे की नमाज़ के बाद दिए गए अपने ख़ुत्बों में सरकार को आड़े हाथों ले रहे थे। संजय गांधी तुर्कमान गेट में तोड़फोड़ का आदेश दे कर बुख़ारी को सबक़ सिखाना चाहते थे।

वहां पहुंचे जवानों की हाथों में राइफ़लें, आंसू गैस के गोले और रॉयट शील्ड थी. भीड़ ने पहले टूटे हुए मकानों के मलबे से पत्थर उठा कर सुरक्षा बलों पर फेंकने शुरू कर दिए. जब पुलिस ने उन्हें खदेड़ा तो वो लोग अपनी छतों और संकरी गलियों से पुलिस पर पत्थर बरसाने लगे। घबरा कर पुलिस ने आँसू गैस के गोले छोड़े और हवा में फ़ायरिंग की लेकिन उनका कोई असर नहीं हुआ। भीड़ में बहुत से लोगों ने फ़ज़्ले इलाही मस्जिद में शरण ली.

पुलिस फ़ायरिंग

तभी डिलाइट सिनेमा की तरफ़ से एक भीड़ ने पीछे से पुलिस पर हमला कर दिया. अभी पुलिस इस हमले से संभल भी नहीं पाई थी कि बाईं तरफ़ हमदर्द दवाख़ाने की तरफ़ से एक और भीड़ ने उस पर हमला बोल दिया। भीड़ ने पुलिस चौकी को घेर लिया और वहाँ मौजूद दो या तीन पुलिसवालों ने बहुत मुश्किल से अपनी जान बचाई।

बाद में पुलिस अधीक्षक आरके ओहरी ने शाह आयोग में गवाही देते हुए कहा, "तभी सब डिवीजनल मैजिस्ट्रेट ने लाठी चार्ज का हुक्म दे दिया। तुरंत और कुमुक की माँग की गई और एक घंटे के अंदर दिल्ली पुलिस की आठ कंपनियाँ और सीमा सुरक्षा बल की एक कंपनी वहाँ पहुंच गई। उनको दो ब्लैंक फ़ायरिंग ऑर्डर दिए गए जिन पर मैंने और मेरे साथ काम करने वाले पुलिस अधिकारी आरके शर्मा ने दस्तख़त किए। पुलिस ने ढाई बजे फ़ायरिंग शुरू की। सरकारी रिकॉर्ड्स के अनुसार कुल 14 राउंड गोली चलाई गई। सीआरपीएफ़ और दिल्ली पुलिस के जवानों ने विरोध कर रहे लोगों को शाहजहाँनाबाद की तंग गलियों में खदेड़ना शुरू कर दिया।

शाह कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया, "जब डीआईजी भिंडर को एक पत्थर आकर लगा तो उन्होंने भीड़ पर गोली चलाने के लिए एक कॉन्स्टेबल का हथियार छीनने का प्रयास किया। लेकिन कॉन्स्टेबल ने उन्हें अपना हथियार नहीं दिया लेकिन उसने गोली चलाने के भिंडर के आदेश का पालन किया। सरकारी तौर पर बताया गया कि इस फ़ायरिंग में छह लोग मारे गए लेकिन ग़ैर-सरकारी सूत्रों के अनुसार ये संख्या कम से कम इसकी दोगुनी थी।


इलाक़े में कर्फ़्यू

साढ़े चार बजे पुलिस की गाड़ियां इलाके में घूम घूम कर ऐलान करने लगीं कि वहाँ कर्फ़्यू लगा दिया गया है। शाह कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया, "इस बीच पुलिस घरों में घुसकर पुरुषों, महिलाओं और यहाँ तक कि बच्चों की पिटाई करने लगी। उन्होंने उनके ज़ेवरात उठाने शुरू कर दिए. एक जगह उन्होंने गोली से घायल हो चुके व्यक्ति के पैर पर राइफ़ल बट मारा।" यह कर्फ़्यू 13 मई, 1976 तक चला. जगमोहन ने बाद में प्रकाशित होने वाली अपनी आत्मकथा 'आईलैंड ऑफ़ ट्रुथ' में फ़ायरिंग में मरने वालों की संख्या छह बताई। शाह कमीशन की रिपोर्ट में भी इतने ही लोगों के मारे जाने का ज़िक्र हुआ।

बिपिन चंद्रा ने अपनी किताब 'इन द नेम ऑफ़ डेमॉक्रेसी' में मरने वालों की संख्या 20 बताई जबकि वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब 'द जजमेंट' में लिखा कि इस फ़ायरिंग में 150 लोग मारे गए। अजय बोस और जॉन दयाल ने लिखा, "जैसे ही कर्फ़्यू लगा, डीडीए के लोगों ने वहाँ के अँधेरे को ताकतवर सर्चलाइटों के ज़रिए रोशनी से भर दिया। सोलह बुलडोज़रों को काम पर लगाया गया। पूरी रात उन्होंने अपना काम नहीं रोका। दरअसल वो 22 अप्रैल तक बिना रुके काम करते रहे। तुर्कमान गेट से फैले मलबे को हर रोज़ ट्रकों में उठाया जाता और रिंग रोड के पीछे फेंक दिया जाता था।

खबर को सेंसर कर अखबारो में छपने नहीं दिया गया

दिलचस्प बात यह थी कि फ़ायरिंग के अगले दिन इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर फ़्राँस में विश्वविद्यालय सुधारों का विरोध कर रहे छात्रों पर आँसू गैस के गोले फ़ायर किए जाने की तस्वीर छपी लेकिन अख़बार के दफ़्तर से सिर्फ़ दो किलोमीटर की दूरी पर हुई इस फ़ायरिंग का ज़रा भी ज़िक्र नहीं हुआ। इस ख़बर को पूरी तरह सेंसर कर दिया गया। बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव के पद पर काम कर रहे बिशन टंडन ने अपनी किताब 'पीएमओ डायरी' में लिखा, "गृह सचिव ने प्रश्न उठाया कि इस घटना को समाचार पत्रों में आने दिया जाए या नहीं। मेरा मत था कि प्रशासन की ओर से एक संक्षिप्त प्रेस नोट निकलना चाहिए। बात तो सबको मालूम हो ही जाएगी. छिपाने से क्या फ़ायदा? इसके बाद अफ़वाहें फैलेंगी जिन्हें रोकना कठिन होगा। रात में जब हम लोग गृह सचिव के निवास पर एकत्रित हुए तो मालूम पड़ा कि दिल्ली के उप राज्यपाल ने आदेश दिया है कि इस घटना संबंधी सभी समाचारों को सेंसर कर दिया जाए।

इस रिपोर्ट के तथ्य वरिष्ठ पत्रकार रेहान फजल की बीसीसी के लिए लिखी गयी रिपोर्ट से ली गयी है।  

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