Delhi Fire cracker Ban : पटाखों की बिक्री पर हाई कोर्ट से भी नहीं मिली कोई राहत, व्यापारियों ने वापस ली याचिका

Delhi Firecracker Ban : कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट से याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। जस्टिस संजीव सचदेवा ने याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए याचिका को खारिज कर दिया।

Update: 2021-11-01 12:56 GMT

(याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए याचिका को खारिज कर दिया।)

Delhi Firecracker Ban : रोहिणी मूसा की ओर से पटाखों की बिक्री को लेकर दायर याचिका पर आज सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों और आतिशबाजी की खरीद-फरोख्त और इस्तेमाल को लेकर आदेश और गाइडलाइन जारी की है तो हाई कोर्ट उसकी समीक्षा नहीं करेगा। लाइसेंस धारक व्यापारियों को कोई रात ना मिलते देख उनकी ओर से याचिका वापस ले ली गई।

पटाखों की बिक्री की अनुमति नहीं

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह दिल्ली के भीतर उन लोगों को भी पटाखों की बिक्री की अनुमति नहीं दे सकता है। जो राष्ट्रीय राजधानी के बाहर उनका उपयोग करना चाहते हैं। जहां इसके उपयोग पर कोई प्रतिबंध नहीं हो सकता है। अब साफ है कि देश की राजधानी दिल्ली में पटाखे की बिक्री (Delhi Firecracker Ban) नहीं होगी। डीपीसीसी की ओर से पेश हुए वकील बालेंदु शेखर ने कहा कि वहां पटाखों की बिक्री निषेध (Delhi Firecracker Ban) होनी चाहिए। जहां वायु की गुणवत्ता खराब श्रणी में है।

हाई कोर्ट में सुनवाई

पटाखों की बिक्री को लेकर आज कोर्ट में सुनवाई हुई। जिस पर हाईकोर्ट ने अपना पक्ष साफ कर दिया है। सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव सचदेवा ने कहा कि 'यदि कोई ऐसे क्षेत्र (A) से आता है जहां हवा की गुणवत्ता उत्कृष्ट है और कोई पाबंदी नहीं है और दिल्ली में आपके पास आकर आपसे इसे खरीदना है। तो विक्रय का स्थान दिल्ली होगा। जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विपरीत है। 'साथ ही कहा गया कि बिक्री और उपयोग का मतलब है कि 'आप इसे दिल्ली में नहीं भेज सकते हैं और आप इसे दिवाली में बाहर से लाकर इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।'

आदेश का उल्लंघन नहीं किया जाएगा

जस्टिस सचदेवा ने कहा कि 'याचिकाकर्ताओं को पटाखों के इस्तेमाल और बिक्री पर आदेशों के स्पष्टीकरण के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) या सुप्रीम कोर्ट जाना होगा। साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि 'सरकार को यह देखना है कि क्या दिल्ली के व्यापारी बाहर पटाखे भेजना चाहते हैं। अदालत का कहना है कि 'उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट या एनजीटी के आदेश का उल्लंघन करने का कोई सवाल ही नहीं है। जहां इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया गया है।'

पटाखों पर अवैध कब्जा

सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि आज व्यापारियों के पास पटाखों का अवैध कब्जा है क्योंकि वह बिना लाइसेंस के पटाखों का स्टॉक अपने पास नहीं रख सकते हैं। जस्टिस सचदेवा ने कहा कि 'वे सीमित अनुमति की मांग कर रहे हैं कि हम इसे दिल्ली से बाहर ले जाएंगे। जहां स्थानीय अधिकारियों के अनुसार इसकी अनुमति होगी।' अदालत ने साफ किया कि बिना अनुमति व बिना लाइसेंस के पटाखों को अपने पास रखना भी गैरकानूनी है।

व्यापारियों द्वारा दिल्ली के बाहर पटाखे भेजने की प्रार्थना पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने अदालत से कहा कि इस तरह के किसी भी आदेश का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उल्लंघन किया जा सकता है। डीपीसीसी ने यह भी कहा कि यदि ऐसा आदेश पारित किया जाता है तो पटाखों के परिवहन के बारे में पूर्ण जानकारी देने की आवश्यकता होती है।

याचिका वापस ली गई

याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर केंद्र सरकार, डीपीसीसी और दिल्ली सरकार के वकीलों ने विरोध करते हुए अदालत से फैसला सुनाने की बात कही। कोर्ट से कोई राहत नहीं मिलने पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट से याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। जस्टिस संजीव सचदेवा ने याचिका वापस लेने की अनुमति देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही सचदेवा की बेंच ने कहा कि 'चूंकि दिवाली सिर्फ 3 दिन दूर है। याचिकाकर्ताओं को बाद में आदेशों की वैधता को चुनौती देने के अधिकार सुरक्षित रखने वाली याचिका वापस लेने की अनुमति दी जानी चाहिए।'

लाइसेंस धारकों ने दायर की थी याचिका

दिवाली में पटाखों की बिक्री को लेकर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। यह याचिका पटाखों के 50 से ज्यादा लाइसेंस रखने वाले व्यापारियों ने दायर की थी। जिसमें व्यापारी जय किशन और अन्य व्यापारी शामिल है। जो दिल्ली एनसीआर के क्षेत्र में पटाखों के भंडारण और बिक्री के लिए स्थाई लाइसेंस धारक है।

व्यापारियों की ओर से हाईकोर्ट में ग्रीन पटाखों को बेचने की अनुमति मांगी गई थी। वकील रोहिणी मूसा के माध्यम से याचिकाकर्ताओं ने कहा कि 15 सितंबर 2021 के डीपीसीसी के आदेश को चुनौती देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया गया है।

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