Delhi Riots: दिल्ली पुलिस ने 'दिल्ली दंगों की तुलना अमेरिका के 9/11 आतंकी हमलों से की', जाने क्या है मामला?

Delhi Riots: दिल्ली पुलिस ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध किया है। यही नहीं अभियोजन पक्ष ने फरवरी 2020 के दंगों की साजिश की तुलना अमेरिका में हुए 9/11 आतंकी हमले से की है।

Update: 2022-01-29 09:55 GMT

Delhi Riots: दिल्ली पुलिस ने ‘दिल्ली दंगों की तुलना अमेरिका के 9/11 आतंकी हमलों से की’, जाने क्या है मामला?

Delhi Riots: दिल्ली पुलिस ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय(जेएनयू) के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध किया है। यही नहीं अभियोजन पक्ष ने फरवरी 2020 के दंगों की साजिश की तुलना अमेरिका में हुए 9/11 आतंकी हमले से की है। स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अमित प्रसाद ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान उमर खालिद पर साजिश रचने के लिए बैठक आयोजित करने और नागरिकता (संशोधन) कानून के खिलाफ प्रदर्शन स्थल की निगरानी करने का आरोप लगाया।

स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने कहा कि धर्मनिरपेक्ष विरोध को एक 'मुखौटा' बनाकर कहीं भी प्रदर्शन की योजना बनाई गई और उसका परीक्षण किया गया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के समक्ष उमर खालिद की जमानत याचिका का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने कहा, '9/11 होने से ठीक पहले, इसमें जुड़े सभी लोग एक विशेष स्थान पर पहुंचे और प्रशिक्षण लिया। उससे एक महीने पहले वे अपने-अपने स्थानों पर चले गए। इस मामले में भी यही चीज हुई है।'

स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर अमित प्रसाद ने आगे कहा, '9/11 प्रकरण का संदर्भ बहुत प्रासंगिक है। 9/11 के पीछे जो व्यक्ति था, वह कभी अमेरिका नहीं गया। मलेशिया में बैठक कर साजिश की गई थी। उस समय वाट्सऐप चैट उपलब्ध नहीं थे। आज हमारे पास दस्तावेज उपलब्ध हैं कि वह ग्रुप का हिस्सा था। यह दिखाने के लिए आधार है कि हिंसा होने वाली थी।'

अभियोजक ने अदालत से आगे कहा कि 2020 के विरोध प्रदर्शन का मुद्दा सीएए या एनआरसी नहीं बल्कि सरकार को शर्मिंदा करने और ऐसे कदम उठाने का था कि यह अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सुर्खियों में आ जाए। सुनवाई की आखिरी तारीख पर अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि सभी विरोध स्थलों को मस्जिदों से निकटता के कारण चुना गया था, लेकिन इसे एक मकसद से धर्मनिरपेक्षता का नाम दिया गया था।

बता दें कि दिल्ली दंगा मामले में उमर खालिद समेत कई अन्य लोगों पर गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया। उन पर दंगों के 'मास्टरमाइंड' होने का आरोप लगाया गया था। दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।

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