सफेद दाढ़ी को काला करना चाहता है डेरा चीफ राम रहीम, जेल से नहीं मिली अनुमति तो मानवाधिकार आयोग से लगाई गुहार
साध्वियों से दुष्कर्म और डेरे के खिलाफ खबरें छापने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में पिछले 4 साल से सजा काट रहा है। मेडिकल जांच और इमरजेंसी पैरोल पर राम रहीम को 3-4 बार जेल से बाहर भी ले जाया जा चुका है...
जनज्वार ब्यूरो। रोहतक जेल (Rohtak Jail) में उम्रकैद की सजा काट रहा स्वयंभू गुरमीत राम रहीम अपनी सफेद हो चुकी दाढ़ी से परेशान है। उसने जेल प्रशासन से दाढ़ी को कलर करने की परमीशन मांगी लेकिन नहीं मिली। राम रहीम अपनी इस मांग को लेकर एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। इससे पहले दिल्ली में चेकअप के लिए जाने के दौरान लोगों से मिलवाने का मामला भी खासा विवाद में रहा था।
गौरतलब है कि, डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम (Gurmeet Ram Rahim) सिंह साध्वियों से दुष्कर्म और डेरे के खिलाफ खबरें छापने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के मामले में पिछले 4 साल से सजा काट रहा है। मेडिकल जांच और इमरजेंसी पैरोल पर राम रहीम को तीन-चार बार जेल से बाहर भी ले जाया जा चुका है, लेकिन अभी तक नॉर्मल पैरोल नहीं मिल सकी है।
राम रहीम कभी खेती करने तो कभी बीमार मां का हवाला देकर पैरोल की अर्जी लगा चुका है। लेकिन हर बार अर्जी खारिज हो जाती है। हाल ही में गुरमीत राम रहीम के लिए 15 अगस्त पर उनके जन्मदिन पर ग्रीटिंग कार्ड और रक्षाबंधन पर अनुनायियों ने हजारों राखियां भी भेजी थी।
सूत्रों का कहना है, गुरमीत राम रहीम बीच-बीच में अपने अनुनायियों के नाम पत्र लिखता रहता है। लगभग हर चिट्ठी में यही होता है कि वाहेगुरु ने चाहा तो जल्द ही आपके बीच होऊंगा, मगर ये आरजू अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। राम रहीम ने कोरोना काल में भी कोविड निमयों का पालन करने के लिए एक पत्र अपने समर्थकों के नाम लिखा था।
राम रहीम ने बीते दिन हरियाणा मानवाधिकार आयोग से दाढ़ी काली करने की अनुमति मांगी है। जिसपर फैसला आना अभी बाकी है। 3 सितंबर को यहां हरियाणा मानवाधिकार आयोग के चेयरमैन जस्टिस एसके मित्तल ने जेल का निरीक्षण किया था। उस दौरान गुरमीत राम रहीम सिंह ने अपनी दाढ़ी कलर करने की मांग उठाई।
राम रहीम का कहना है कि जेल प्रशासन से इस संबंध में कई बार गुहार लगाई जा चुकी है, मगर अनुमति नहीं दी जा रही। मजबूर होकर अब मानवाधिकार आयोग के संज्ञान में यह मसला लाना पड़ा। हालांकि अभी मानवाधिकार आयोग की तरफ से भी इस पर कोई फैसला नहीं आया है।
कानून को कठपुतली मानते हैं राम-रहीम जैसे लोग
स्टेन स्वामी को कैसे भूला जा सकता है। जिनकी आखिरी सांस तक जेल में बंद हुई थी। स्टेन स्वामी जैसे प्रखर सामाजिक कार्यकर्ता को सरकार ने जरा भी राहत नहीं दी थी। भीमा कोरेगांव के आरोपियों को आज भी न्याय की दहलीज तक नहीं लांघने दी गई। और राम रहीम जैसे लोग जेल क्या जेल से बाहर सदाबहार बने हैं, जिनके लिए जज भी भागे चले आते हैं। इससे कानून के दोयम दर्जे का साफ चेहरा भी दिखता है।