Devasthanam Board News: किसान कानून की तरह देवस्थानम बोर्ड भी होगा निरस्त! जानें क्या है पूरा मामला?
Devasthanam Board News: विधानसभा चुनाव में जाने से पहले ही सिक्सटी प्लस का लक्ष्य घोषित कर चुकी भारतीय जनता पार्टी अपने आंतरिक सर्वे में अपनी राजनैतिक सच्चाई जानकर सहमी हुई है।
सलीम मलिक की रिपोर्ट
Devasthanam Board News: विधानसभा चुनाव में जाने से पहले ही सिक्सटी प्लस का लक्ष्य घोषित कर चुकी भारतीय जनता पार्टी अपने आंतरिक सर्वे में अपनी राजनैतिक सच्चाई जानकर सहमी हुई है। दो दर्जन मौजूदा विधायकों की स्पष्ट पराजय के साथ ही सात मंत्रियों के चुनावी बाढ़ में बह जाने की आशंका से भयभीत भाजपा को अब केंद्र के कृषि कानून सरीखे रोल बैक मॉडल में ही उम्मीदे दिख रही हैं। जिस प्रकार के हालात बन रहे हैं उससे संकेत मिल रहे हैं देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों की नाराजगी से पशोपेश में पड़ी प्रदेश सरकार को उबारने में मदद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून के आगामी 4 दिसम्बर के दौरे में एक बार फिर रोल बैक मास्टरस्ट्रोक खेल सकते हैं।
बता दें कि प्रदेश के तीर्थ-स्थानों व धामों की व्यवस्थाओं को रेगुलाईज करने के नाम पर मौजूदा भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री संख्या प्रथम त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रदेश में श्राइन बोर्ड की तर्ज पर देवस्थानम बोर्ड का गठन किया था। बोर्ड के गठन के बाद से ही भाजपा के कोर वोटर-समर्थक समझे जाने वाले तीर्थ-पुरोहितों ने इसे अपने हितों के प्रतिकूल बताते हुए इसका विरोध शुरू करना शुरू कर दिया था। यह विरोध तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र से लेकर दूसरे नम्बर के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के कार्यकाल से गुजरता हुआ मौजूदा तीसरे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के कार्यकाल तक बदस्तूर कभी धीमा तो कभी मुखर होता रहा। जो पवित्र सात्विक वातावरण वेदों की ऋचाओं से गुंजायमान रहता था वहां से सरकार विरोधी नारेबाजी और आंदोलन के सुर गूंजने लगे। यहां तक कि पुरोहितों ने अपने खून से मोदी को पत्र लिखकर उनसे भी हस्तक्षेप की गुहार लगाई। लेकिन सरकार बोर्ड को वापस लेने की जगह तीर्थ-पुरोहितों को इसके लाभ उसी प्रकार समझाने पर आमादा हो गई जैसे केंद्र सरकार किसानों को उन तीनों कृषि कानूनों के बारे में बता रही थी, जिन्हें अंततः आंदोलन की तपिश झेलने में असमर्थ केंद्र सरकार ने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव की चौखट पर पहुंचकर वापस लिया।
लेकिन जिस प्रकार किसानों को उनका हित समझाने में केंद्र सरकार विफल रहीं, उसी तरह प्रदेश सरकार भी अपने तेज-तर्रार कैबिनेट मंत्री व धार्मिक नेता सतपाल महाराज को इस मुहिम में झोंकने के बाद तीर्थ-पुरोहितों को नहीं समझा सकी। ऐसे में एक तरफ अपने ही हार्ड कोर समर्थक तीर्थ-पुरोहितों की नाराजगी और दूसरी तरफ चुनावी परिणाम की खौफनाक तस्वीर खींचते पार्टी के आंतरिक सर्वे ने भाजपा रणनीतिकारों को कृषि कानूनों की तर्ज पर ही देवस्थानम बोर्ड मामले को वापस लिए जाने को विवश कर दिया है। जिस वजह अब लगभग तय हो गया है कि पीएम मोदी ही प्रदेश राजनीति के ज्वलंत मुद्दों में शुमार देवस्थानम एक्ट विवाद पर विराम लगाएं।
दरअसल दो साल से इस एक्ट की वजह से चल रहे तीर्थ पुरोहित के आंदोलन को समाप्त करने की भूमिका मोदी की केदार यात्रा के दौरान ही बन चुकी थी। प्रदेश सरकार केवल इसको वापस लेने के तरीके व माकूल अवसर की तलाश में थी। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा वापस लिए गए तीनों कृषि कानूनों के बाद से पार्टी रणनीतिकारों को समझ में आया कि यदि देवस्थानम बोर्ड को भी मोदी के माध्यम से वापस लिया जाए तो विपक्ष के उठने वाले हमलावर तेवरों की धार को कुछ भोथरा किया जा सकता है, दूसरे इससे पार्टी के अंदर भी त्रिवेन्द्र व धामी में न किसी की हार-न किसी की जीत के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
देवस्थानम बोर्ड का गठन भले ही त्रिवेन्द्र रावत ने किया हो, लेकिन तीर्थ-पुरोहितों के आंदोलन के स्वरों को थामने के लिए दूसरे मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने वरिष्ठ भाजपा नेता मनोहरकान्त ध्यानी की अध्यक्षता में एक्ट के पहलुओं पर विचार करने व तीर्थ-पुरोहितों को इसके लाभ समझाने के लिए उच्चस्तरीय कमेटी का गठन किया था। बाद में आये मुख्यमंत्री धामी भी मजबूरी में भले ही बोर्ड के समर्थन वाली लाइन ही लिए रहे। लेकिन उन्हें रोल बैक से कभी परहेज नही रहा। धामी किसी भी पुराने विवाद से अपने को हमेशा दूर रखने व सबको साधने के इच्छुक रहे। जब तय हो गया कि इस एक्ट को वापस ही लेना है तो बात इसकी गरिमामय वापसी की होने लगी जिससे पार्टी में भी इसे किसी की हार-किसी की जीत की तौर पर न देखा जाने लगे।
ऐसे में केंद्र से तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करने वाले पीएम मोदी पर ही यह जिम्मेदारी आयी कि पशोपेश में पड़ी पार्टी को उबारने के लिए वह ही 'नीलकंठ' की भूमिका में उतरे।बहरहाल, देवस्थानम बोर्ड को वापस लेने की सारी तैयारी पूरी हो चुकी है। सब कुछ तय रणनीति के अनुसार हुआ तो 4 दिसम्बर के देहरादून रैली में उत्तराखण्ड को रिझाने वाली तमाम और बातों के अलावा तीर्थ-पुरोहितों के चेहरे पर मुस्कान लाने वाली यह घोषणा भी हो सकती है।