हर वर्ष बिहार में बाढ़ से तबाही, ढूढने पर भी नहीं मिल रहा राहत के लिए गठित कोसी प्राधिकार

कोसी तटबंध के बीच रहने वाले लाखों लोगों की पीड़ा को लगातार नजरंदाज किया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी भीषण बाढ़ कटाव का सामना करना पड़ रहा है....

Update: 2021-07-19 14:42 GMT

(बाढ़ आने के बाद जब लोग खुद ही बर्बाद होते है उस समय रसीद अप टू डेट कराया जाता है तब जाकर फसल क्षति की बात आती है।)

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। बिहार के कोसी क्षेत्र में एक बार फिर बाढ़ ने तबाही मचाना शुरू कर दिया है। सुपौल जिले के कोसी तटबंध के भीतर बसे आधा दर्जन प्रखंड के सैकड़ों गांव में बाढ़ में तबाह हुए हैं। नेपाल प्रभाग और सीमावर्ती इलाके में लगातार भारी वर्षा से कोसी नदी का जलस्तर बढ़ने से कोसी उफान पर है। कोसी नदी का पानी एक बार फिर तटबन्ध के भीतर बसे सैकड़ों गांव में जमकर तांडव मचा रहा है।

ऐसे वक्त में एक बार फिर कोशी क्षेत्र के लोगों को बाढ़ से राहत दिलाने व क्षेत्र के विकास के लिए गठित प्राधिकार को लेकर बहस शुरू हो गया है। हर वर्ष बाढ़ आने पर हवाई सर्वेक्षण करने वाले मुख्यमंत्री और मंत्री समेत अफसरो को "कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार" की खबर नहीं है। ऐसे में सरकार की पीड़ितों के प्रति संवेदनशीलता साफ नजर आ रही है। सरकार द्वारा ही गठित प्राधिकार से उनके मंत्री व अफसर अनजान बने हुए हैं।

कोशी तटबंध के बीच रहने वाले लाखों लोगों की पीड़ा को लगातार नजरंदाज किया जा रहा है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी भीषण बाढ़ कटाव का सामना करना पड़ रहा है। पुनर्वास की विसंगतियों के कारण वहां रहना इनकी विवशता है। इन लोगों के कल्याणार्थ, आर्थिक विकास और पुनर्वास सुनिश्चित कराने के लिए बिहार मंत्री मंडल ने 30 जनवरी 1987 को "कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार" का गठन कर, उनके लिए कार्यक्रम तय किए थे। सबसे पहले उस प्राधिकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेेेेश्वरी दुबे के निर्देेेेशन में लहटन चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया।कहा जाता है कि मुख्यमंत्री रहे जगन्नााथ मिश्र के कार्यकाल तक प्राधिकार धरातल पर रहा।

प्राधिकार के सदस्य रहे तत्कालीन सुपौल के विधायक प्रमोद सिंह कहते हैं कि बाद की सरकारोंं ने इसे संज्ञान तक नहीं लिया। छह वर्षो तक कार्य किया परन्तु बाद में वह निष्क्रिय हो गया अर्थात कहीं भी उसका कार्यलय नही है।

इसको लेकर मुहिम चला रहे कोशी नव निर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव कहते हैं कि हमलोग उसे खोजने की कोशिश किए। परन्तु उसका कार्यलय तक कहीं नही मिला। जिसके बाद थक-हार कर उस प्राधिकार के सम्बन्ध में बिहार कैबिनेट से सूचना अधिकार क़ानून के तहत से वर्तमान स्थिति, यदि भंग किया गया तो उसकी जानकारी, खर्च व कार्यों की रिपोर्ट मांगी गई। आवेदन अनेक विभागों में घूमने के बाद अंतिम कार्यालय ने कहा कि कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार सम्बन्धित सूचना मेरे पास नही है। जबकि उसमें वर्णित पीड़ित लोगों के कल्याणार्थ कार्यक्रम लागू ही नही हुए।

इतना ही नही उन लोगों की जमीन का बिना पुनर्वासित किए ही नदी की मार्ग और उसके सिल्ट भरने के लिए छोड़ दिया गया। अब जिस जमीन पर नदी बहती है, बालू भरा है उस जमीन का लगान और 4 तरह का सेस भी वे दुसरे राज्यों में पलायन करके कमाकर लाकर देते है। पहले 4 हेक्टेयर तक जमीन का लगान व सेस माफ़ था पर उसे भी वर्तमान दर से वसूली शुरू किया जाता है।

बाढ़ आने के बाद जब लोग खुद ही बर्बाद होते है उस समय रसीद अप टू डेट कराया जाता है तब जाकर फसल क्षति की बात आती है। हर साल बाढ़ में सैकड़ों लोगों की जाने जाती है। अनेक लोगों को गंभीर बीमारियों की स्थिति में समय से अस्पताल नही जाने के कारण जान गवानी पड़ती है । देश व राज्य कोविड की तीसरी लहर से मुकाबला के लिए तैयारी कर रहा है। उस समय तटबंध के बीच के लाखों लोगों के लिए एक भी उपस्वास्थ्य केंद्र चालू हालात में नही है।

यहाँ तक की गर्भावती महिलाओं छोटे बच्चों के टीकाकरण के लिए ए एन एम तटबंध के बीच के जाएं इसके लिए स्थानीय प्रशासन से बार-बार निवेदन और विनती करना पड़ता है। तब जाकर एक-दो जगह शुरू हो पाता है। तटबंध बनते समय उन लोगों के घर की जमीन इतना जमीन पुनर्वास में देने का वादा हुआ कुछ लोग पुनर्वास में बसे भी परन्तु आजीविका के अभाव में जब वे गांवों में गये तो उनके अधिकांश पुनर्वास की मिली जमीनों पर अवैद्ध कब्जा हो गया। इस तरह पहले कुछ लोग तो पुनर्वास से वंचित थे ही जिनको मिला उसमें अधिकांश लोग अवैध कब्जे से वंचित हो गयेे। जिनके कब्जे में है उनके परिवार बढने से वे नये तरह का संकट का सामना कर रहे हैै। इसलिए नये सिरे पुनर्वास के लिए सर्वे कराकर उन्हें रहने लायक जमीन देना आज भी जरूरी है।

कोशी तटबंध के जमीन नदी का तल प्रत्येक वर्ष उपर उठ रहा है सरकार वर्तमान में विश्वबैंक से कर्ज लेकर तटबंध की ऊंचाई बढ़ाकर इसका निराकरण मान रही हैै, पर आने वाले समय में गम्भीर त्रासदी के लिए खतरा भी बन रहा है। इसलिए कोशी के समस्या का समाधान ढूढना भी बेहद जरूरी है। कोशी पर पुल बनाकर जिस कोशी के विकास का दावा सरकार करती है। उस विकास में वे लोग शामिल ही नही हो पाते । उनकी कुर्बानियों पर कोशी के अन्य क्षेत्र की खुशहाली हैै व उनकी कुर्वानियों को भुला दिया गया।

वे लोग इस राज्य और देश के उतने ही नागरिक है जितने की दूसरे लोग है, पर उनको विकास के नाम पर का काला पानी की सजा क्योंदी जाती है? उनके हितों के लिए बिहार सरकार के कैबिनेट द्वारा 1987 में बनाया गया "कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार" रहता तो सरकार के ध्यान आकृष्ट कराते हुए कुछ कार्य करता पर वह भी धरातल पर लापता हो गया है। महेंद्र यादव ने कहा कि कोशी नव निर्माण मंच मांग करता है कि "कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार" को धरातल पर उतारा जाए। इसको लेकर संगठन के तरफ से मुख्यमंत्री, केबिनेट सचिव, कोशी क्षेत्र के मंत्री व जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखा गया है।

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