Farmer Protest : साल भर चले आंदोलन को खत्म करने पर SKM आज लेगा आखिरी फैसला, MSP कानून पर अड़े राकेश टिकैत, एसकेएम ने सुबह 10 बजे बुलाई आपात बैठक

Farmer Protest : राकेश टिकैत की अगुवाई वाले भारतीय किसान यूनियन सहित कुछ धड़े एमएसपी पर कानून की गारंटी के बिना आंदोलन खत्म नहीं करना चाहते। ताजा अपडेट यह है कि एसकेएम ने सुबह 10 बजे आपात बैठक बुलाई है। इस बात की संभावना है कि एसकेएम किसान आंदोलन वापस लेने का निर्णय ले सकता है।

Update: 2021-12-08 02:51 GMT

Farmer Protest : केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले एक साल से ज्यादा समय से जारी किसान आंदोलन अब खत्म होने के कगार पर है। कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले 40 से ज्यादा किसान संगठनों ने 21 नवंबर को पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर छह मांगे रखी थीं। इस बीच मंगलवार को केंद्र सरकार ने किसान संगठनों को एक विस्तृत प्रस्वाव भेजा है। हालांकि, किसान संगठनों को इस प्रस्ताव पर भी आपत्ति है।

कल यानि मंगलवार को सिंघु बॉर्डर पर इसको लेकर करीब पांच घंटे लंबी बैठक चली। अब अधिकांश किसान आंदोलन को खत्म करने के पक्ष में हैं, लेकिन राकेश टिकैत की अगुवाई वाले भारतीय किसान यूनियन सहित कुछ धड़े एमएसपी पर कानून की गारंटी के बिना आंदोलन खत्म नहीं करना चाहते।

एसकेएम ने बुलाई आपात बैठक

इस बीच ताजा अपडेट यह है कि एसकेएम ने सुबह 10 बजे आपात बैठक बुलाई है। इस बात की संभावना है कि एसकेएम किसान आंदोलन वापस लेने का निर्णय ले सकता है। तय योजना के मुताबिक यह बैठक दोपहर दो बजे होनी थी। 

केंद्र ने पहली बार लिखित में भेजा प्रस्ताव

तीन कृषि कानूनों को रद करने और एमएसपी पर काननू बनाने सहित दूसरे मुद्दों पर समिति गठित करने की घोषणा के बाद केंद्र ने पहली बार मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा के पास लिखित प्रस्ताव भेजा। इसमें किसानों की सभी मांगों को मानने का जिक्र है, लेकिन मोर्चा के नेताओं ने उक्त प्रस्ताव का स्वागत करते हुए तीन प्रमुख आपत्तियों के साथ सरकार को वापस भेज दिया है। उम्मीद जताई है कि सरकार उनकी चिंताओं पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर बुधवार तक अपनी प्रतिक्रिया देगी। इसको लेकर मोर्चा बुधवार दोपहर दो बजे पुन: बैठक करेगा। तभी किसी अंतिम निर्णय पर पहुंचा सकेगा। आंदोलन समाप्त होने की किसी प्रकार की घोषणा का मोर्चा नेताओं ने खंडन किया है।

संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता अशोक दावले ने माना कि गृह मंत्रालय की ओर प्रस्ताव आया है, लेकिन इसमें कुछ बिंदुओं पर स्पष्टता नहीं है। सरकार और मोर्चा दोनों का मानना है कि यह प्रस्ताव अंतिम नहीं है। इसमें और संशोधन होने की संभावना है। बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि प्रस्ताव में उल्लेख है कि एमएसपी पर गठित होने वाली समिति में संयुक्त किसान मोर्चा के अलावा दूसरे किसान संगठनों को भी शामिल किया जाएगा। तमाम किसान संगठनों ने तीन कृषि कानूनों पर आंदोलन शुरू किया, लेकिन बाद में सरकार के समर्थन में आंदोलन समाप्त कर दिया।

किसान संगठन कृषि कानूनों और कॉरपोरेट खेती का समर्थन व एमएसपी पर कानून बनाने का विरोध करते रहे हैं। सरकार की तरफ से किसानों को प्रस्ताव दिए जाने की बात की न तो पुष्टि की गई है और न ही खंडन। इसलिए यह माना जा रहा है कि आंदोलन को खत्म करने के लिए परदे के पीछे से प्रयास हो रहे हैं।

सबसे अहम किसानों पर दर्ज मुकदमें - चढूनी

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता युद्धवीर सिंह ने कहा कि समिति में ऐसे किसान संगठनों के आने से एमएसपी पर कानून व अन्य मुद्दों को लेकर आम सहमति बनना संभव नहीं होगा। समिति में केंद्र व राज्य सरकार के प्रतिनिधियों, कृषि वैज्ञानिकों व कृषि अर्थशास्त्रियों के शामिल करने पर मोर्चा को कोई एतराज नहीं है। मोर्चा की मंगलवार को हुई बैठक में सरकार के प्रस्ताव पर सकरात्मक विचार विमर्श किया गया है। कुछ स्पष्टता के साथ प्रस्ताव को सरकार के पास वापस भेज दिया गया है। मोर्चा के नेता गुरुनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सबसे अहम मुद्दा किसानों पर देशभर में दर्ज हजारों मुकदमों को वापस लेना।

मुकदमें वापस लेने का टाइमलाइन बताए सरकार

सरकार ने प्रस्ताव में टाइम लाइन फिक्स नहीं की है। सरकार का कहना है कि पहले आंदोलन समाप्त करो तभी मुकदमें वापस लिए जाएंगे। इस पर मोर्चा के नेता शिव कुमार कक्का ने कहा कि मध्य प्रदेश में किसानों पर पुलिस फायरिंग व किसानों के बीच हुए सघर्ष के बाद सरकार ने विधानसभा में आश्वासन दिया था कि मृतकों के परिजनों को मुआवजा व दर्ज मुकदमें वापस लिए जाएंगे। सरकार ने आज तक किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस नहीं लिए हैं। मोर्चा किसानों व आंदोलन का समर्थन करने वाले सभी पक्षों पर दर्ज किए गए मुकदमें वापस लेने की मांग करता है। इसके बगैर आंदोलन समाप्त नहीं होगा। सरकार को मुकदमें वापस करने का समय बताना चाहिए।

5 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा करे सरकार

प्रस्ताव में उल्लेख है कि सरकार सैद्धांतिक रूप से मानी है कि आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को मुआवजा मिलना चाहिए। सैद्धांतिक रूप से मानने के बजाए सरकार को घोषणा करनी चाहिए कि पंजाब सरकार की तरह प्रत्येक मृतक किसान के परिवार को पांच लाख रुपए का मुआवजा व एक सदस्य को नौकरी दी जाएगी। मोर्चा के नेताओं उम्मीद जताई है कि सरकार उनकी आपत्तियों पर खुले मन से विचार करेगी और बुधवार तक मोर्चा की पांच सदस्यी समिति को अपनी प्रतिक्रिया भेजेगी। जिससे बुधवार को दोपहर दो बजे मोर्चा की बैठक में अंतिम फैसला लिया जा सके।

सरकारी प्रस्ताव के इन बिंदुओं पर है किसान मार्चो को ऐतराज

1.  एमसपी पर प्रधानमंत्री ने स्वयं और बाद में कृषि मंत्री ने एक समिति बनाने की घोषणा की है। समिति में केंद्र सरकार, राज्य सरकार व किसान संगठनों के प्रतिनिधि व कृषि वैज्ञानिक शामिल होंगे। हम इसमें स्पष्टता करना चाहते हैं कि किसान प्रतिनिधि में संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

2. तीन कृषि कानून का समर्थन, एमसपी पर कानून बनाने का विरोध, सरकार के पक्ष में आंदोनल बीच में समाप्त करने वाले संगठनों को शामिल करना उचित नहीं। इससे समिति में आमराय कायम करना मुश्किल होगा। केवल आंदोलन करने वाले मोर्चा से संबद्ध किसान संगठन के प्रतिनिधि ही शामिल होने चाहिए।

3. जहां तक किसानों को आंदोलन के वक्त के मुकदमों का सवाल है, यूपी सरकार व हरियाणा सरकार ने इसके लिए पूर्णातय सहमति दी है कि आंदोलन समाप्त करने के तत्काल ही मुकदमें वापस लिए जाएंगे।

4. सरकार को मुकदमें समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू करने की समय सीमा बतानी चाहिए। कई राज्य सरकार ने मुकदमें वापस लेने की घोषणा की लेकिन आजतक समाप्त नहीं किए गए। खराब अनुभवों को देखते हुए सरकार लिखित व समयबद्ध तरीका अपनाए।

5. मुआवजे पर सैद्धांतिक सहमति देने के बजाए सरकार पंजाब मॉडल की दर्ज पर मृतक किसान परिवार को पांच लाख रुपए का मुआवजा व एक सदस्य को नौकरी देने लागू करने की लिखित गारंटी देनी चाहिए।

6. जहां तक बिजली बिल का सवाल है, पूर्व में सरकार के साथ वार्ता में तय हुआ था कि सरकार उक्त बिल को संसद में लेकर नहीं आएगी। लेकिन संसद की सूची में उक्त बिल अभी भी सूचीबद्ध है। इससे किसानों व आम उपभोक्ता पर बिजली का बिल बहुत बढ़ जाएगा। बिल के बिंदु नंबर 15 में जुर्माना व सजा का प्रावधान है।

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