डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईंबाबा का NIMS हैदराबाद में निधन, सर्जरी के बाद बढ़ी थी दिक्कतें

जानकारी के मुताबिक आज शनिवार 12 अक्टूबर को जीएन साईंबाबा का हार्ट काम नहीं कर रहा था, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें सीपीआर दिया लेकिन साईबाबा की जान नहीं बच सकी...

Update: 2024-10-12 17:10 GMT

Ex-Delhi University professor GN Saibaba no more : दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा का आज 12 अक्टूबर को रात लगभग 8.30 पर इलाज के दौरान NIMS हैदराबाद में निधन हो गया। लंबे समय तक माओवादियों से संबंध होने के आरोप में जेल में रहने के दौरान उनका स्वास्थ्य लगातार गिर रहा था, मगर पत्नी वसंता कुमारी द्वारा बेहतर इलाज की गुहार लगाने के बावजूद सरकार द्वारा इस तरफ कान नहीं दिया गया और इसी साल उन्हें 5 मार्च 2024 को आरोपमुक्त कर जेल से रिहा किया गया था।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रहे जीएन साईबाबा का जिन्हें साल 2014 में गै़रक़ानूनी गतिविधियां रोकथाम क़ानून (यूएपीए) के तहत गिरफ़्तार किया गया था। उन पर माओवादी संगठनों के साथ सम्बन्ध रखने का आरोप लगाया गया था। 2017 में उन्हें दोषी क़रार देते हुए अदालत द्वारा उन्हें उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई गयी, मगर 14 अक्तूबर 2022 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने जीएन साई बाबा को रिहा कर दिया था। इस मामले में सबसे ताज्जुब वाली बात यह हुई थी कि मात्र 24 घंटे के अंदर ही 15 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला त्रिवेदी की विशेष बेंच ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलट दिया था और वह जेल से नहीं निकल पाये।

जीएन साईंबाबा की मौत के बाद उनकी पत्नी बसंता ने एक बयान जारी कर बताया कि '"पिछले महीने 28 सितंबर को हैदराबाद के निम्स अस्पताल में पित्ताशय निकालने के सफल ऑपरेशन के बाद साईबाबा स्वस्थ हो गए थे, लेकिन उनके पेट में दर्द की शिकायत हुई। ऑपरेशन के छह दिन बाद पेट के अंदर उस जगह संक्रमण शुरू हो गया, जहां पित्ताशय को हटाकर स्टंट लगाया गया था।"

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बसंता आगे कहती हैं, "पिछले एक हफ़्ते से साईबाबा को 100 डिग्री फ़ारेनहाइट से अधिक बुखार और पेट में तेज दर्द हो रहा था, वो डॉक्टर की निगरानी में थे। इसके बाद 10 अक्तूबर को साईबाबा के पेट में जहां सर्जरी की गई थी वहां से मवाद निकाला गया और उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया गया था। पेट में सूजन के कारण उन्हें काफी दर्द था। सर्जरी वाली जगह के पास इंटर्नल ब्लीडिंग हो रही थी, जिससे पेट में सूजन आ गई और उनका ब्लड प्रेशर कम हो गया था।"

जानकारी के मुताबिक आज शनिवार 12 अक्टूबर को उनका हार्ट काम नहीं कर रहा था, जिसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें सीपीआर दिया लेकिन साईबाबा की जान नहीं बच सकी।

जेल से बाहर निकलने के बाद मीडिया से बातचीत में जीएन साईबाबा ने कहा था, '"मई 2014 में जब मैं जेल गया, तब एक स्वस्थ इंसान था। मुझे सिर्फ पोलियो था, लेकिन अब हार्ट की समस्या है, पैंक्रियाज में, मसल में कई तरह की बीमारियां हो गई हैं। डॉक्टर ने मुझे कई ऑपरेशन एक साथ कराने को कहा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। मेरा हार्ट सिर्फ 55 फीसदी ही काम करता है, लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा है कि डॉक्टर के बताने के बाद भी मेरा इलाज क्यों नहीं करवाया गया। मैं शौचालय (अकेले) नहीं जा सकता, मैं बिना सहारे नहा नहीं सकता. इसकी पूरी संभावना थी कि मैं जेल से जिंदा बाहर नहीं आ पाता।"

उनकी पत्नी वसंता कुमारी द्वारा 2017 में ही आशंका जतायी थी कि उनके पति को जिस हालत में रखा गया है, उनकी मौत हो सकती है और खुद साईंबाबा ने भी जेल से अपनी पत्नी को जो पत्र लिखा था उसमें लिखा था कि मैं जेल में जिंदगी की आखिरी सांसें गिन रहा हूं।

माओवादियों के साथ संबंध रखने के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा भुगतने के दौरान 2027 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा ने पत्नी एएस वसंता कुमारी को पत्र लिखा और बताया कि उनकी हालत जेल में भिखारियों जैसी कर दी गयी है। साईबाबा 90 फीसदी विकलांग थे और उनको कई रोग भी थे। अपने पत्र में साईंबाबा ने लिखा था, 'प्रिय वसंता, मुझे दस्तक दे रही सर्दियों के बारे में सोचकर ही डर लग रहा है। पहले से ही मुझे लगातार बुखार बना हुआ, परेशान हूं मैं बुखार से। मेरे पास सर्दी से बचाव के लिए एक कंबल तक नहीं है। न ही मेरे पास स्वेटर या जैकेट पहनने के लिए है, जिससे कि मैं ठंड से अपना बचाव कर सकूं। जैसे—जैसे ठंड दस्तक दे रही है मेरे पैरों में और बाएं हाथ में लगातार दर्द बढ़ता जा रहा है।'

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साईंबाबा ने आगे लिखा था, 'नवंबर से शुरू होने वाली सर्दी के दौरान मेरे लिए यहां सर्वाइव करना लगभग असंभव जैसा है। मैं यहां उस जानवर की तरह जी रहा हूं, जो अपनी अंतिम सांसों के लिए संघर्ष कर रहा हो। मैंने यहां किसी तरह ये 8 महीने बिताए हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ठंड में मैं यहां जीवित रह पाउंगा। इस बात का मुझे पूरा यकीन है। मुझे नहीं लगता कि मुझे और ज्यादा अपने स्वास्थ्य के बारे में लिखने की जरूरत है। कृपया किसी भी तरह इस महीने के आखिर तक या इससे पहले किसी वरिष्ठ वकील को मेरे केस को देखने के लिए फाइनल करो। मिस्टर गाडलिंग को मेरी जमानत अर्जी नवंबर के पहले हफ्ते या अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में ही तैयार करने को कहो। तुम्हें पता है कि अगर मेरी जमानत नहीं हुई तो मेरी स्वास्थ्य की स्थिति आउट आफ कंट्रोल हो जाएगी। इसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं होउंगा। अब मैं इस बारे में आगे से तुम्हें कुछ और नहीं कहूंगा।'

साईंबाबा अपनी पत्नी को आगे लिखते हैं, 'तुम्हें मेरी स्थिति के बारे में रेबेका जी और नंदिता नारायण से बात करनी चाहिए। इस बारे में प्रोफेसर हरगोपाल और अन्य लोगों से भी बात करो। उन्हें पूरी स्थिति समझाओ। प्लीज जल्दी कुछ करो। मैं बहुत डिप्रेस्ड हूं। इस निराशा में मुझे लगता है कि मेरी हालत एक ऐसे भिखारी की तरह हो गई है जो बिल्कुल बेसहारा है। लेकिन आप में से कोई भी एक इंच नहीं चल रहा है, कोई भी मेरी स्थिति को समझ नहीं पा रहा है।मुझे लगता है कि कोई भी मेरी स्थिति नहीं समझ पा रहा है। नहीं समझ पा रहा है कि एक 90 प्रतिशत विकलांग व्यक्ति कैसे इस स्थिति में एक हाथ से संघर्ष कर रहा है, जो कई बीमारियों से पीड़ित है। कोई भी मेरी ज़िंदगी की परवाह नहीं करता है। यह सिर्फ एक आपराधिक लापरवाही है, एक कठोर रवैया है। तुम अपना भी ध्यान रखो। तुम्हारा स्वास्थ्य मेरा और पूरे परिवार का स्वास्थ्य है। इस वक्त तुम्हारे अलावा कोई दूसरा तुम्हारा ख्याल रखने वाला नहीं है। जब तक मैं नहीं हूं, तब तक तुम्हें बिना किसी लापरवाही के अपनी खुद ही देखभाल करनी होगी।'

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