Former Justice Ashok Bhushan कौन हैं जिन्हें बनाया गया है NCLAT का अध्यक्ष, यहां पढ़ें पूरी डिटेल्स

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक भूषण ( Former Justice Ashok Bhushan ) को चार साल के लिए एनसीएलएटी ( NCLAT ) का अध्यक्ष नियुक्त किया।

Update: 2021-10-29 11:55 GMT

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक भूषण को 4 साल की अवधि के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण का अध्यक्ष नियुक्त किए गए।

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अशोक भूषण ( Former Justice Ashok Bhushan ) को 4 साल की अवधि के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण ( NCLAT ) का अध्यक्ष नियुक्त किया है। पूर्व न्यायाधीश अशोक भूषण जुलाई, 2021 में सुप्रीम कोर्ट के जज के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ( Appointments Committee of the Cabinet ) ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण ( NCLAT ) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति की तारीख से चार साल की अवधि के लिए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इस बारे में कारपोरेट कार्य मंत्रालय को आवश्यक सूचना भेज दी गई है।

NCLAT क्या है

जून, 2016 में एनसीएलटी की स्थापना की गई थी। 2017 में नया दिवालिया कानून प्रभाव में आने के बाद इसे कानूनी ताकत मिली। इसका मकसद कंपनी के दिवालिया होने की स्थिति पर मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के पास भेजना है। ताकि कंपनी के रिवाइव के लिए इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल नियुक्त किया जा सके। इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल का काम यह होता है कि वह कंपनी को रिवाइव करने का प्रयास करे। अगर कंपनी 180 दिन के भीतर रिवाइव हो जाती है और वह सामान्य रूप से कामकाज करना शुरू कर देती है। अन्यथा, उस कंपनी को दिवालिया मानकर आगे की कार्रवाई शुरू कर दी जाती है।

NCLAT के पास विचाराधीन हैं 9073 मामले

12 फरवरी, 2021 को बैंकों को बैंकिंग रेग्युलेटर ने आदेश दिया था कि अगर डिफॉल्टर अपने रिपेमेंट प्लान के साथ 6 महीने में हाजिर नहीं हों तो उस मामले को सीधे एनसीएलटी में लाया जाए। बैंकिंग रेग्युलेटर का कहना था कि ऐसा करने से कोर्ट में इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी होगी। 31 जनवरी तक अदालतों में इस तरह के तकरीबन 9073 मामले विचाराधीन हैं। इन मामलों में 2511 दिवालियापन, 1,630 मामले विलय और 4,932 मामले कंपनी ऐक्ट की अन्य धाराओं से जुड़े हैं।

जस्टिस अशोक भूषण के अहम फैसले :

राम मंदिर

इलाहाबाद उच्च न्यायालय से 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जज बने जस्टिस शो भूषण कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं। जस्टिस भूषण सुप्रीम कोर्ट की उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ के हिस्सा थे, जिसने नवंबर, 2019 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने वाला फैसला सुनाया था। केंद्र सरकार को सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया था।

आधार योजना

पूर्व जस्टिस अशोक भूषण आधार योजना को सितंबर, 2018 संवैधानिक रूप से वैध ठहराने वाले पांच जजों के संविधान पीठ का भी हिस्सा थे। ये बात अलग है कि संविधान पीठ ने आधार को बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिल से लिंक करने के प्रविधान को खारिज कर दिया था।

मराठा आरक्षण

जस्टिस भूषण ने उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता की थी, जिसने 29 साल पुराने मंडल आयोग से संबंधित फैसले को दोबारा बड़ी पीठ के सामने भेजने से इनकार कर दिया था, जिसमें आरक्षण के कोटे को अधिकतम 50 फीसद तय किया गया था।

इसके अलावा जस्टिस भूषण की बेंच ने एयरलाइंस कंपनियों को लॉकडाउन के कारण कैंसल की गई फ्लाइट्स के टिकटों का पैसा वापस करने का निर्देश दिया था। उन्हीं की बेंच ने केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक को मजबूर किया कि वो बैंकों को कोविड काल में लोन ईएमआई नहीं चुका पाने वालों से ब्याज नहीं वसूलने का निर्देश दे। उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने सामाजिक कल्याण योजनाओं का फायदा उठाने के लिए असंगठित क्षेत्र के सभी 38 करोड़ कामगारों का रजिस्ट्रेशन करने में हीला-हवाली पर सरकार की जबर्दस्त क्लास ली थी। बेंच ने सरकार के रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि यह 'अक्षम्य उदासीनता' है।

कौन हैं पूर्व जस्टिस अशोक भूषण

न्यायाधीश अशोक भूषण उत्तर प्रदेश के जौनपुर से हैं। 65 वर्षीय भूषण 23 वर्ष की उम्र में 1979 में लीगल प्रोफेशन से जुड़े और 2001 में इलहाबाद हाई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए थे। 13 मई, 2016 को उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में हुई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में कुल 5 वर्ष दो महीने की सेवा दी।

न्यायमूर्ति भूषण का सफर

- 1979 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

- 06 अप्रैल, 1979 को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में वकील के तौर पर पंजीकरण कराया।

- 24 अप्रैल, 2001 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश बने।

- 10 जुलाई, 2014 को केरल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने।

- मार्च, 2015 में केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली।

- 13 मई, 2016 को उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया।

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