इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी से बड़ा मजाक कुछ नहीं है | Freedom of Expression is just a joke
Freedom of Expression is just a joke | हमारे देश में तमाम न्यायालय, देश का राजा और मंत्री-संतरी समय-समय पर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं| इसके बाद कुछ दिनों तक देश के मीडिया का कंकाल इन वक्तव्यों को प्रमुखता से प्रचारित करता है और साथ ही बताता है कि यह आजादी तो हमारे संविधान ने दी है|
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Freedom of Expression is just a joke | हमारे देश में तमाम न्यायालय, देश का राजा और मंत्री-संतरी समय-समय पर अभिव्यक्ति की आजादी की बात करते हैं| इसके बाद कुछ दिनों तक देश के मीडिया का कंकाल इन वक्तव्यों को प्रमुखता से प्रचारित करता है और साथ ही बताता है कि यह आजादी तो हमारे संविधान ने दी है| इसी देश की हकीकत यह है कि एक घोषित और सजायाफ्ता बलात्कारी और पत्रकार का हत्यारा सरे आम सरकारी जेड श्रेणी की सुरक्षा में घूमता है और बलात्कार और ह्त्या की रिपोर्टिंग करने जा रहे पत्रकार सिद्दिक कप्पन (Siddique Kappan) , जो हाथरस पहुँच भी नहीं पाए थे, आज तक यूएपीए (UAPA) के तहत बंद हैं| लखीमपुर खेरी (Lakhimpur Kheri) में किसानों के साथ ही रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकार पर सरे आम गाडी चढाने वाला आजाद घूम रहा है और जिसके नाम पर वह गाड़ी है, वह प्रधानमंत्री का विश्वासपात्र मंत्री है और प्रधानमंत्री उसी राज्य को असंख्य बार राज्य की सुरक्षा व्यवस्था देश में सबसे बेहतर है का तमगा दे चुके हैं|
दरअसल अब देश में न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सभी जांच एजेंसियों और दूसरे संवैधानिक विभागों पर ताला लगा देना चाहिए| आज के दौर में इनकी जरूरत ख़त्म हो चुकी है फिर नाहक इनपर अरबों रुपये भी खर्च हो रहे हैं| इनके बंद होने के बाद कम से कम जनता की उम्मीद तो ख़त्म होगी| आज के दौर में प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और कंकाल मीडिया ही सत्ताभक्त पुलिस के साथ देश चला रहे हैं| उन्हें जो अपराधी लगता है वही अपराधी होता है, और जितने अपराधी हैं सत्ता को उन्ही की जरूरत है और वे आजाद घूमते हैं| सत्ता के बंद लिफाफों के आधार पर न्यायालय के आदेश आते हैं, सत्ता की मरजी पर चुनाव आयोग को भड़काऊ भाषण नजर आता है और सत्ता के इशारे पर जांच एजेंसियां काम करती हैं| सत्ता के गुनाहों को प्रवचन की तरह प्रसार करने का काम मीडिया कर रही है, और मोर्फेड विडियो से सबूत भी गढ़ लेती है| सत्ता की नजर में पूरा देश एक तमाशा है – कभी पूरी सत्ता देश छोड़कर राज्यों के चुनाव का खेल खेलती है, कभी हिजाब का खेल खेलती है, कभी कृषि कानूनों का खेल खेलती है और कभी कश्मीर-कश्मीर करती है| इन सबमें मेनस्ट्रीम मीडिया सत्ता के खेल में डबल्स पार्टनर की भूमिका बखूबी निभाती है|
कुछ समय पहले राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) ने मेनस्ट्रीम मीडिया की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्न उठाये थे, और अब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने कहा है कि मेनस्ट्रीम मीडिया की विश्वसनीयता कम हो रही है और वास्तविक और जनता से जुड़े समाचार तो केवल स्वतंत्र पत्रकार ही कर रहे हैं| किसी लोकतांत्रिक देश की इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि जनता मेनस्ट्रीम मीडिया को, न्यायालयों को और सभी संवैधानिक संस्थाओं को अविश्वसनीय करार दे| मीडिया में यह अविश्वास तो किसानों ने और सीएए (CAA Protests) आन्दोलनकारियों ने खुलेआम दिखाया था, पर सत्ता की गोद में बैठने की आदत से लाचार मीडिया लगातार लचर होती जा रही है|
मेनस्ट्रीम मीडिया के सत्ता-भक्त होने के बाद से निष्पक्ष मीडिया अब कुछ न्यूज़ पोर्टल तक सिमट कर रह गया है और लगातार सत्ता, जांच एजेंसियों और अब तो न्यायालयों का शिकार होता जा रहा है| अभी हाल में ही खोजी और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले न्यूज़ पोर्टल, द वायर (The Wire), पर तेलंगाना के रंगारेड्डी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में कोवेक्सिन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक (Bharat Biotech, Manufacturer of Covaxin) ने 100 करोड़ रुपये के मानहानि का मुकदमा दायर किया है| कंपनी के अनुसार वायर में अनेक ऐसे लेख प्रकाशित किये गए जिनसे कंपनी की साख को बट्टा लगा और कोवैक्सिन को लेकर लोगों में अविश्वसनीयता बढी| इसमें से अधिकतर लेख ऐसे विषयों – मसलन इसके परीक्षण, शरीर में एंटीजेन की जांच और परिणामों – पर थे, जिन विषयों पर दुनियाभर में प्रश्न उठाये गए थे|
इस मामले पर सुनवाई करते हुए 23 फरवरी को ऐडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज ने वायर को आदेश दिया कि वे अपने पोर्टल से भारत बायोटेक और कोवैक्सिन से जुडी सभी 14 आर्टिकल 48 घंटे के भीतर हटा दें और भविष्य में इस सम्बन्ध में कोई आर्टिकल प्रकाशित नहीं करें| भारत बायोटेक ने अपने मुकदमें में द वायर के प्रकाशक, द फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म, इसके तीनों संस्थापक संपादकों – एमके वेणु, सिद्धार्थ भाटिया और सिद्धार्थ वरदराजन – के साथ ही 9 पत्रकारों के नाम को भी शामिल किया है| इस निर्देश को क़ानून से सम्बंधित पोर्टल बार एंड बेंच (Bar & Bench) ने प्रकाशित किया है|
कुछ समाचार पत्रों और न्यूज़ पोर्टल पर ही इस खबर को प्रकाशित किया गया है, पर कहीं भी प्रमुखता नहीं दी गयी है| सबका स्त्रोत कानून संबंधी पोर्टल बार एंड बेंच ही है, पर शायद ही कहीं इस मामले पर वायर का पक्ष प्रस्तुत किया गया है| किसी समाचार पत्र ने इस खबर को अभिव्यक्ति की आजादी ने नहीं जोड़ा है| इसके विपरीत कुछ न्यूज़ पोर्टल पर इस खबर के साथ वायर पर ही प्रश्न उठाये गए हैं| ओपइंडिया नामक पोर्टल पर इस खबर के साथ वायर के लिए लेफ्टिस्ट प्रोपगंडा पोर्टल जोड़ा गया है और बताया गया है कि इन लोगों का मकसद यह था कि देश में यहाँ की नहीं बल्कि अमेरिका की वैक्सीन का इस्तेमाल हो| इसे आप ओपइंडिया की मानसिक विकलांगता समझ सकते हैं कि उनके अनुसार लेफ्टिस्ट प्रोपगंडा पोर्टल अमेरिका के वैक्सीन की वकालत कर रहा है|
न्यायालयों में अभिव्यक्ति की आजादी का जो मजाक बनाया जाता है, प्राकृतिक न्याय की खिल्ली उडाई जाती है और पूंजीपतियों को ही न्याय दिया जाता है – यह समझने के लिए 24 फरवरी को वायर में प्रकाशित किये गए तीनों संपादकों की तरफ से जारी विज्ञप्ति को पढ़ना जरूरी है| इसके अनुसार, "हमें इस फैसले की कोई प्रति नहीं मिली है, इसके बारे में लीगल पोर्टल बार एंड बेंच में प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला| द वायर और इसके संपादकों को कोई नोटिस नहीं दिया गया था और ना ही किसी भी तरह से उन्हें मुकदमे की सूचना दी गयी| किसी भी स्टेज पर भारत बायोटेक या इनके किसी कानूनी सलाहकार ने हमसे कभी संपर्क किया| वायर के पक्ष को सुने बिना ही इस आदेश को पारित कर दिया गया, हम इस आदेश के खिलाफ कानूनी रास्ता अपनाएंगे| प्रेस की आजादी का अधिकार संविधान से मिला है और हम प्रेस की आजादी को कुचलने की किसी भी कार्यवाही का विरोध करेंगे|"
इस देश में कदम-कदम पर निष्पक्ष और स्वतंत्र प्रेस की आजादी को कुचलने का कुचक्र किया जा रहा है| अब तो पुलिस भी अपनी नाकामियाँ छुपाने के लिए प्रेस को कुचलने में व्यस्त है| 24 फरवरी को उत्तराखंड में पिथोरागढ़ पुलिस ने न्यूज़ पोर्टल, जनज्वार, के पत्रकार किशोर कुमार (Kishor Kumar, Reporter with News Portal, Janjwar) को गिरफ्तार कर हिरासत में डाल दिया, उनपर आरोप लगाया गया कि वे सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने वाली रिपोर्टिंग कर रहे हैं| दरअसल उन्होंने एक खबर की थी, जिसके अनुसार पिथोरागढ़ में कुछ डीजे वालों ने दलित लड़कियों को घुमाने के बहाने कार में बैठाकर उनका बलात्कार किया| इसके साथ ही उन्होंने इसकी विडियो खबर के लिए पीड़ित लड़कियों के घर वालों से बातचीत भी की थी| जाहिर है, यह खबर पुलिस की नाकामी का बड़ा सबूत थी, सो पुलिस ने मामले की जांच करने के बदले इसे उजागर करने वाले पत्रकार किशोर कुमार को ही हवालात में डाल दिया|
इस दौर में अभिव्यक्ति की आजादी, सत्ता और न्यायालयों द्वारा जनता को दी जाने वाली सबसे भद्दी गाली लगती है| आज इस देश में आजाद वही है, जिसका जमीर मर चुका है और गुलामी की जंजीरों से जकड चुका है| तथाकथित न्यू इंडिया के अमृत काल में जो गुलाम है, बस वही आजाद है|