सरकारों के चहेते गौतम अडानी ने नहीं भरी 1400 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी, जनता को करोड़ों का दंड

याचिकाकर्ता संजय बापट बताते हैं कि इस महामारी के समय में सरकार आरबीआई से पैसे लेकर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं दे रही है तो सरकार के स्टाम्प ड्यूटी और वाटरफ्रंट रॉयल्टी के पैसे से कई अस्पताल बन सकते हैं और कई हजार वेंटीलेटर आ सकते हैं....

Update: 2021-05-28 11:01 GMT
(लॉकडाउन में अदानी बंदरगाह को एक भी दिन बंद नहीं रखा गया जिसके कारण बंंदरगाह पर रिकॉर्ड लोडिंग-अनलोडिंग हुई है)

कच्छ से दत्तेश भवसार की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। कोरोना काल मे सरकार नियमों के उल्लंघन के नाम पर जनता से करोड़ों रुपये वसूल चुकी है और भारतीय रिजर्व बैंक से भी कई लाख करोड़ महामारी के नाम पर ले चुकी है। इसके अलावा पीएम केयर्स फंड के नाम पर भी देश-विदेश के लोगों से अरबों रुपये ले चुकी है। लेकिन अपने चहेते उद्योगपति गौतम अडानी के हजारों करोड़ रुपए स्टाम्प ड्यूटी के वसूलने में नाकाम रही है।

अडानी से स्टाम्प ड्यूटी और वाटरफ्रंट रॉयल्टी कई वर्षों से नहीं वसूली जा रही। जबकि यह आंकड़ा हजारों करोड़ का बैठता है। मास्क न पहनने पर जुर्माना हो या अन्य जुर्माने हों, आम जनता से हर एक बात के लिए जुर्माना लिया जाता है। वहीं सरकार अपने चहेते उद्योगपति गौतम अडानी से कई हजार करोड़ रुपये नहीं वसूल पा रही है। लॉकडाउन में जब मुंबई समेत कई बंदरगाह बंद थे तब भी अदानी का कच्छ स्थित मुंद्रा बंदरगाह एक भी दिन बंद नहीं रहा। प्रधानमंत्री ने आपदा में अवसर शायद अदानी के लिए ही कहा था।

इस मामले में वर्ष 2017 में गुजरात हाईकोर्ट में दो जनहित याचिका दायर की गईं थीं, जिनका नंबर 57/2017 और 198/2017 है। इसके तहत वर्ष 2007 से 2017 तक अदानी ने स्टाम्प ड्यूटी नहीं भरी है और वाटरफ्रंट रॉयल्टी भी अपने ग्राहकों से पूरी वसूल करके सरकार में आंशिक जमा करवाई है। 

याचिकाकर्ता संजय बापट बताते हैं कि इस महामारी के समय में सरकार आरबीआई से पैसे लेकर लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं दे रही है तो सरकार के स्टाम्प ड्यूटी और वाटरफ्रंट रॉयल्टी के पैसे से कई अस्पताल बन सकते हैं और कई हजार वेंटीलेटर आ सकते हैं। हाइकोर्ट 2017 की दोनों याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करे और उनसे सारे पैसे वसूले जाएं और महामारी के समय में इन पैसों का सदुपयोग किया जाय।

इस जनहित याचिका में वकील जेमिनी बहन पटेल बताती हैं कि स्टाम्प ड्यूटी का केस दायर करते समय 2007 से 2017 तक की स्टाम्प ड्यूटी अंदाजन 1400 करोड़ रुपए की थी जो शायद आज की तारीख में पेनल्टी के साथ कई हजार करोड़ हो चुके होंगे और 2017 के बाद भी अदानी को कई हजार हेक्टर जमीन का आवंंटन हो चुका है उसकी भी स्टाम्प ड्यूटी बाकी है। अगर इनका हिसाब जोड़ा जाए तो रकम 5 से 6 हजार करोड़ तक भी जा सकती है जबकि वाटरफ्रंट रॉयल्टी का आंकड़ा अलग से है।

वाटरफ्रंट रॉयल्टी के मामले में तो सरकार के खिलाफ भी धोखाधड़ी का मामला बन सकता है। हाईकोर्ट के वकील नरेन्द्र जैन बताते हैं कि इस मामले में 2017 से अदानी और गुजरात सरकार को नोटिस जा चुका है, पर चार साल से गुजरात सरकार सही हिसाब करके हलफनामा दायर नही कर रही है। अदानी ग्रुप अपने ग्राहकों से पूरी वाटरफ्रंट रॉयल्टी वसूल कर रही है लेकिन सरकार में कंसेसन रेट से जमा करवाती है जबकि वर्ष 2010 में ही पूरी वाटर फ्रंट रॉयल्टी चुकाने का आदेश हो चुका है।

भारत और एशिया में अव्वल आने वाले धनिक अपनी ही सरकारों को कैसे चुना लगाते हैं, यह इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। लॉकडाउन में छोटे और मझौले व्यापारियों की हालत बद से बदतर हो गई है। ऐसे में उनसे सारी सरकारों ने हजारों करोड़ रुपए दंड स्वरूप लिया है, लेकिन अपने चहेते उद्योगपति को चार हाथो से पैसे बांटने का काम इसी सरकार ने किया है।

लॉकडाउन में कच्छ के मुंद्रा स्थित अदानी बंदरगाह को एक भी दिन बंद  नहीं रखा गया जिसके कारण अदानी बंंदरगाह पर रिकॉर्ड लोडिंग-अनलोडिंग हुई है। आपदा में यह अवसर गौतम अदानी ने सरकार की मेहरबानी से ही प्राप्त किया है। 

लॉकडाउन में अडानी पोर्ट चालू होने की शिकायत करने वाले एक आरटीआई कार्यकर्ता पर भी एफआईआर दर्ज की गयी है। अपने चहेतों को चार हाथ से रेवड़ी बांटने वाली इस बेईमानी के बाद भी "सब कच्छ चंगा सी" का नारा लगा रहे हैं। अब आप ही तय करिये क्या चंगा है।

Tags:    

Similar News