Govardhan Puja 2021: गोवर्धन पूजा के बहाने आंदोलित किसानों ने आस्था व परंपराओं के साथ दिखाया अपना नाता

Govardhan Puja 2021: तीन कृषि कानून के विरोध में आंदोलित किसानों ने 5 नवंबर दिन शुक्रवार को टिकरी बार्डर पर गोवर्धन पूजा का आयोजन किया। किसानों का मानना है कि आंदोलन में एकजूटता के पीछे अपने अधिकारों को लड़ कर ले लेने के जज्बे के साथ ही अपनी संस्कृति व परंपराओं से गहरा नाता रखना भी प्रमुख कारण है।

Update: 2021-11-05 17:20 GMT

Govardhan Puja 2021: तीन कृषि कानून के विरोध में आंदोलित किसानों ने 5 नवंबर दिन शुक्रवार को टिकरी बार्डर पर गोवर्धन पूजा का आयोजन किया। किसानों का मानना है कि आंदोलन में एकजूटता के पीछे अपने अधिकारों को लड़ कर ले लेने के जज्बे के साथ ही अपनी संस्कृति व परंपराओं से गहरा नाता रखना भी प्रमुख कारण है। लिहाजा किसानों ने आंदोलन स्थल पर दीपावली भी मनाई व दूसरे दिन गोवर्धन पूजा भी। साढ़े ग्यारह माह से सड़कों पर डटे किसानों के आंदोलन को तोड़ने की तमाम सरकारी कोशिश अब तक नाकाम रही है। इसके पीछे किसानों की आंदोलन के प्रति एकजूटता के साथ ही उनके संस्कृति के साथ गहरा नाता का भी होना प्रमुख है।

दीपावली के दिन आंदोलनरत किसानों ने पटाखे तो नहीं फोड़े पर अपने खो चुके साथियों को जरूर याद किया। आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के सम्मान में एक- एक दिये जलाए तथा शहीद साथियों को इसी बहाने याद किया। टिकरी बार्डर पर दीपावली के दूसरे दिन किसानों ने गोवर्धन पूजा भी मनाया। हर दिन की तरह धरना स्थल पर सुबह से ही सभाएं होती रहीं,जिसमें वक्ताओं का सरकार केे प्रति आक्रोश खुब दिखा। किसान नेता राकेश टिकैत ने तो एक चैनल से वार्ता के दौरान भी कह दिया कि सरकार अगर पांच साल चल सकती है,तो आंदोलन क्यों नहीं। इसी बहाने राकेश टिकैत ने जरूरत पड़ने पर आंदोलन को लंबे समय तक जारी रखने का सरकार को संदेश देने का काम किया।

आंदोलित किसानों का मानना है कि पशु पालन से गोवर्धन पूजा का सीधा नाता है। किसान की बात आते हीं पशुपालन,गोबर से लेकर गोबर के खाद जैसे पारंपरिक खेती व उत्पादन के साधनों की याद आ जाती है। लेकिन अगर गौर करें तो यह सच्चाई है कि खेती को उददयोग का दर्जा देने की बात करने वाली सरकारों ने ऐसा तो कुछ भी नहीं किया पर आधूनिकता के नाम पर किसानों के हल छीन लिए तो गोबर की खाद की जगह अधिक उत्पादन दिलाने के नाम पर रासायनिक खाद को जबरन थोप दिया। लिहाजा किसान भी लगातार पशु पालन से पीछे छूटते चले गए। अब किसानों की खेती पर भी कब्जा कर लेने की साजिश होने लगी है, जिसे नाकाम करने के लिए साढ़े ग्यारह माह से चले आ रहे किसानों के आंदोलन उदाहरण के रूप में प्रमुख है।

ऐसे में किसान सरकार के काले कानून का विरोध करने के लिए हर स्तर पर अपना प्रदर्शन करने को तैयार है। जिसमें आस्था के सवाल पर किसानों को आपस में लड़ाने की सरकारी साजिश का जवाब देने के लिए ये दीपावली व गोवर्धन पूजा तक का आयोजन कर अपनी सांस्कृतिक पहचान को कायम रखने की बात अनचाहे में सरकार को बता दी है।

किसानों के पशुपालन से रहा है गोवर्धन पूजा का नाता

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार धरती पर अपनी पूजा बंद कराए जाने से नाराज होकर देवराज इंद्र ने धरती पर इतनी भयंकर बारिश कराई, जिससे गोकुल में बाढ़ आ गई। ऐसे में श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया, जिसके तले आकर सभी गोकुल वासियों की जान बच गई। तब से ही गोवर्धन पूजा होती आ रही है। गोवर्धन पर्वत पर अन्न, खील, लावा, मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है, जो खेती किसानी से जुड़ा साधन है, पूजा के विधि को भी देखें तो गोवर्धन पूजा के लिए सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से भगवान गोवर्धन का चित्र बनाया जाता है। इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर भगवान की पूजा की जाती है।

इस पर्व के जरिये मनुष्य और प्रकृति के बीच का सीधा संबंध भी नजर आता है। गोवर्धन पूजा के पहले पशुपालक अपने जानवरों को सजाते संवारते हैं। खास तौर पर गाय और भैसों को सुंदर तरीके से सजाकर उनकी पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गौमाता को मां गंगा की तरह पवित्र माना गया है। उन्हें मां लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है।

गोवर्धन पूजा के दिन गोवंश मानकर ट्रैक्टर पूजा की नई परंपरा मध्य प्रदेश के श्योपुर, बड़ौदा व कराहल में पिछले दस सालों से चल रही है। यहां के किसानों का मानना है कि अब बैलों की जगह ट्रैक्टर ही हमें अनाज दे रहे और हमारा भंडार भर रहे हैं। इसलिए उनकी पूजा से ही धन-धान्य में वृद्धि होगी। इसी मान्यता के आधार पर लगभग डेढ़ हजार किसान इस दिन विधि-विधा न से ट्रैक्टर की पूजा करते हैं।

बड़ौदा में सर्वाधिक 800, श्योपुर में 400 और कराहल में 300 किसान यह पूजा करते हैं। इस दौरानं अपने-अपने ट्रैक्टर व गोवर्द्धन पूजा के लिए बैलों को अलग-अलग तरीके से सजाया जाता है। गोवर्धन (भगवान कृष्ण की प्रतिमा) भी गाय के गोबर से बनाए जाते हैंे। गोवर्धन पूजा शाम को और सुबह बैलों का पूजन होता है। उनके सींगों को एक जैसा नुकीला बनाकर उन्हें रंगा जाता है। मोरपंख और कौड़ियों का सुंदर हार पहनाया जाता है।

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