Disinvestment Drive : फिर से लगेगी सरकारी कंपनियों की 'सेल', जल्दी ही शुरू होगी इन कंपनियों की बिकवाली
Disinvestment Drive : BEML और नागरनार स्टील प्लांट की बिकवाली विभिन्न कारणों से रुकी हुई है। कहीं डीमर्जर एक वजह है तो कहीं कंपनी मामलों के मंत्रालय द्वारा नागरनार स्टील प्लांट के विनिवेश को अभी तक हरी झंडी नहीं दिखाना एक कारण रहा है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, PDIL की बिक्री भी जल्दी ही शुरू होगी। निजीकरण की वेदी पर टांगी जा चुकी कुछ सरकारी कंपनियों को बंद करने का फैसला भी केंद्र सरकार जल्द ही लेगी। इनका मामला भी लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ था...
Disinvestment Drive : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चालू वित्त वर्ष में विनिवेश का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकारी कंपनियों की सेल फिर से लगाने जा रही है। बिकवाली की सूची में सार्वजनिक क्षेत्र की कई बड़ी कंपनियां हैं। सरकार को इन्हें बेचकर बजट में निर्धारित 65 हजार करोड़ का लक्ष्य प्राप्त करने की उम्मीद है। हालांकि, इससे पहले सरकार भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) को बेचने में नाकाम हो चुकी है।
बिकवाली की दौड़ में कंपनियां
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SCI), रक्षा उत्पाद बनाने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की भारत अर्थ मूवर लिमिटेड (BEML), इंजीनियरिंग सामान बनाने वाली पीडीआईएल (PDIL), राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC) के नगरनार स्टील प्लांट जैसी कंपनियां बिकवाली की दौड़ में शामिल हैं। इसके अलावा सरकार एक सरकारी बैंक और बीमा कंपनी को भी बेचने की सोच रही है। कोविड महामारी के कारण इनकी बिक्री में पहले रुकावट आई थी। सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार किसी भी समय SCI के डीमर्जर को हरी झंडी दिखा सकती है। इसी के साथ कंपनी को बेचने की कोशिश और तेज हो जाएंगी। यह अलग बात है कि दुनियाभर की जहाजरानी कंपनियां कोविड महामारी के झटके से पूरी तरह से उबर नहीं पाई हैं। फिर भी सरकार अपने खजाने को भरने के लिए इसी वित्त वर्ष में SCI को बेचने का जोखिम उठाना चाहती है।
अटकी हुई हैं इन कंपनियों की बिकवाली
BEML और नागरनार स्टील प्लांट की बिकवाली विभिन्न कारणों से रुकी हुई है। कहीं डीमर्जर एक वजह है तो कहीं कंपनी मामलों के मंत्रालय द्वारा नागरनार स्टील प्लांट के विनिवेश को अभी तक हरी झंडी नहीं दिखाना एक कारण रहा है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, PDIL की बिक्री भी जल्दी ही शुरू होगी। निजीकरण की वेदी पर टांगी जा चुकी कुछ सरकारी कंपनियों को बंद करने का फैसला भी केंद्र सरकार जल्द ही लेगी। इनका मामला भी लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ था। इनमें कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां भी हैं, जिनका निजीकरण किया जाना है। कुछ कंपनियां पहले ही बंद हो चुकी हैं और उम्मीद की जा रही है कि कुछ और हमेशा के लिए बंद होकर निजीकरण की भेंट चढ़ जाएंगी।
अभी तक की सेल से मिले 24 हजार करोड
केंद्र सरकार ने सरकारी कंपनियों की सेल लगाकर 65 हजार करोड़ रुपए प्राप्त करने का लक्ष्य बजट में रखा था, लेकिन अभी तक उसे अपने प्रयास में केवल 24 हजार करोड़ से कुछ ज्यादा रकम ही प्राप्त हो सकी है। अब इन कंपनियों को बेचकर और हिंदुस्तान जिंक, पारादीप फॉस्फेट जैसी कंपनियों की बाकी बची हिस्सेदारी भी बेचने के बाद सरकार को उम्मीद है कि लक्ष्य पूरा हो जाएगा।