Ground Report : महामारी, लॉकडाउन और त्रासदी के बीच जनता महानगरों से फिर पलायन को होने लगी मजबूर

बहराईच के रहने वाले शेषराम पाल बम्बई से वापस आ रहे हैं, बताते हैं कि जब खाने को कुछ नहीं है, सब कुछ बंद हो चुका है तो वहां रहकर क्या करते। ना नहाने को मिल रहा है ना खाने को मिल रहा है सब छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं। कोई 10 रूपये तक देने को राजी नहीं है.....

Update: 2021-04-17 05:36 GMT

मनीष दुबे की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार, कानपुर। लॉकडाउन की त्रासदियों के बीच महानगरों से फिर से मजदूरों कामगारों का पलायन शुरू हो चुका है। मुंबई से चलकर लखनऊ जा रहा पुष्पक एक्सप्रेस से हजारों की तादाद में मजदूर, छात्र, रेहड़ी-पटरी दुकानदार अपने घरों को लोटने पर मजबूर हो रहे हैं। इन सबके पीछे जो नाकामी है उसकी जिम्मेदार पूरी तरह से सरकार है। सत्ता को चाटने में मस्त नेता व चुनाव आयोग एक दूसरे की खुजाने में मशरूफ है, तो आमजनता मरने को।

अभी बीते साल के मार्च महीने में देश के अलग-अलग हिस्सों की लाखों-लाख जनता ने जो दिन देखा था उससे भी सरकार की नींद नहीं टूटी। नंगे पांव सैंकड़ों मील भूखे पेट पैदल चलते मजबूर लोग आज भी आंखों से ओझल नहीं हो सके हैं और अब फिर से हालात पहले से भी अधिक खराब हैं। नेता सरकार कुर्सी का लालच लिए बेशर्मी पर उतरी हुई है। सरकार ने बीते साल लाखों लाख दरबदर हुए लोगों के लिए कहा भी था कि कितने मजदूर कहां गए उनके पास कोई डाटा नहीं है।

बम्बई से चलकर लखनऊ जा रही 02533 पुष्पक एक्सप्रेस सुबह लगभग 6:40 पर कानपुर रूकी। जनज्वार संवाददाता ने ट्रेन में बैठे सैंकड़ों लोगो से उनके वापस आने का कारण पूछा। जिसमें हमें लॉकडाउन के बीच खराब होते हालातों का जिक्र किया गया। स्कूल-कॉलेज, रोजगार, काम सब ठप हो चुका है। ऐसे में कोई किसी बाहर के शहर में कैसे रूक सकता है और रूक कर करेगा भी तो क्या? मजदूरों कामगारों के पलायन की ये अभी शुरूआत है।

बहराईच के रहने वाले शेषराम पाल बम्बई से वापस आ रहे हैं, बताते हैं कि जब खाने को कुछ नहीं है, सब कुछ बंद हो चुका है तो वहां रहकर क्या करते। ना नहाने को मिल रहा है ना खाने को मिल रहा है सब छोड़-छोड़कर भाग रहे हैं। कोई 10 रूपये तक देने को राजी नहीं है। सब कुछ बंद हो चुका है, काम धाम कहीं कुछ नहीं बचा है। जब कुछ है नहीं तो इससे अच्छा अपने घर पर रहो। जा रहे हैं। शेषराम बताते हैं वह बहराईच जा रहे हैं, अपना घर है वहां पर।

सुल्तानपुर निवासी आशीष बम्बई में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। लॉकडाउन लगा तो वह अपने घर भागने को विवश हो गए। आशीष कहते हैं बम्बई में 14 तारीख की रात से सबकुछ बंद कर दिया गया। उनका संस्थान भी बंद हो गया जहां वो पढ़ाई की तैयारी कर रहे थे। बम्बई में सबकुछ बंद हो जाने के बाद खाने का सामान तक नहीं मिल पा रहा था, स्टेशनो तक में जाने की मनाही कर रहे हैं, वहां। ऐसे में हम लोग अपने-अपने घरों को जाने को मजबूर हो रहे हैं।

पलायन की इन तस्वीरों के बीच कुछ नौजवानो ने ट्रेन के अंदर की विसंगतियां भी गिनाईं। लोगों का कहना था कि ट्रेन के अंदर किसी तरह का शोसल डिस्टेंस नहीं हो पा रहा है। ना सेनेटाईजर है और ना ही अनगिनत लोगों ने मास्क तक लगा रखा है। संक्रमण कितनी तेजी से फैल रहा है, ये सारी जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार ने हमें इन हालातों में ऐसे मरने के लिए छोड़ दिया है जैसे हम लोग कोई अनाथ या फिर कीड़े-मकोड़े हों।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बम्बई, छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार सहित तमाम राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर कहर ढ़ा रही है। जिम्मेदार जनता को मरने के बाद आंकड़े छुपा रही है। सरकार की नाकामी के चलते अस्पताल तो अस्पताल मरने के बाद श्मशान तक नसीब नहीं हो रहा है। ऐसे में जनता को खुद का बचाव खुद ही करना होगा। क्योंकि इस सबके लिए सरकारें ना कभी जिम्मेदार रही हैं ना ही आगे होंगी। 

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