Gujarat Riots 2002 : पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार भी गिरफ्तार, गुजरात दंगों में मोदी सरकार के शांति के दावों को किया था खारिज

Gujarat Riots : आरबी श्रीकुमार ने नेशनल कमीशन ऑफ माइनॉरिटी को सितंबर 2002 में एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमें मोदी की ओर से दिए सांप्रदायिक भाषण की ओर उन्होंने इशारा किया था। इसके तुरंत बाद उनका सीआईडी इंटेलिजेंस के पद से ट्रांसफर कर दिया गया।

Update: 2022-06-26 04:34 GMT

Gujarat Riots 2002 : पूर्व डीजीपी आरबी श्रीकुमार भी गिरफ्तार, गुजरात दंगों में मोदी सरकार के शांति के दावों को किया था खारिज

Gujarat Riots 2002 : सुप्रीम कोर्ट से गुजरात दंगों को लेकर जकिया जाफरी की याचिका खारिज होने के बाद से गुजरात पुलिस एक्शन में है। सुप्रीम कोर्ट का गुजरात दंगों पर ताजा कमेंट आने के बाद केवल सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड नहीं बल्कि पूर्व डीजीपी और तिरुवनंतपुरम निवासी आरबी श्रीकुमार ( RB Sreekumar ) को भी गिरफ्तार किया गया है। आरबी कुमार 1971 बैच के आईपीएस अधिकारी थे। उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मोदी सरकार ( Modi Government ) के खिलाफ कई रिपोर्ट दी थी। जबकि अप्रैल 2002 में मोदी सरकार की ओर से उन्हें एडिशनल डीजीपी (इंटेलिजेंस) का प्रभार सौंपा गया था।

मोदी सरकार के खिलाफ दी थी रिपोर्ट

आरबी श्रीकुमार ( IPS RB Sreekumar ) गुजरात पुलिस के उन आईपीएस पुलिस अधिकारियों में शामिल हैं जिन्होंने 2002 के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी सरकार की शांति के दावों को चुनौती दी थी। इसके साथ ही दंगों में सरकारी एजेंसियों और दंगाइयों के बीच कथित मिलीभगत का दावा किया था। बाद में उन्हें मोदी सरकार ने न केवल पद से हटाया बल्कि सेवा के दौरान प्रमोशन से भी वंचित रखा।

25 जून को गुजरात एटीएस ने तीस्ता सीतलवाड को मुंबई से तो गुजरात पुलिस के 75 वर्षीय पूर्व महानिदेशक (DGP) आरबी श्रीकुमार को जालसाजी और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में गांधीनगर स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया। गुजरात दंगों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ठीक एक दिन बाद उनकी गिरफ्तारी हुई है। पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ डाली गई एक याचिका में उनकी भूमिका को लेकर कोर्ट ने सवाल उठाए थे। कोर्ट की ओर से यह टिप्पणी तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को गुजरात दंगों की जांच के लिए गठित की गई एसआईटी की ओर से दी गई क्लीनचिट के आधार पर की है।

इस मसले पर हुआ मोदी से पहली बार टकराव

मूलत: केरल के तिरुवनंतपुरम से आने वाले आरबी श्रीकुमार ( IPS RB Sreekumar ) 1971 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। अप्रैल 2002 में मोदी की ओर से उन्हें एडिशनल डीजीपी (इंटेलिजेंस) का प्रभार सौंपा गया था, लेकिन उस समय तक 27 फरवरी को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन जलने के बाद गुजरात संप्रदायिक दंगों में घिर चुका था। आरबी श्रीकुमार का राज्य सरकार के साथ पहली बार टकराव तब हुआ जब उन्होंने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को एक रिपोर्ट पेश की जिसमें कहा गया था कि दंगों से गुजरात की 182 विधानसभाओं में से 154 प्रभावित हुई हैं और इसके कारण राज्य में करीब 1 लाख लोगों को विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उस समय श्री कुमार के इस दावे को राज्य सरकार ने खंडन किया और कहा कि विधानसभा चुनाव कराने के लिए माहौल काफी शांतिपूर्ण है।

2002 में मोदी के भाषण को बताया था सांप्रदायिक

इसके अलावा आरबी श्रीकुमार ने नेशनल कमीशन ऑफ माइनॉरिटी को सितंबर 2002 में एक रिपोर्ट भेजी थी जिसमें एक यात्रा के दौरान मोदी की ओर से दिए सांप्रदायिक भाषण की ओर इशारा किया गया था। इस रिपोर्ट को भेजने के तुरंत बाद श्री कुमार का सीआईडी (इंटेलिजेंस) के पद से ट्रांसफर कर उन्हें एडीजीपी (पुलिस रिफॉर्म) के पद पर तैनात कर दिया गया और रिटायरमेंट तक वे इसी पद पर बने रहे।

सरकारी एजेंसी और दंगाइयों की मिलीभगत का किया था पर्दाफाश

श्रीकुमार ( IPS RB Sreekumar )  ने नानावती और मेहता आयोग के समक्ष अपने नौ हलफनामों में से चार दाखिल किए, जिसे गोधरा कांड की जांच के लिए गुजरात सरकार ने गठित की थी। हलफनामों में उन्होंने दंगाइयों के साथ सरकारी एजेंसियों की कथित मिलीभगत का पर्दाफाश करने का दावा किया था। इसके बावजूद नानावती-मेहता आयोग ने श्रीकुमार और साथी आईपीएस अधिकारियों राहुल शर्मा और संजीव भट्ट द्वारा सबूतों को खारिज कर दिया था। दोनों आयोग ने उनकी ओर से पेश किए गए सबूतों को आधारहीन, झूठा या अविश्वसनीय करार दिया गया। शर्मा ने पुलिस सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और अब गुजरात हाईकोर्ट में वकालत करते है। आईपीएस संजीव भट्ट को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और अब वह 1996 से नशीले पदार्थों के मामले में जेल में हैं।

Gujrat Riots : बता दें कि आरबी श्रीकुमार के कैरियर की शुरूआत गुजरात के मेहसाणा जिले से हुई थी, जहां उन्हें एसपी का पद पर तैनात किया गया था। 1979 में सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (CISF) के साथ जुड़े और 1980-84 के बीच सीआईएसएफ के कमांडेंट के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्हें गुजरात के खेड़ा और कुछ जिलों का एसपी बनाया गया। इसके बाद उन्हें गुजरात के इंटेलिजेंस ब्यूरो में 1987 से 99 तक अलग-अलग पदों की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। 2000 में केशुभाई पटेल के कार्यकाल में वह गुजरात वापस लौट आए और उन्हें एडिशनल डीजीपी (आर्म्ड यूनिट) बनाया गया था।


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