Gujrat : ब्लैकलिस्टेड RTI एक्टिविस्ट का बड़ा फैसला, GIC के खिलाफ हाईकोर्ट का खटखटाएंगे दरवाजा
Gujrat : प्रतिबंधित आरटीआई एक्टिविसट ( Blacklisted RTI activist ) इस योजना पर भी काम कर रहे हैं कि होईकोर्ट ( Gujrat High court ) में अपील के खर्चे को कम करने के लिए प्रतिबंधित लोग एक साथ मिलकर होईकोर्ट में जीआईसी ( GIC ) के खिलाफ याचिका दाखिल करें।
Gujrat : पीएम मोदी के गृह प्रांत गुजरात ( Gujrat ) में आरटीआई एक्टिविस्टों ( RTI activists ) को गुजरात सूचना आयोग ( GIC ) द्वारा गैर कानूनी तरीके से दंडित का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। आने वाले समय में आरटीआई एक्टिविस्ट इसे एक मुद्दा भी बना सकते हैं। फिलहाल, गैर सरकारी संगठन माहिती अधिकार गुजरात पहल ( MGAP ) ने अपने एक अध्ययन जरिये बड़ा खुलासा किया है। एमजीएपी के मुताबिक गुजरात सूचना आयोग ने 9 आरटीआई एक्टिविस्टों ( RTI activists ) को पिछले दो साल में न केवल जन सूचना अधिकार से वंचित किया बल्कि उनपर जीवनभर के लिए बैन भी लगा दिया।
अब इनमें से एक मनोज कुमार जो कि गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम द्वारा संचालित बसों में पूर्व कंडक्टर और अमरेली के रहने वाले मनोजकुमार सरपदादिया जीआईसी के फैसले के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का फैसला लिया है। साथ ही प्रतिबंधित आरटीआई एक्टिविस्ट ( Blacklisted RTI activists ) इस योजना पर भी काम कर रहे हैं कि होईकोर्ट में अपील के खर्चे को कम करने के लिए एक साथ मिलकर जीआईसी के खिलाफ याचिका दाखिल करें।
गुजरात सूचना आयोग ( GIC ) ने मनोजकुमार को साल 2020 में एक आदेश के तहत आजीवन के लिए ब्लैकलिस्ट ( Blacklist ) कर दिया था। जीआईसी ने आदेश दिया था कि मनोजकुमार अपने जीवनकाल में राज्य के किसी भी विभाग के किसी भी अधिकारी से आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी नहीं मांग सकता। उसके द्वारा मांगी गई जानकारी आरटीआई अधिनियम के उद्देश्य के अनुरूप नहीं है। जीआईसी के मुताबिक मनोजकुमार अभी तक लगभग 170 आरटीआई और 140 पहली अपील दायर की है।
इस मामले में मनोजकुमार का कहना है कि उन्होंने 2016 और 2018 के बीच केवल जीएसआरटीसी ( GSRTC ) विभाग के साथ कई स्तरों पर भ्रष्टाचार से संबंधित लगभग 150 आरटीआई दायर किए हैं। उन्होंने कहा के मैंने इस अवधि के दौरान विभाग और विभिन्न अधिकारियों के भीतर आरटीआई के तहत प्रदान की गई जानकारी के आधार पर विभाग के भीतर चल रहे भ्रष्टाचार पर कई शिकायतें दर्ज कराई, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की हुई।
गैर कानूनी तरीके से सेवा से किया बर्खास्त
दरअसल, मनोजकुमार को टिकट की हेराफेरी के आरोप में 2017 में विभागीय जांच के बाद सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। मनोजकुमार वर्तमान में बेरोजगार हैं और अजीबोगरीब हरकत करते रहते हैं। वह पहले से ही जीएसआरटीसी के साथ एक मुकदमे में शामिल हैं। मनोज कुमार के पक्ष में अहमदाबाद श्रम अदालत के आदेश के खिलाफ जीएसआरटीसी ने अपील पर सुनवाई भी विचाराधीर है। श्रम अदालत ने सेवा से उनकी बर्खास्तगी को अवैध बताया था।
GIC खुद का हित साधने का मंच नहीं
केंद्रीय सूचना आयोग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह सही है कि आवेदकों को दंडित करने के लिए अधिनियम में वास्तव में कोई प्रत्यक्ष प्रावधान नहीं है लेकिन मेरा भी अनुभव है कि कई आवेदक बदला लेने के मकसद से या कुछ को ब्लैकमेल करने के मकसद से आ रहे हैं। उक्त अधिकारी का कहना है कि जनहित के नाम पर अधिकारी अपने हित साधने का यह मंच नहीं है। यह वैध जनहित के मामलों का एक मंच है। ब्लैकलिस्टिंग कोई नई बात नहीं है। केंद्रीय सूचना आयोग ने भी ऐसा पांच से छह साल पहले दो बार किया था। यदि जनहित के उचित आधार स्थापित किए जाते हैं तो सूचना से इनकार नहीं किया जाता है और केंद्रीय सूचना आयोग भी यह सुनिश्चित करता है कि जानकारी प्रदान की जाए।
सूचना अधिकारी ले रहे गैर कानूनी फैसले
एमएजीपी ( MGAP ) के विश्लेषण से पता चलता है कि सूचना आयुक्त केएम अधवर्यु ने पेशे से शिक्षक अमिता मिश्रा ने जब अपनी सेवा पुस्तिका और वेतन विवरण की एक प्रति मांगी तो उसे इसको लेकर प्रतिबंधित कर दिया गया था। सूचना आयुक्त केएम अधवर्यु ने जिला शिक्षा कार्यालय और सर्व विद्यालय काडी को अमिता के आवेदनों पर हमेशा के लिए विचार नहीं करने का आदेश दिया। स्कूल के अधिकारियों ने इसके पीछे यह शिकायत की थी कि वह आवश्यक 2 रुपए प्रति पेज आरटीआई शुल्क का भुगतान नहीं करती है। अमिता बार.बार एक ही सवाल पूछती है। इससे पहले मोडासा कस्बे के एक स्कूल कर्मचारी सत्तार मजीद खलीफा पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था। जब उसने अपने संस्थान के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद उसके बारे में सवाल पूछना शुरू कर दिया था। सूचना आयुक्त अधवर्यु ने आयोग में अपील करने का खलीफा का अधिकार वापस ले लिया। अधवर्यु ने जांच में पाया कि खलीफा आरटीआई के जरिए स्कूल से बदला लेने की कोशिश कर रहा था। सत्तारूढ़ ने यह भी कहा कि खलीफा ने आभासी सुनवाई के दौरान पीआईओ जन सूचना अधिकारी शिक्षा विभाग के अपीलीय प्राधिकरण और यहां तक की आयोग के खिलाफ भी आरोप लगाए थे।
अहमदाबाद से एक आवेदक नरेंद्र सिंह चावड़ा और भावनगर निवासी महिपाल इंद्रजीत गोहिल पर भी आरटीआई दायर कर बोर्ड के सदस्यों का विवरण, उनके संपर्क विवरण, गुजरात कैंसर और अनुसंधान संस्थान, एमपी शाह कैंसर अस्पताल की बोर्ड बैठक के कार्यवृत्त और सरकारी प्रस्तावों की प्रतियां और नए को मंजूरी देने के आदेश की प्रतियां मांगने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
क्या कहते हैं सूचना आयुक्त
गुजरात सूचना आयुक्त रमेश करिया का कहना है कि ऐसे आवेदकों को सूचना देने की आवश्यकता नहीं है, जो बार-बार सूचना देने की मांग करते हैं। ऐसे आवेदक आरटीआई के तहत संस्थान के साथ-साथ आयोग का भी समय जाया करते हैं। साथ की सरकारी खर्चे और मशीनरी कर दुरुपयोग के ब्लैकमेलिंग का काम करते हैं। आरटीआई के तहत खुद का हित साधने वाले एक्टिविस्ट सार्वजनिक प्राधिकरण पर नैतिक दबाव में लेने के लिए दुर्भावनापूर्ण इरादे से जानकारी मांगते हैं। अधिकारियों को परेशान करना और संगठन के काम में बाधा डालना भी इनका मकसद होता है।
जीआईसी ने मुट्ठीभर अदालती फैसलों पर किया भरोसा
एमएजीपी की पंक्ति जोग का कहना है कि 10 आदेशों के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि गुजरात के सूचना आयुक्तों ने एनडी कुरैशी बनाम भारत संघए सीबीएसई के सुप्रीम कोर्ट के मामले में 2008 के दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश जैसे मुट्ठी भर अदालती आदेशों के पैरा पर भरोसा किया है।