अगर महिला चूड़ी और सिन्दूर लगाने से मना करती है, तो इसका मतलब उसे शादी मंज़ूर नहीं: गुवाहाटी HC

गर कोई हिंदू शादीशुदा महिला हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक संख (शंख से बनी चूड़ी) पहनने और सिंदूर लगाने से इनकार करती है तो इसका मतलब यह है कि उसे विवाह मंजूर नहीं है। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक पति की तलाक की अर्जी मंजूर करते हुए यह अहम टिप्पणी की...

Update: 2020-06-30 04:44 GMT

जनज्वार। अगर कोई हिंदू शादीशुदा महिला हिंदू रीति रिवाज के मुताबिक संख (शंख से बनी चूड़ी) पहनने और सिंदूर लगाने से इनकार करती है तो इसका मतलब यह है कि उसे विवाह मंजूर नहीं है। गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक पति की तलाक की अर्जी मंजूर करते हुए यह अहम टिप्पणी की। जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने कहा कि चूड़ी और सिंदूर हिंदू दुल्हन का शृंगार माना जाता है। अगर वह इसे धारण करने से मना करती है तो इसका मतलब यह है कि उसे शादी स्वीकार नहीं है और उसकी अनिच्छा से विवाह कर दिया गया।

दो सदस्यीय पीठ ने कहा, संख और सिंदूर पहनने से इनकार करने को अपीलकर्ता के साथ विवाह को स्वीकार करने से इनकार करने का संकेत माना जाएगा। ऐसी परिस्थितियों में पति को पत्नी के साथ वैवाहिक जीवन में बने रहने के लिए मजबूर करना उत्पीड़न माना जा सकता है। परिवार अदालत ने पति की अर्जी ठुकरा दी थी, मगर हाईकोर्ट ने पत्नी के खिलाफ दायर की गई याचिका का हवाला देते हुए परिवार अदालत के फैसले को पलट दिया।

हाईकोर्ट ने कहा, पत्नी ने पति पर क्रूरता का जो आरोप लगाया है, वह साबित नहीं होता है। पीठ ने कहा, पति या उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ निराधार आरोपों के आधार पर आपराधिक मामले दर्ज करने की ऐसी हरकतें बडे़ पैमाने पर क्रूरता है। हाईकोर्ट का यह फैसला बीते 19 जून को आया था।

हाईकोर्ट ने पाया कि पति ने निचली अदालत के समक्ष आरोप लगाया था कि पत्नी ने संख और सिंदूर पहनने से इनकार कर दिया था। उसकी ओर से पत्नी के खिलाफ कोई विवाद नहीं खड़ा किया गया। दरअसल, असम की एक परिवार अदालत ने पति की उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि पति की ओर से पत्नी के खिलाफ कोई क्रूरता नहीं की गई थी।

पति का आरोप, पत्नी ससुराल वालों के साथ रहने को तैयार नहीं

अपनी याचिका में पति ने आरोप लगाया कि फरवरी 2012 में हुई शादी के एक महीने बाद पत्नी ने संयुक्त परिवार में रहने से इनकार कर दिया और पति के साथ अलग जगह रहने की मांग की। रिश्तेदारों के रिश्ते बिगड़ गए और पत्नी ने अक्सर झगड़े शुरू कर दिए और बच्चे न होने के लिए भी पति को दोषी ठहराया।

पत्नी ने 2013 में ससुराल छोड़ दिया और पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत क्रूरता का मामला दर्ज किया। पति और रिश्तेदारों को बाद में उस मामले में हाईकोर्ट ने बरी कर दिया गया था। इसके बाद पति ने अलग से तलाक का केस दायर किया।

पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का भी लगाया आरोप

पत्नी ने क्रूरता को आधार बनाकर किए गए मुकदमे में पति और ससुराल वालों पर दहेज के लिए उत्पीड़न का भी आरोप लगाया। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसे भोजन और चिकित्सा से वंचित रखा गया था और उसका भाई ही उसकी देखभाल करता था।

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