Gyanvapi Mosque Survey को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की साजिश, जानें क्या कहा?

Gyanvapi Mosque Survey : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में कथित रूप से शिवलिंग मिलने के बाद अदालत के आदेश पर मस्जिद का वजू खाना बंद कराए जाने को नाइंसाफी करार देते हुए कहा की यह घटनाक्रम सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की एक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है...

Update: 2022-05-17 06:06 GMT

Gyanvapi Mosque Survey : ज्ञानवापी सर्वे को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने बताया सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की साजिश, जानें क्या कहा?

Gyanvapi Mosque Survey : भारत (India) में मुसलमानों के प्रमुख संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने वाराणसी (Varanasi) की ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque Survey) में कथित रूप से शिवलिंग मिलने के बाद अदालत के आदेश पर मस्जिद (Gyanvapi Mosque Survey) का वजू खाना बंद कराए जाने को नाइंसाफी करार देते हुए कहा की यह घटनाक्रम सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की एक साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव ने जारी किया बयान

बात दें कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) के महासचिव खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने सोमवार देर रात जारी एक बयान में कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद, मस्जिद है और मस्जिद (Gyanvapi Mosque Survey) ही रहेगी। इसको मंदिर करार देने की कोशिश सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की साजिश से ज्यादा कुछ नहीं है। यह सैंवधानिक अधिकारों और कानून के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1937 में दीन मोहम्मद बनाम स्टेट सेक्रेटरी मुकदमे में अदालत ने जबानी गवाही और दस्तावेजों के आधार पर यह बात तय कर दी थी कि यह पूरा अहाता (ज्ञानवापी मस्जिद परिसर) मुस्लिम वक्फ की मिल्कियत है और मुसलमानों को इसमें नमाज पढ़ने का हक है।

अदालत ने तय किया था मंदिर मस्जिद का हिस्सा

अदालत ने यह भी तय कर दिया था कि कितना हिस्सा मस्जिद (Gyanvapi Mosque Survey) है और कितना हिस्सा मंदिर है। उसी वक्त वजू खाने को मस्जिद की मिल्कियत स्वीकार किया गया था। बोर्ड महासचिव ने कहा कि फिर 1991 में प्लेसेस ऑफ़ वरशिप एक्ट संसद से पारित हुआ जिसका खुलासा यह है कि 1947 में जो इबादतगाहें जिस तरह थीं उनको उसी हालत परकायम रखा जाएगा। साल 2019 में बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) मुकदमे के फैसले में उच्चतम न्यायलय ने बहुत साफ तौर पर कहा था कि अब तमाम इबादत गाहें कानून के मातहत होंगी और यह कानून दस्तूर हिंद की बुनियाद के मुताबिक है।

सिविल जज की अदालत की भूमिका पर उठाए सवाल

बता दें कि उन्होंने वाराणसी की सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत की भूमिका पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि 'कानून का तकाजा यह था कि मस्जिद (Gyanvapi Mosque Survey) में मंदिर होने के दावे को अदालत फौरन खारिज कर देती लेकिन अफसोस, कि बनारस की सिविल अदालत ने इस स्थान के सर्वे और वीडियोग्राफी का हुक्म जारी कर दिया। वक्फ बोर्ड इस सिलसिले में उच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटा चुका है और वहां यह मुकदमा विचाराधीन है। इसी तरह ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque Survey) की इंतजामिया कमेटी भी सिविल कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायलय का दरवाजा खटखटा चुकी है। वहां भी यह मसला सुनवाई के दौर में है लेकिन इन तमाम बातों को नजरअंदाज करते हुए सिविल अदालत ने पहले तो सर्वे का हुक्म जारी कर दिया गया और फिर उनकी रिपोर्ट कुबूल करते हुए वजू खाने के हिस्से को बंद करने का हुक्म जारी कर दिया।'

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