High Court News : मारे गए आतंकियों के लिए नमाज पढ़ना राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं, J&K हाईकोर्ट

High Court News : जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार के दौरान पड़े जाने वाले नमाज को लेकर अहम फैसला सुनाया है, जम्मू कश्मीर अदालत ने कहा कि मारे गए आतंकियों के लिए नमाज पढ़ा जाना राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है...

Update: 2022-09-09 14:11 GMT

High Court News : मारे गए आतंकियों के लिए नमाज पढ़ना राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं, जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट  

High Court News : जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट ने मारे गए आतंकियों के अंतिम संस्कार के दौरान पड़े जाने वाले नमाज को लेकर अहम फैसला सुनाया है। जम्मू कश्मीर अदालत ने कहा कि मारे गए आतंकियों के लिए नमाज पढ़ा जाना राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है। अदालत ने आगे कहा कि यह इस तरह की गतिविधि नहीं है कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई सुरक्षा के अनुसार उनकी निजी आजादी से वंचित किया जाए।

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा सुनवाई

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट में जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस एमडी अकरम चौधरी की पीठ विशेष न्यायाधीश अनंतनाग द्वारा 11 फरवरी, 2022 और 26 फरवरी, 2022 को पारित आदेशों के खिलाफ सरकार द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।

निचली अदालत द्वारा दी गई जमानत

जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस एमडी अकरम चौधरी की पीठ विशेष न्यायाधीश अनंतनाग (गैरकानूनी गतिविधिया (रोकथाम) अधिनियम के लिए नामित न्यायालय) द्वारा 11 फरवरी, 2022 और 26 फरवरी, 2022 को पारित आदेशों को चुनौती देने वाली सरकार द्वारा दायर दो अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दो अलग-अलग आवेदनों में प्रतिवादियों को जमानत दी गई।

सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के दौरान हुई थी मौत

नवंबर 2021 में हिजबुल मुजाहिदीन संगठन का एक स्थानीय आतंकवादी सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ के दौरान मारा गया था। इस आतंकी के जनाजे के दौरान पढ़ी गई नमाज को लेकर मस्जिद शरीफ के इमाम जाविद अहमद शाह सहित देवसर, कुलगाम के कुछ ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इन लोगों को निचली अदालत से जमानत मिली हुई थी।

जमानत आदेश को रखा बरकरार

मारे गए एक आतंकवादी के अंतिम संस्कार की नमाज पढ़ने के आरोपी मस्जिद शरीफ के इमाम जाविद अहमद शाह सहित देवसर, कुलगाम के कुछ ग्रामीणों के पक्ष में निचली अदालत द्वारा दिए गए जमानत आदेश को बरकरार रखते हुए, अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

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