High Court Order : 'पति का पत्नी को आमदनी का जरिया मानना मानसिक क्रूरता'

High Court Order : कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि पति का अपनी पत्नी को सिर्फ आमदनी का जरिया मानना मानसिक क्रूरता है, हाईकोर्ट तलाक के मामले में सुनवाई कर रहा था...

Update: 2022-07-20 17:30 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट : तलाक की याचिका वापस लेने के बाद भी पति से गुजारा भत्ता पाना पत्नी का अधिकार

High Court Order : कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि पति का अपनी पत्नी को सिर्फ 'आमदनी' का जरिया मानना मानसिक क्रूरता है। न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति जे. एम. काजी और न्यायमूर्ति जे. एम. काजी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की है। गौरतलब है कि हाईकोर्ट तलाक के मामले में सुनवाई कर रहा था।

पति ने पत्नी को आमदनी का साधन माना

इस मामले में सुनवाई करके ने बात कर्नाटक हाई कोर्ट ने दंपति को तलाक की अनुमति दे दी। पीठ ने अपना फैसला सुनते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि पति ने याचिकाकर्ता को मात्र आमदनी का एक साधन माना। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह स्पष्ट है कि पति का याचिकाकर्ता के प्रति कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं था। पति के उसके प्रति रवैया ऐसा था जिसके कारण याचिकाकर्ता को मानसिक और भावनात्मक रूप से परेशानी झेलनी पड़ी।

पत्नी की आय पर निर्भर रहने लगा पति

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता महिला ने अपने बैंक खातों के विवरण और अन्य दस्तावेज अदालत को दिखाए, जिसके अनुसार उसने अपने पति को बीते कुछ सालों में 60 लाख रुपये ट्रांसफर किये थे। जानकारी के मुताबिक, दंपती ने 1999 में चिक्कमगलुरु में शादी की थी। इसके दो साल बाद 2001 में उनका एक बेटा हुआ था। महिला ने सुनवाई के दौरान दलील दी कि उसके पति का परिवार वित्तीय संकट में था, जिसके कारण परिवार में अक्सर झगड़े होते थे। पति के परिवार का कर्ज उतारने कि लिए उसने संयुक्त अरब अमीरात में नौकरी की इतना ही नहीं अपने पति के नाम पर उसने कृषि भूमि भी खरीदी। इसके बाद भी वह वित्तीय रूप से स्वावलंबी होने की बजाय पत्नी की आय पर निर्भर रहने लगा।

पारिवारिक अदालत ने खारिज की थी तलाक की अर्जी

इन सब कारणों के कारण उसने 2017 में तलाक के लिए अर्जी दाखिल की थी। हालांकि महिला द्वारा दी गई तलाक की अर्जी को एक पारिवारिक अदालत ने 2020 में खारिज कर दिया था। इसके बाद याचिकाकर्ता महिला ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक अदालत ने याचिकाकर्ता (पत्नी) की दलील न सुनकर बड़ी गलती की है। इसके बाद अदालत ने दोनों की तलाक को मंजूर कर लिया।

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