Hijab Controvercy Karnataka High Court: 'हिजाब पर बैन लगाना था तो नोटिस एक साल पहले दिया जाना चाहिए था', छात्राओं के वकील ने दी दलील
Hijab Controvercy Karnataka High Court : वकील रविवर्मा कुमार ने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन रूल का नियम 11 कहता है कि शैक्षणिक संस्थान को माता-पिता को ड्रेस बदलने के लिए एक साल का अग्रिम नोटिस देना चाहिए.....
Hijab Controvercy Karnataka High Court : कर्नाटक के स्कूलों-कॉलेजों के क्लासरूम में हिजाब (Hijab Controvercy) पहनने को लेकर चल रहे विवाद को लेकर आज चौथे दिन कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) में सुनवाई चल रही है। उडुपी के एक सरकारी कॉलेज से यह विवाद शुरू हुआ था। मुस्लिम छात्राएं इसे संविधान के अनुच्छेद 25 (Article 25) का हवाला देते हुए इस्लामिक परंपरा का हिस्सा बता रही हैं। वहीं कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने राज्य सरकार के नोटिफिकेशन को अवैध ठहराते हुए कहा है कि कर्नाटक एजुकेशन एक्ट में इस संबंध में प्रावधान नहीं है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या शैक्षणिक मानकों बनाए रखने के लिए ड्रेस निर्धारित की जा सकती है? इस पर वरिष्ठ अधिवक्ता रवि वर्मा कुमार ने कहा कि बहुत सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि शैक्षणिक मानकों का ड्रेस से कोई संबंध नहीं है। अकादमिक मानक छात्र-शिक्षक, पाठ्यक्रम आदि से संबंधित हैं। सीडीसी के पास छात्रों के खिलाफ पुलिस जैसे अधिकार नहीं हो सके हैं।
वकील रविवर्मा कुमार ने कहा कि कर्नाटक एजुकेशन रूल (Karnataka Education Rule) का नियम 11 कहता है कि शैक्षणिक संस्थान को माता-पिता को ड्रेस बदलने के लिए एक साल का अग्रिम नोटिस देना चाहिए। अगर हिजाब पर बैन लगाना था तो नोटिस एक साल पहले दिया जाना चाहिए था। 1995 के नियमों में किए गए ये प्रावधान सामान्य हैं। पीयू कॉलेज एक अलग नियम के तहत आते हैं। इस तथ्य पर ध्यान देना बहुत जरूरी है कि कॉलेज विकास परिषद एक प्राधिकरण नहीं है जो नियमों के तहत स्थापित या मान्यता प्राप्त है।
उन्होंने कहा कि सरकारी आदेश में घोषित किया गया है कि पीयू कॉलेज विकास परिषद एक प्राधिकरण नहीं है जो नियमों के तहत स्थापित या मान्यता प्राप्त है। सरकारी आदेश में घोषित किया गया है कि पीयू कॉलेजों के लिए कोई तय यूनिफॉर्म नहीं है। न तो एजुकेशन एक्ट के प्रावधान में और न ही नियम कोई ड्रेस निर्धारित करते हैं। न तो कानून के तहत और नही नियमों के तहत हिजाब पहनने पर प्रतिबंध है।
आगे जस्टिस कृष्ण दीक्षित ने कहा कि यह सही सवाल नहीं हो सकता है। यदि उस दृष्टिकोण को लिया जाता है तो कोई कह सकता है कि कक्षा में हथियार ले जाने के लिए किसी लाइसेंस की आवश्यकता नहीं क्योंकि निषेध नहीं है। मैं तार्किक रूप से विश्लेषण कर रहा हूं कि आपका प्रस्ताव हमें किस ओर ले जा सकता है। यदि यह निर्धारित नहीं है तो कृपाण ले जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। हालांकि नियम 9 के तहत निर्धारित करने की शक्ति है। इस पर स्वतंत्र रूप से तर्क देने की आवश्यकता है।
एडवोकेट जनरल ने कहा कि सबरीमाला के मामले में जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था कि धार्मिक मामलों में जनहित याचिका में हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कर रहे हैं। हस्तक्षेपों पर विचार करने का सवाल कहां है? इन आवेदनों से कोर्ट का समय बर्बाद होगा।
दोपहर ढाई बजे बाद कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की फुल बेंच के पास ये मामला है। सुनवाई शुरू होते ही वकील सुभाष झा ने कहा कि यह लगातार चौथा दिन है जब मामले की सुनवाई हो रही है। कोई भी वकील घंटों दलील देने में सक्षम है लेकिन जितनी जल्दी संभव हो उतनी जल्दी मामले पर फैसला होना चाहिए।
वहीं दूसीर ओर हुबली में एसजेएमवी कॉलेज को बंद कर दिया गया है। मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनकर क्लास में बैठने पर अड़ी थीं। वहीं कॉलेज प्रशासन का कहना था कि हाईकोर्ट का अंतरिम आदेश लागू कराने के लिए ड्रेस कोड जरूरी है। तमाम जद्दोजहद के बीच छात्राओं ने कहा कि वे बिना हिजाब पहे स्कूल नहीं आएंगी। इसके बाद आज छुट्टी कर दी गई। एक छात्रा का कहना था कि हम क्लासेज अटेंड करने आए थे लेकिन स्कूल प्रशासन ने बुर्का और हिजाब हटाने को कहा। हम बुर्का उतारने को तैयार हैं लेकिन हिजाब नहीं हटाएंगे।