Hijab Row in Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत सुनवाई की मांग खारिज की, कहा- "हिजाब मामले को सनसनीखेज नहीं बनाएं"

Hijab Row in Supreme Court : इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत की ओर से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना के समक्ष सुनवाई की अपील की गयी थी, लेकिन CJI ने याचिकाकर्ताओं से इस मुद्दे को सनसनीखेज नहीं बनाने बनाने की नसीहत देते हुए मामले की सुनवाई के लिए कोई विशेष तारीख देने से इनकार कर दिया।

Update: 2022-03-24 10:20 GMT

Hijab Row in Supreme Court : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार (24 मार्च)  को हिजाब मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) के फैसले के खिलाफ किए गए अपीलों को तत्काल सूचीबद्ध करने के अनुरोध को खारिज कर कर दिया है।

कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले में राज्य में सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में महिला मुस्लिम छात्रों (Muslim Students) द्वारा हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के कॉलेजों की शक्ति को बरकरार रखा गया था। इसी के विरोध में कई संगठनों ने इस फैसले के सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की थी।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत की ओर से भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमना के समक्ष सुनवाई की अपील की गयी थी, लेकिन CJI ने याचिकाकर्ताओं से इस मुद्दे को सनसनीखेज नहीं बनाने बनाने की नसीहत देते हुए मामले की सुनवाई के लिए कोई विशेष तारीख देने से इनकार कर दिया।

इसके जवाब में काम ने कहा कि "परीक्षाएं नजदीक आ रही हैं। इस पर CJI की ओर से कहा गया कि "इसका परीक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। इस मुद्दे को सनसनीखेज न बनाएं। इस पर कामत ने दलील दी कि "1 साल बीत जाएगा। उन्हें स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है।" पर चीफ जस्टिस संतुष्ट नहीं हुए और उन्हें अगला आइटम कृपया कह दिया।

आप को बता दें कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 15 मार्च को राज्य के सरकारी कॉलेजों की कॉलेज विकास समितियों को कॉलेज परिसर में मुस्लिम छात्राओं द्वारा हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने के सरकारी आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा था।

मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी और जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने इस मामले में फैसला देते हुए कहा था कि हिजाब इस्लाम की आवश्यक धार्मिक प्रथाओं का हिस्सा नहीं है। वर्दी की आवश्यकता अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर एक उचित प्रतिबंध है। कोर्ट ने इसे जायज ठहराया था। कोर्ट ने कहा था कि सरकार के पास आदेश देने अधिकार है; इसे अमान्य करने का कोई मामला नहीं बनता है।

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