नहीं टूट रहा हिमांशु का हौसला, बस्तर जेल में रहने की जताई इच्छा
जुर्माना नहीं चुका पाने पर हिमांशु कुमार खुशी-खुशी जेल जाने को तैयार, बेटी और छात्रा बोली - मुझे उनके फैसले पर गर्व है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदिवासियों की हत्या की जांच के मामले में याचिका दायर करने वाले जिस मानवाधिकार कार्यकर्ता पर पांच लाख का जुर्माना और उनकी जांच की बात की है, उन हिमांशु कुमार का हौसला अभी भी बना हुआ है। भारतीय न्यायिक व्यवस्था के इतिहास में दिए गए इस अभूतपूर्व फैसले में गांधीवादी नेता हिमांशु कुमार ने जुर्माना भरने से साफ इंकार करते हुए अपने आप को बस्तर जेल में रखे जाने की इच्छा जताई है।
दरअसल, छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh ) के सुकमा जिले में 16 आदिवासियों के मारे जाने के एक मामले में हिमांशु कुमार ( Himansu Kumar ) ने जांच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने हिमांशु के आरोप को झूठा पाया और उन पर पांच लाख रुपए बतौर जुर्माना जमा करने का आदेश दिया। सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार से जुड़ा यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। खुद हिमांशु कुमार ने कहा है कि उनकी हैसियत पांच लाख जुर्माना चुका पाने की नहीं है। मैं जेल जाने के लिए तैयार है। खास बात ये है कि उनकी बेटी और छात्रा ने कहा कि मुझे उनके फैसले पर गर्व है।
बीमारी का हवाला देते हुए जताई अपनी अंतिम इच्छा
इसी तरह मेरी विद्यार्थी रही हिम्मतवाली सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी ने कहा है कि मैं ( Social activist Himansu Kumar ) आपके इस फैसले से बहुत खुश हूं कि मेरा गुरु आदिवासियों के लिए न्याय की कोशिशें करते हुए जेल जा रहा है। मैं मायस्थीनिया से पीड़ित हूं। मैं जानता हूं, मैं जेल में ज्यादा लंबे समय तक जीवित नहीं रहूंगा। मेरी अंतिम इच्छा है कि मुझे बस्तर की जेल में रखा जाए जहां निर्दोष आदिवासियों को नक्सली के नाम पर रखा गया है। मैं, अपना अंतिम समय आदिवासियों के बीच गुजारना चाहता हूं जो शानदार लोग हैं और बेहद प्यार करते हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ( Himansu Kumar ) और अन्य ने एक याचिका में 2009 में छत्तीसगढ़ ( Chhattisgarh ) के दंतेवाड़ा में हुए एक नक्सल विरोधी अभियान में क़रीब एक दर्जन ग्रामीणों के मारे जाने का दावा करते हुए जांच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) ने इस याचिका को खारिज करते हुए कुमार पर पांच लाख का जुर्माना लगाया है और छत्तीसगढ़ सरकार से उन पर कार्रवाई करने को भी कहा है। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ( Supreme court ) ने यह जांच करने की भी इजाजत दी है कि नक्सल चरमपंथियों को बचाने के लिए कोर्ट का इस्तेमाल तो नहीं किया जा रहा है।
हम आपके फैसले का सम्मान करते हैं
वहीं एफबी यूजर शौकत हुसैन मंसूरी ने लिखा है कि सलाम है आपके जज़्बे को। एक बार सारी बातों को ध्यान में रखते हुए पुनर्मूल्यांकन अवश्य कर लीजिएगा। हम आपके हर फैसले का सम्मान करते हैं। परवेज अहमद लिखते हैं - हमें आप पर और आपके परिवार पर गर्व है। हमें पूरा विश्वास है कि आप जेल से बाहर आएंगे। एक अन्य यूजर निशिता लिखती हैं - आपके संघर्ष और साहस को सलाम। आप स्वस्थ रहें। आप इस समाज के लिए बहुत जरूरी हैं।
बता दें कि बृहस्पतिवार को भारत की सुप्रीम कोर्ट की एक न्यायिक पीठ ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर की गई हत्या की जांच के लिए आदिवासी हितों के लिए काम करने वाले जाने माने मानवाधिकार कार्यकर्ता व गांधीवादी विचारक हिमांशु कुमार द्वारा तेरह वर्ष पूर्व डाली गई याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार के खिलाफ ही पांच लाख का जुर्माना लगाते हुए उनके खिलाफ जांच की बात की थी। शीर्ष अदालत को मामले की तेरह साल सुनवाई के बाद समझ आया था कि याचिकाकर्ता ने याचिका डालकर उनके समय को बरबाद किया था। इस फैसले से हतप्रभ हिमांशु ने उसी दिन अपने पास पांच लाख रुपए न होने का हवाला देते हुए अपने जेल जाने की संभावना व्यक्त की थी। हालांकि हिमांशु के इस बयान के बाद से ही देश भर उनके लिए क्राउड फंडिग के तहत न्यायालय में जमा किए जाने वाली पांच लाख के जुर्माने की धनराशि को इकट्ठा किए जाने की मुहिम भी चलनी शुरू हो गई थी। लेकिन हिमांशु कुमार ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से जुड़े एक केस का उदाहरण देकर यह कहते हुए जुर्माना भरने से इंकार कर दिया कि जुर्माना भरने का मतलब अपना जुर्म स्वीकार कर लेना है जबकि उन्होंने आदिवासियों को न्याय दिलाने की आवाज उठाकर कोई जुर्म नहीं किया है। अब जुर्माना न भरने के कारण जेल जाने की निश्चित संभावनाओं के बीच हिमांशु कुमार ने जेल भेजे जाने की सूरत में अपने आप को बस्तर जेल में रखे जाने की मांग की है।