प्रयागराज में गंगा किनारे बालू उड़ने से नजर आने लगा हिंदुओं का कब्रिस्तान, सीन देखकर लोगों की कांप जाती है रूह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे की छतनाग घाट पर धज्जियां उड़ रही है। छतनाग श्मशान घाट पर झूंसी के अलावां जौनपुर, प्रतापगढ़, हंडिया, गोपीगंज, ज्ञानपुर, बरौत, बादशाहपुर समेत कई शहरों से लोग शवों का अंतिम संस्कार करने आते हैं...
जनज्वार, प्रयागराज। उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में गंगा किनारे का नजारा शरीर कंपा देने वाला है। प्रयागराज की गंगा किनारे भी काफी तादाद में शव गड़े हैं। यहां हवा चलने से रेत हटी तो बालू में दफन किए गए सैकड़ों की संख्या में शव निकलकर बाहर दिखने लगे हैं। माना जा रहा है कि लकड़ी और धन की कमी के कारण इन शवों को यहां दफन किया गया था।
पिछले दिनों गंगा, यमुना सहित रामगंगा नदी में बड़ी संख्या में शवों को उतराते देखा गया था। मुख्यमंत्री योगी ने नदियों में शव बहाने पर पाबंदी भी लगाई थी। अब सरकार की सख्ती को देखते हुए नगर विकास विभाग ने निकाय स्तर पर निगरानी समितियों का गठन किया है। नगर महापौर और नगर पालिका परिषद व नगर पंचायत स्तर पर गठित समितियों का अध्यक्ष चेयरमैन को बनाया गया है।
बता दें कि झूंसी में सदियों से लोगों की आस्था के रुप में पूजी जाने वाली मां गंगा का अस्तित्व खतरे में हैं। झूंसी के छतनाग गांव स्थित गंगा तट को लोगों ने कब्रिस्तान बना डाला है। वैसे तो छतनाग घाट को श्मशान घाट के रुप में ज्यादा मान्यता मिली हुई है लेकिन कोरोना संक्रमण में इन दिनों शव का अंतिम संस्कार करने के लिए पहुंचने वाले लोग शव को बालू में दफनाकर मां गंगा को प्रदूषित करने में जुटे हुए हैं।
छतनाग घाट पर गंगा तट के लगभग एक किलोमीटर की दूरी में सौ से ज्यादा लाशें दफन की गई हैं। इससे स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश व्याप्त है। लोगों ने प्रशासन से इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। आदिकाल से मां गंगा को भारतीय संस्कृति का प्राण कहा जाता है लेकिन इन दिनों प्रशासनिक उपेक्षा और लोगों की उदासीनता के चलते इसका अस्तित्व खतरे में है। मां गंगा की सफाई और इसे प्रदूषण मुक्त करने को केंद्र व प्रदेश सरकार की ओर से तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन इसके उलट हकीकत देखनी हो तो झूंसी के छतनाग घाट पर दिख रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे की छतनाग घाट पर धज्जियां उड़ रही है। छतनाग श्मशान घाट पर झूंसी के अलावां जौनपुर, प्रतापगढ़, हंडिया, गोपीगंज, ज्ञानपुर, बरौत, बादशाहपुर समेत कई शहरों से लोग शवों का अंतिम संस्कार करने आते हैं। घाट के किनारे शव को जलाने के लिए लकड़ियों की भी कई टाल हैं।
इसके बावजूद कोरोना के बढ़ते संक्रमण और लोगों की भारी संख्या में हुई मौत के दौरान चंद पैसे बचाने के लिए मां गंगा को प्रदूषित करने में जुटे हुए हैं। घाट पर मां गंगा की अविरल धारा से महज दो सौ मीटर दूर पर ही तकरीबन एक किलोमीटर की एरिया में सौ से ज्यादा लाशें बेखौफ दफनाई गई हैं। इससे छतनाग गांव समेत आसपास के लोग हतप्रभ हैं। ग्रामीणों ने शवों को दफनाए जाने पर तत्काल रोक लगाए जाने की मांग की है।
अमर उजाला के मुताबिक छतनाग श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने पहुंचे लोगों ने बताया कि कोरोना संक्रमण काल में काम धंधा सब चौपट है। शव का क्रिया कर्म करने में कम से कम दस से बारह हजार रुपये का खर्च आता है। जो इस वक्त उनके लिए बहुत बड़ी रकम है। इसलिए वे हिन्दू परंपरा को छोड़कर शव को रेती मेें दफनाने के लिए मजबूर हैं। यानी कि ये सभी हिंदू हैं।
छतनाग घाट के तकरीबन एक किलोमीटर के दायरे में चिताओं के निशान, बिखरे अंतिम संस्कार के अवशेष को देखकर लोगों का कलेजा कांप जाता है। जिन जगहों पर शवों को गाड़ा गया है, उसी के ठीक बगल में ही बांस और बिस्तर पड़े रहते हैं। इससे आसपास रहने वालों को जीना मुहाल हो रहा है।