Indian Legal News : 11 सालों तक बेवजह जेल में बंद रहे दो गरीब निर्दोष, अच्छा वकील नहीं होने के कारण काटनी पड़ी उन्हें 'सजा'

Indian Legal News : भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के संदर्भ में देखा जाये, तो कानून की नजर में जब तक किसी व्यक्ति का अपराध साबित नहीं हो जाता, उसे 'अपराधी' नहीं माना जा सकता। इसके बावजूद हजारों विचाराधीन कैदी आज अपराधियों की तरह जेल की यातनाएं सहने पर मजबूर हैं। आये दिन उन्हें जेल के अंदर होनेवाली हिंसा का भी शिकार होना पड़ता है। इन सबका सीधा असर उनके मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है...

Update: 2022-06-21 14:15 GMT

Indian Legal News : 11 सालों तक बेवजह जेल में बंद रहे दो गरीब निर्दोष, अच्छा वकील नहीं होने के कारण काटनी पड़ी उन्हें 'सजा'

Indian Legal News : 2011 के कुरार चौगुनी हत्या मामले में 11 साल जेल में बिताने के बाद दो आरोपी दोष मुक्त करार दएि गए हैं, क्योंकि अदालत को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि वे साजिश का हिस्सा थे। दो व्यक्तियों के जीवन के बहुमूल्य 11 साल नष्ट हो गए। भारतीय न्याय व्यवस्था की ऐसी विसंगति के चलते हजारों विचाराधीन कैदियों को जेल में बंद कर रखा गया है।

भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों के संदर्भ में देखा जाये, तो कानून की नजर में जब तक किसी व्यक्ति का अपराध साबित नहीं हो जाता, उसे 'अपराधी' नहीं माना जा सकता। इसके बावजूद हजारों विचाराधीन कैदी आज अपराधियों की तरह जेल की यातनाएं सहने पर मजबूर हैं। आये दिन उन्हें जेल के अंदर होनेवाली हिंसा का भी शिकार होना पड़ता है। इन सबका सीधा असर उनके मनोवैज्ञानिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। जेल में रहने के दौरान कई कैदियों की मौत हो जाती है, कई अपने परिवार या पड़ोसियों को खो देते हैं, कईयों के घर की पीढ़ियां बचपन से जवानी या जवानी से बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंच जाती हैं। इसके अलावा हमारे समाज में जेल की सजा काट कर आये कैदी को हमेशा से ही हिकारत भरी नजरों से देखा जाता रहा है। यहां तक कि जेल से लौटने के बाद उन्हें अपने परिवार या समुदाय से भी वह सम्मान नहीं मिलता, जो पहले मिला करता था।

विचाराधीन कैदियों को कानूनी सहायता भी मुश्किल से मिल पाती है। ऐसे ज्यादातर कैदी गरीब हैं, जिन पर छोटे-मोटे अपराध करने का आरोप है। बावजूद इसके वे लंबे समय से जेलों में बंद है, क्योंकि न तो उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी है और न ही कानूनी सलाहकारों तक उनकी पहुंच है। महात्मा गांधी के शब्दों में- 'जिस स्वतंत्रता में गलती कर पाने का अधिकार शामिल नहीं हो उस स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।' भारतीय संविधान की धारा-21 ने भी भारत के हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीने के अधिकार दिया है। संविधान यह कहता है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जायेगा।

गौरतलब है कि मुंबई की अदालत ने दो अलग-अलग आदेशों में ऑटो चालक चबीनाथ दीक्षित, जिन्होंने कथित तौर पर अपहृत पीड़ितों को अपराध स्थल तक पहुँचाया था, और मनोज गूजर को जमानत दी। जून 2011 में, गणेश करंजे (24), दिनेश अहिरे (25), चेतन धुले (24) और भारत कुंडल (27) के लापता होने की सूचना मिली थी। उनके आंशिक रूप से जले हुए शव 6 जून को एक पहाड़ी इलाके में पाए गए थे। हत्याएं कथित तौर पर पीड़ितों में से एक और मुख्य आरोपी 'स्थानीय गुंडे' के बीच हुए विवाद का परिणाम थीं।

2011 के कुरार चौगुनी हत्या मामले में दो आरोपियों को जमानत देते हुए, शहर की एक अदालत ने कहा, "प्रथम दृष्टया वे अपहृतों की मौत का कारण बनने वाली आपराधिक साजिश के पक्ष नहीं थे।" ऑटोरिक्शा चालक चबीनाथ दीक्षित और मनोज गूजर को जमानत देने वाले दो आदेशों में न्यायाधीश एस एम मेनजोगे ने कहा: "इस बात का कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने बंदियों को मारने की साजिश रची थी। यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं है कि वे हत्या में शामिल थे।"

दीक्षित और गूजर के अलावा, कथित गैंगस्टर उदय पाठक, जिसके खिलाफ अन्य आपराधिक मामले लंबित हैं, वैभव चव्हाण और हेमंत गुप्ता चौगुनी हत्या मामले में आरोपी थे। पुलिस ने आरोप लगाया था कि हत्याएं पीड़ितों में से एक और पाठक के बीच हुए विवाद का परिणाम थीं। पाठक ने अपने सहयोगियों को इकट्ठा किया था और उन्हें निर्देश दिया था कि वे गणेश करंजे (24), दिनेश अहिरे (25), चेतन धुले (24) और भरत कुंडल (27) को एक-एक करके किसी बहाने से ऑटोरिक्शा में लेकर जाएं। पुलिस ने आगे दावा किया कि कुरार गांव के पास अप्पा पाड़ा इलाके में एक पहाड़ी है।

हत्याओं का खुलासा 6 जून, 2011 को हुआ था, जब चार आंशिक रूप से जले हुए शव मिले थे। अदालत ने यह भी कहा कि गुप्ता को इस साल अप्रैल में बंबई उच्च न्यायालय ने जमानत दी थी। गुप्ता को जमानत देते हुए, उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने उनकी सीमित भूमिका, लंबे समय तक कैद और मुकदमे को पूरा करने में देरी को उन्हें रिहा करने के कारणों के रूप में उद्धृत किया था।

अभियोजन पक्ष ने दीक्षित और गूजर की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध किया और कहा कि अपराध गंभीर है। इसने आगे तर्क दिया कि अगर जमानत दी जाती है, तो दोनों अभियोजन पक्ष के गवाहों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। अदालत ने, हालांकि, आरोपी चव्हाण के बयानों पर भरोसा किया, जिन्होंने सह-आरोपी की भूमिकाओं का वर्णन किया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि चव्हाण के सबूतों से पता चलता है कि दीक्षित की भूमिका आरोपी और बंदियों को अपने ऑटोरिक्शा में ले जाने तक ही सीमित थी।

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