Jail Slang Meaning: UP में तन्हाई दिल्ली में कसूरी, जेलों के भीतर कैसी-कैसी शब्दावलियों का इस्तेमाल किया जाता है? नहीं पता तो पढ़िए...
Jail Slang Meaning: 'वो सर्द रात और सन्नाटा' कुछ इन्हीं शब्दों से बातचीत की शुरुआत हुई थी। एक मामले में जेल सजा काटकर निकले उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहने वाले कैदी से बीती सर्दियों मेरी बात हुई थी।
Jail Slang Meaning: 'वो सर्द रात और सन्नाटा' कुछ इन्हीं शब्दों से बातचीत की शुरुआत हुई थी। एक मामले में जेल सजा काटकर निकले उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में रहने वाले कैदी से बीती सर्दियों मेरी बात हुई थी। बातें ढ़ेर सारी। बातों बातों में जेलों का जिक्र चला तो अंदर बहुत अंदर जाकर रुका। कैदी ने हमें बताई गई बातों में जेल के भीतर बोली जाने वाली भाषा और शब्दावली में ही बात की।
कैदी ने हमसे बात करते हुए इलाकेवर, फट्टेवार, जिलेवार, केसवार, मुकदमेवार, चक्कर, खत्ता-पंजा, आमद-खारिज, कसूरी-तन्हाई जैसे तमाम शब्द कहे, जो सुने जाने पर बेहद अटपटे लगे। इन शब्दों का मतलब पूछा गया। जिसमें उक्त व्यक्ति ने हमें सिलसिलेवार ढंग से बताया। नीचे पढ़िए कैदी द्वारा बताए गए इन शब्दों का मतलब...
आमद-खारिज
कैदी के मुताबिक, एक जिले से दूसरे जिलों में बनीं जेलों में जब कोई बन्दी नया बन्द होकर आता है, तब उसकी आमद होती है। यानी वह अंदर आ गया है गिनती चालू। और वो दिन जब कैदी-बन्दी जेल से छूटकर जाता है वह दिन उसके खारिज का होता है। मतलब छूट गया, चला गया।
इसी तरह 'मुकदमेंवार' वो होता है जो कैदी बन्दी के साथ बन्द होकर जेल आता है। 'इलाकेवर' तब इस्तेमाल होता है जब जेल में बन्द कैदी-बन्दी का कोई नया आया जानकार अथवा मुहल्ले के निकलता है। इसके बाद एक और अहम किरदार बताया गया, जिस मुताबिक आता है फट्टेवार। यह वो भूमिका है जो कैदियों में एक दूसरे के प्रति संवेदना में भी रखती है। फट्टेवार वो शब्द है जिसका बिस्तर (फट्टा) अगल बगल रहता है, साथ रोटी खाते हैं।
कसूरी-तन्हाई
भारत की जेलों में मुख्यतः सभी राज्यों की जेलों में सेपरेट कमरे होते हैं। प्रचलन के मुताबिक नामों में भिन्नता हो सकती है, लेकिन उत्पात करने वाले कैदी-बन्दी को इन सेपरेट कमरों में बन्द कर दिया जाता है। उसे एक नियमित अवधि के लिए गिनती में खोला जाता है या नहीं भी खोला जाता है। उत्तर प्रदेश की जेलों में इन कमरों को तन्हाई कहा जाता है। वहीं दिल्ली की जेलों में कसूरी शब्द का इस्तेमाल होता है।
एक मामले में दिल्ली की मंडोली जेल से सजा काटकर लौटे एक कैदी दिलशाद ने हमें बताया की उन्हें लाइफ की सजा है। अभी फिलहाल जमानत पर हैं। दिल्ली के सीलमपुर निवासी दिलशाद जेल में ही मुशक्कत कर घर खर्च के लिए पैसे भेजते थे। उनसे वहां किस तरह का काम करने के सवाल पर वह बताते हैं कि वे मंडोली जेल में चक्कर मुंशी थे। दिलशाद के मुताबिक जेल में इस चक्कर का वो महत्व होता है, जैसे किसी टीवी चैनल में इनपुट का रोल। मतलब अंदर कैदियों की संख्या, आमद खारिज करने समेत तमाम काम होते हैं जो इन कैदियों के हवाले होते हैं।
एक अध्यन के मुताबिक, जेलों के भीतर कैदियों के लिए कई सारे काम किये जाते हैं। जिनमें इन्हें काम दिया जाता है। जेल की भाषा में काम को मुशक्कत कहते हैं..बाहर जॉब। मंडोली में तैनात डिप्टी सुपरिटेंडेंट एस. नैय्यर ने हमें बताया कि, जेलों में कैदियों की व्यस्तता को बनाये रखने और यह लोग छूटने के बाद बाहर भी कोई अच्छा काम करें, इस मेंटलिटी के चलते काम दिया जाता है। कुछ NGO's इस काम में मदद भी करती हैं।
नैय्यर आगे बताते हैं जो कैदी जिस काम के लायक होता है उसे वह काम दिया जाता है। जेल के भीतर कैंटीन, सिलाई, पढ़ाई, फार्मिंग, लंगर (यहां पूरी जेल का खाना बनता है), पेंटिंग, लाइब्रेरी, लीगल सेल (यहां कैदियों के लिए वकील सलाह देने आते हैं। उन्होंने कहा अंदर कैदियों दाढ़ी कटिंग तक के जो नाई रखे जाते हैं उन्हें भी वेतन मिलता है।
इसी तरह अच्छे आचरणों के बाद जमानत पाए प्रतापगढ़ निवासी दिलीप बताते हैं, जेल हर व्यक्ति को एक बार जाना चाहिए। यहां आपको जिंदगी की हकीकत देखने को मिलती है। दिलीप कहते हैं यही मुझे दुनिया की एकमात्र ऐसी जगह दिखी जहां अगर कोई अपना हो जाये तो बड़ी बात नहीं और कोई दुश्मनी कर ले तो कोई बड़ी बात नहीं। दिलीप ने ही हमें वह कविता सुनाई थी। फ़ोन पर। यह कविता उन्होंने एक किताब में पढ़ी थी। 'सर्द रात और सन्नाटा, लोबानी धुएं में लिपटा।'