Kashmir Press Club Srinagar | कश्मीर प्रेस क्लब पर सरकारी ताला

Kashmir Press Club Srinagar | 17 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी जब वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (World Economic Forum) द्वारा आयोजित दावोस एजेंडा 2022 (Davos Agenda 2022) में भाषण दे रहे थे, तब अपने भाषण में बार बार देश में लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे|

Update: 2022-01-18 12:18 GMT

Kashmir Press Club Srinagar | कश्मीर प्रेस क्लब पर सरकारी ताला

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

Kashmir Press Club Srinagar | 17 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी जब वर्ल्ड इकनोमिक फोरम (World Economic Forum) द्वारा आयोजित दावोस एजेंडा 2022 (Davos Agenda 2022) में भाषण दे रहे थे, तब अपने भाषण में बार बार देश में लोकतंत्र की दुहाई दे रहे थे| ऐसा वे हरेक अंतर्राष्ट्रीय मंच पर करते हैं और दुनिया को यह सन्देश देते हैं कि देश में लोकतंत्र की ह्त्या करने के बाद भी भाषणों में इसे जिन्दा रखते हैं| इसी दिन, यानि 17 जनवरी को कश्मीर प्रशासन में कश्मीर प्रेस क्लब (Kashmir Press Club) पर ताला जड़ दिया, प्रेस क्लब का पंजीकरण रद्द कर दिया, इसका अस्तित्व ख़त्म कर दिया और जिस जमीन पर यह स्थित था, उसे सरकार ने वापस ले लिया. यही प्रधानमंत्री मोदी ब्रांड लोकतंत्र का एक जीवंत नमूना है| दो दिन पहले ही ह्यूमन राइट्स वाच (Human Rights Watch) ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि निरंकुश शासक सबसे डरपोंक होता है, और हमारी सत्ता हरेक दिन यह साबित करने में व्यस्त रहती है कि वह निरंकुश भी है और डरपोंक भी – स्वतंत्र पत्रकारों से तो सत्ता बहुत भयभीत रहती है|

दुनिया और संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार का पैमाना भी अजीब सा है – चीन के उइगर मुस्लिम और म्यांमार के रोहिंग्या पर लगातार आंसूं बहाने वाले मानवाधिकार के बुत बने देश कश्मीर पर आँखे बंद कर लेते हैं| अगस्त 2019 में कश्मीर की स्वायत्तता पर हमले के बाद से केंद्र सरकार ने पूरे कश्मीर को बंधक बना दिया है, और कश्मीर से निष्पक्ष समाचारों का रास्ता बंद कर दिया है| यही नहीं, कश्मीर में सरकार के झूठे प्रचार को बढ़ावा देने वाले तथाकथित पत्रकारों का एक समूह भी तैयार कर दिया है जिसे झूठी खबरें फैलाने के पुरस्कार स्वरुप पुलिस और प्रशासन का भरपूर सहयोग मिलता है| 17 जनवरी को प्रेस क्लब की तालाबंदी से दो दिन पहले सरकार समर्थित पत्रकारों का एक छोटा समूह पुलिस के आला अधिकारियों के साथ प्रेस क्लब पर हमला करता है, प्रेस क्लब के अधिकारियों के साथ बदसलूकी करता है और पत्रकारों को प्रेस क्लब के भीतर जाने से रोकता है|

पिछले दो वर्षों से कश्मीर के स्वतंत्र पत्रकार सरकार के आतंकवाद से जूझ रहे हैं, पर कुछ खबरें ही कश्मीर से बाहर आ पाती हैं| सरकार ने सबसे पहले दुनिया में सबसे लम्बी अवधि तक इन्टरनेट बंद कर अपना उद्देश्य जाहिर कर दिया था, इसके बाद जून 2020 में लागू हुई न्यू मीडिया पालिसी के तहत पत्रकारों की प्रिश्भूमि की जांच का काम स्थानीय प्रशासन को दिया गया और कौन सी खबर सरकार विरोधी है इसे परखने का जिम्मा भी स्थानीय अधिकारियों के हवाले का दिया गया और यही अधिकारी किसी भी पत्रकार को सजा देने के लिए सक्षम करार दिए गए| अब, कश्मीर प्रेस क्लब बंद कर सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि निष्पक्ष पत्रकारिता से सरकार कितनी भयभीत है.

हाल के महीनों में अनेक पत्रकारों के घरों और कार्यालयों में पुलिस ने अवैध तरीके से तलाशी अभियान चलाया और अनेक पत्रकारों को हवालात में बंद भी किया| एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया (Editors Guild of India) ने इस कदम के बारे में कहा है कि, वे सरकारी रवैय्ये से आवाक हैं और इसे सरकारी आतंकवाद का उदाहरण कहा है| पूर्व मुख्यमंत्री ओमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने भी इस कदम को सरकार प्रायोजित आतंकवाद करार दिया है| प्रेस क्लब के अधिकारियों के चुनाव हाल में ही कराये जाने थे, जिसपर प्रशासन ने रोक लगा डी है| इससे पहले कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन और कश्मीर चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स के अधिकारियों के चुनावों पर भी सरकार रोक लगा चुकी है|

कश्मीरवाला नामक समाचार पत्र के सम्पादक फहद शाह ने कहा है कि सरकार लगातार पत्रकारिता की ह्त्या कर रही है और पिछले दो वर्षों से कश्मीर के सभी निष्पक्ष पत्रकार आतंकवादियों के नहीं बल्कि सरकारी आतंकवाद के साए में हैं| सत्ता और कानून, दोनों मिलकर निष्पक्ष आवाजों को दबा रहे हैं, और सरकार केवल वही समाचार चाहती है जो झूठ पर आधारित हो| एक स्वतंत्र पत्रकार, सज्जाद गुल, ने हाल में ही अपने अनेक लेखों द्वारा पुलिस और अर्धसैनिक बलों द्वारा किये जा रहे "फेक एनकाउंटर" को उजागर किया था| जाहिर है, सब कुछ ठीक है का नारा लगाने वाले प्रशासन और केंद्र सरकार को यह समाचार पसंद नहीं आया होगा और अब सजाद गुल पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट, जिसके तहत आतंकवादियों पर कार्यवाही की जाती है, के तहत मुक़दमा दायर किया गया है और कहा गया है कि वे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए खतरा हैं|

पिछले 2 वर्षों के दौरान 40 से अधिक पत्रकारों के घरों की तलाशी ली गयी है, उन्हें जेलों में बंद किया गया है और उन्हें "नो फ्लाई" लिस्ट में शामिल कर लिया गया है, जिसका मतलब है कि ये पत्रकार किसी भी हालत में देश के बाहर नहीं जा सकेंगें| सबसे हास्यास्पद यह है कि प्रेस क्लब पर ताला जड़ने को भी प्रशासन ने सही ठहराया है और इसे पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की आजादी के लिए उठाया गया कदम बताया है|

स्थानीय प्रशासन और केंद्र सरकार से अलग इस घटना को केवल कश्मीर के ही नहीं बल्कि देश के पत्रकारों की मानसिक गुलामी से भी जोड़ कर देखना चाहिए. आज अनेक समाचार पत्रों में यह खबर ही नहीं है, या फिर एक कोने में पडी बहुत छोटी सी खबर है| प्रायः माना जाता है कि आर्थिक कारणों से पत्रकार या मीडिया घराने सरकार का समर्थन करते हैं, पर आब हम इससे दूर पहुँच गए हैं – अब अधिकतर पत्रकार मानसिक गुलाम हैं और जनता के मुद्दे भूल चुके हैं| पर निष्पक्ष पत्रकार रुकते नहीं हैं, कश्मीर और अफगानिस्तान इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं| 

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