पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को पीटा गया, कस्टडी में मानसिक उत्पीड़न का मामला : केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने कहा कि कप्पन को दवाओं से वंचित रखा गया था और पूछताछ के बहाने पांच अक्टूबर की शाम छह बजे से छह अक्टूबर 2020 की सुबह छह बजे तक सोने नहीं दिया गया...

Update: 2020-12-02 02:47 GMT

सिद्दीक कप्पन की बढ़ी मुश्किलें, जेल से बाहर निकलने के लिए नहीं मिल रहे यूपी के दो जमानतदार

महताब आलम की रिपोर्ट

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (KUWJ-केयूडब्ल्यूजे) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपने जवाबी हलफनामे में आरोप लगाया है कि मलयालम पत्रकार सिद़दीकी कप्पन को तीन बार पीटा गया था और हिरासत के दौरान उन्हें मानसिक यातना दी गई थी।

जवाबी हलफनामे में केयूडब्ल्यूजे के वकील विल्स मैथ्यूज और कप्पन के बीच आधे घंटे की मुलाकात का उल्लेख किया गया है। इसमें यह उल्लेख किया गया है कप्पन को तीन बार लिटाकर उनकी जांघ पर तीन बार लाठी से मारा गया। चश्मा उतारने के बाद तीन बार थप्पड़ मारा गया। शाम छह बजे से सुबह छह बजे तक जागने के लिए मजबूर किया गया, बिना किसी दवा के उन्हें गंभीर मानसिक यंत्रणा पांच अक्टूबर से छह अक्टूबर 2020 के बीच दी गई।

हलफनामे के अनुसार, कप्पन जो मधुमेह के रोगी हैं और दवा से वंचित रखे गए थे उन्हें पांच अक्टूबर शाम पांच बजे से छह अक्टूबर 2020 के बीच सुबह छह बजे तक सोने के उनके अधिकार से वंचित रखा गया।

द वायर से बातचीत करते हुए वकील मैथ्यूज ने इस बात की पुष्टि की कि मुलाकात के दौरान कप्पन ने उन्हें बताया कि उन्हें पीटा गया था और गंभीर मानसिक यातना दी गई। इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि पिछले महीने शीर्ष अदालत द्वारा एक आदेश के बाद कि वकील अभियुक्त से मिल सकते हैं, के बाद मलयालम पत्रकार के साथ वकील की बैठक संभव हुई थी। इससे पहले, जब यूनियन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील पत्रकार कप्पन से मिलने गए तो उन्हें इसकी अनुमति नहीं दी गई।

केयूडब्ल्यूजे के हलफनामे में प्रतिवादी (उत्तरप्रदेश सरकार और डीजीपी उत्तरप्रदेश) द्वारा लगाए गए आरोपों से इनकार किया गया कि आरोपी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआइ) का कार्यालय सचिव है, इसे प्रतिवादियों का एक पूर्णतः झूठा और गलत बयान बताया गया।

उत्तरप्रदेश सरकार ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के सामने अपने हलफनामे में कप्पन के बारे में कई दावे किए थे, जिसमें यह भी कहा गया था कि वह पीएफआइ का कार्यालय सचिव हैं और केरल के पत्रकार होने का आवरण और केरल बेस्ड तेजस नाम के एक अखबार के पहचान पत्र का उपयोग कर रहे हैं जो 2018 में बंद हो गया था। हालांकि इसमें वे उनके द्वारा किए गए किसी भी गलत व गैर कानूनी काम का कोई सबूत देने में विफल रहे हैं, उन पर कोई ऐसा आरोप नहीं है जो उन पर लगाए गए यूएपीए के तहत आता हो।

उत्तरप्रदेश सरकार ने दावा किया है कि यह जांच के दौरान पता चला है कि वह अन्य पीएफआइ कार्यकर्ताओं और उनके छात्र विंग (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) के नेताओं के साथ पत्रकारिता की आड़ में जातियों को विभाजित करने और कानून व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए हाथरस जा रहे थे।

केयूडब्ल्यूजे ने सुप्रीम कोर्ट से मामले की तुरंत न्यायिक जांच कराने और पत्रकार को रिहा करने की मांग की है। शपथ पत्र में कहा गया है कि न्याय के हित में और न्याय की जरूरत के लिए मामले की न्यायिक जांच करायी जाए और 30 दिन के अंदर इसकी रिपोर्ट पेश की जाए ताकि न्यायिक सिस्टम में लोगों का विश्वास मजबूत हो।

इसमें आगे कहा गया है, न्याय के हित में आरोपी को अवैध हिरासत से मुक्त करने की आवश्यकता है। भारत के पूरे संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो माननीय न्यायालय कोे वास्तविक न्याय को विचार करने से रोकता हो ताकि झूठे मामले से पीड़ित का न्याय सुनिश्चित हो सके। एफआइआर को अनावृत्त रूप से पढने से इस तथ्य का पता चलता है कि अपराध की अपराध के घटक बाहर नहीं बनाए गए हैं और अरोपी निर्दाेष है।

कप्पन और अन्य पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (देशद्रोह), 153ए (समूहों के बीच दुश्मनी को बढाना देना), 295ए (धार्मिक भावनाओं को भड़काना) के आरोप है। यूएपीए की धारा 14 एवं 17, और सूचना तकनीक एक्ट की धारा 65, 72 और 76 के तहत आरोप लगाए गए हैं। बाद में उन्हें हाथरस साजिश के तहत आरोपी बनाया गया।

(महताब आलम की यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में द वायर में प्रकाशित।)

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