संविधान के 'मूल संरचना सिद्धांत' को निर्धारित करने वाले फैसले के याचिकाकर्ता केशवानंद भारती का निधन

केशवानंद भारती केरल के कासरगोड़ स्थित एडनीर मठ के प्रमुख थे। 47 वर्ष पूर्व वर्ष1973 में उनके और केरल सरकार के बीच चले केस के फैसले के कारण उनकी अलग पहचान बन गई थी।

Update: 2020-09-06 09:59 GMT

Keshvanand Bharti (File photo)

जनज्वार। 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य' के फैसले को न्यायालयों में आज भी केसों के दौरान उद्धृत किया जाता है। उन्हीं केशवानंद भारती का आज निधन हो गया है। उन्हें 'केरल का शंकराचार्य' भी कहा जाता था, पर उनका मुख्य परिचय यह था कि संविधान के 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण करने वाले केस में वे प्रमुख याचिकाकर्ता थे। केशवानंद भारती का रविवार सुबह केरल के कासरगोड जिले के एडानेर स्थित उनके आश्रम में निधन हो गया।

79 वर्षीय केशवानंद भारती को संविधान का रक्षक भी कहा जाता था, चूंकि उसी केस में सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय पीठ ने यह फैसला दिया था कि संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता।

केशवानंद भारती केरल के कासरगोड़ स्थित एडनीर मठ के प्रमुख थे। 47 वर्ष पूर्व वर्ष1973 में उनके और केरल सरकार के बीच चले केस के फैसले के कारण उनकी अलग पहचान बन गई थी। 

1973 में 'केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य' का फैसला करीब 48 साल बाद भी प्रासंगिक है और देश ही नहीं, बल्कि दुनिया की कई अदालतों में इस केस को उदाहरणस्वरूप कोट किया जाता है। 'केशवनंद भारती बनाम केरल राज्य' केस के ऐतिहासिक फैसले के अनुसार, 'संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को किसी भी सूरत में बदला नहीं जा सकता।'

उल्लेखनीय है कि केरल की तत्कालीन सरकार ने भूमि सुधार कानून लाया था। इसके तहत जमींदारों और मठों के पास मौजूद हजारों एकड़ की जमीन अधिगृहीत कर ली थी। सरकार का कहना था कि जमीनें लेकर आर्थिक गैर-बराबरी कम करने की कोशिश कर रही है। इस फैसले को ही उन्होंने चुनौती दी थी।

केशवानंद के एडनीर मठ की संपत्ति भी इसके दायरे में आ गई थी। मठ की सैकड़ों एकड़ की जमीन सरकार की हो चुकी थी।बाद में केशवानंद भारती ने केरल सरकार के इस फैसले को अदालत में चुनौती दी थी। 

केशवानंद द्वारा कोर्ट में याचिका डाल अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए दलील दी गयी कि मठाशीध होने के नाते उन्हें अपनी धार्मिक संपत्ति को संभालने का हक है। उन्होंने स्थानीय और केंद्र सरकार के कथित भूमि सुधार तरीकों को भी चुनौती दी थी।

पहले केरल हाईकोर्ट में उनकी याचिका खारिज हो गई। तब केशवानंद सुप्रीम कोर्ट की शरण मे गए थे। इस महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट में 13 जजों की संवैधानिक बेंच ने केशवानंद भारती के पक्ष में फैसला दिया था।

केशवानंद की याचिका पर 23 मार्च 1973 को सुप्रीम कोर्ट ने वह ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसे आज 'केशवानंद बनाम केरल सरकार' केस में फैसले के तौर पर उद्धृत किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की संवैधानिक बेंच ने यह फैसला सुनाया था। 

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