KV Subramanian : एक और अर्थशास्त्री केवी सुब्रमण्यम ने छोड़ा मोदी सरकार का साथ, कहा देश के लिए सेवाएं देता रहूंगा
KV Subramanian : अर्थशास्त्री केवी सुब्रमण्यम ने मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद से इस्तीफा दे दिया है।
जनज्वार। एक और अर्थशास्त्री ने केंद्र की मोदी सरकार साथ छोड़ दिया है। ताजा खबर यह है कि केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम (KV Subramanian) ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसके बारे में अपने ट्वीट में कहा कि मैंने अपने तीन साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद शिक्षा जगत में वापस लौटने का फैसला किया है। राष्ट्र की सेवा करना मेरे लिए परम सौभाग्य रहा है। इससे मुझे अद्भुत समर्थन और प्रोत्साहन मिला है।
केवी सुब्रमण्यम ने अपने अपना पूरा बयान ट्विटर पर साझा किया है और इसे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पीआईबी इंडिया को टैग किया है।
केवी सुब्रमण्य को 7 दिसंबर 2018 को मुख्य आर्थिक सलाहकार (Chief Economic Advisor) का पद संभाला था। उनसे पहले इस पद पर अरविंद सुब्रमण्यम (Arvind Subramanian) थे। केवी सुब्रमण्यम इससे पहले सेबी यानि भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड और आरबीआई की विशेषज्ञ समितियों में रहे हैं। केवी सुब्रमण्यम जेपी मॉर्गन चेस, आईसीआईसीआी बैंक और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
केवी सुब्रमण्यम ने अपनी पोस्ट में लिखा- मुझे सरकार से जबरदस्त प्रोत्साहन और समर्थन मिला और वरिष्ठ अधिकारियों से मधुर संबंध रहे। लेकिन अब तीन साल सेवाएं देने के बाद मैं रिसर्चर के रूप में देश को सेवाएं दूंगा। बयान में उन्होंने कहा कि मैं जब नॉर्थ ब्लॉक में गया हूं तो मैंने खुद को इस जिम्मेदारी की याद दिलाई है। मैंने हमेशा अपने फर्ज को पूरा करने का प्रयास किया है।
हाल ही में केवी सुब्रमण्यम ने बयान दिया था कि भारत इस दशक में सात फीसदी से अधिक की आर्थिक वृद्धि दर्ज करेगा। उन्होंने कहा था कि देश की आर्थिक बुनियाद मजबूत है और चालू वित्त वर्ष दर 10 फीसदी से ज्यादा रहेगी। सुब्रमण्यम ने यह भी कहा था कि अगले वित्त वर्ष में यह घट जाएगी और 6.5 से 7 फीसदी ही रह जाएगी।
सोशल मीडिया पर भी उनके इस्तीफे पर चर्चा होनी शुरु हो गई है। पत्रकार कृष्ण कांत ने लिखा- उर्जित पटेल, अरविंद सुब्रमण्यम, अरविंद पनगढ़िया याद हैं? सबने कार्यकाल पूरा किए बगैर पद छोड़ा। अर्थव्यवस्था माइनस में है। उधर विशेषज्ञ सरकार के साथ टिक नहीं पा रहे हैं। चाहे आरबीआई गर्वनर हों या सलाहकार, वे कुछ वक्त बाद चले जाते हैं. इस सरकार में बार बार अर्थशास्त्रियों का पद छोड़कर भागना क्या किसी बड़ी गड़बड़ी की ओर इशारा है?