Bihar By-election Results : उपचुनाव की दोनों सीटों पर राजद की हार, बिहार की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रह गए लालू ?

Bihar By-election Results : बिहार विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे आ चुके हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के तमाम दावों के बावजूद दोनों सीटों पर पार्टी की करारी हार हो गई है।

Update: 2021-11-02 17:01 GMT

(बिहार विधानसभा उपचुनाव में दोनों सीटों पर राजद की हार के बाद लालू यादव की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे हैं)

राजेश पाण्डेय का विश्लेषण

Bihar By-election Results : बिहार विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव (Bihar By-election) के नतीजे आ चुके हैं। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के तमाम दावों के बावजूद दोनों सीटों पर पार्टी की करारी हार हो गई है। स्थिति यह है कि पिछली बार की बनिस्पत हार का अंतर बढ़ ही गया है।

वहीं, सबसे बड़ी दुर्गति कांग्रेस (Congress) की हो गई है। कांग्रेस का दोनों सीटों पर बुरा हाल हो गया है। उसके दोनों उम्मीदवार महज 5000 वोटों तक सिमट कर रह गए हैं। बड़े तामझाम के साथ पार्टी में शामिल किए गए कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) भी परिणामों पर कोई असर नहीं डाल सके और कई चुनावी सभाएं करने के बावजूद नतीजा सिफर रहा। पार्टी महासचिव और बिहार प्रभारी भक्तचरण दास (Bhaktcharan Das) के बड़े बोल भी फेल हो गए।

उपचुनावों के परिणाम के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की प्रतिक्रिया आई है। सीएम नीतीश कुमार ने कहा, "बिहार विधानसभा उपचुनाव में कुशेश्वरस्थान एवं तारापुर से जदयू और एन०डी०ए० के उम्मीदवारों को जीत दिलाने के लिए क्षेत्र की जनता को बधाई। लोकतंत्र में जनता मालिक है और जनता ने अपना फैसला सुना दिया है।"

वहीं, नेता प्रतिपक्ष राजद के तेजस्वी यादव ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "हमने मजबूती के साथ दो सीटों पर चुनाव लड़ा। 5 सत्ताधारी पार्टियों के गठबंधन (NDA) के विरुद्ध राजद ने पहले से अधिक मत प्राप्त किए। मतदाता मालिकों का हार्दिक धन्यवाद। सत्ता में बैठ गांव के हालात को भूल गए लोगों को कथित विकास का दर्शन कराया। बिहार की जनता बदलाव चाहती है और बदलाव होकर रहेगा।"

चुनाव परिणामों को लेकर वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह साफ-साफ कहते हैं कि इस परिणाम से चार बातें बिल्कुल साफ हो गई हैं। इसमें सबसे अहम बात यह है कि लालू प्रसाद यादव अब प्रासंगिक नहीं रहे।

वे कहते हैं, "बिहार विधानसभा उपचुनाव का जो परिणाम सामने आये हैं उससे यह संकेत साफ है कि बिहार अभी भी एमवाई (MY Samikaran) समीकरण की आक्रामकता को स्वीकार करने को तैयार नहीं है। दूसरा संदेश यह भी है कि बिहार की राजनीति में लालू अब प्रासंगिक नहीं रहे। तीसरा संदेश है कि बिहार की राजनीति में बनिया वर्ग अब बीजेपी की बपौती नहीं रहा और चौथा संदेश यह भी है कि नीतीश कुमार की राजनीति में अब वो धार नहीं रही।"

बता दें कि लालू प्रसाद यादव ने भी स्वास्थ्य संबन्धी तमाम दिक्कतों का बीच चुनाव प्रचार के अंतिम दिन दोनों क्षेत्रों में जनसभाएं की थीं लेकिन मतदाताओं पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा, जैसा वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह का आकलन है।

संतोष सिंह कहते हैं, "एमवाई समीकरण की आक्रामकता राजद की हार की एक बड़ी वजह बनी। इस आक्रामकता के कारण फिर से बाकी जातियां दूसरी ओर गोलबंद हो गईं।"

बात अगर कुशेश्वरस्थान विधानसभा क्षेत्र के परिणाम की करें तो साल 2020 के विधानसभा चुनावों में जदयू से शशिभूषण हजारी और कांग्रेस से डॉ अशोक राम चुनाव लड़े थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में शशि भूषण हजारी को 53,980 वोट मिला था और डॉक्टर अशोक कुमार 46,758 मिला था ।

वहीं, इस बार के चुनाव में जदयू के अमन भूषण हजारी को 59,882 और राजद के गणेश भारती 47184 वोट आया है। इसका मतलब है कि पिछले चुनाव की तुलना में जदयू को लगभग 5902 हजार वोट अधिक मिला। वहीं, राजद उम्मीदवार को पिछले साल के कांग्रेस उम्मीदवार की बनिस्पत मात्र 426 वोट अधिक मिला है।

संतोष सिंह ने कहा, "इसका संदेश क्या है? पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जो सवर्ण वर्ग का वोट मिला था, वो वोट इस बार पूरी तौर पर जदयू के साथ हो गया।"

बता दें कि मुसहर जाति को टिकट देकर राजद ने इस बार क्षेत्र में नया प्रयोग किया था। हालांकि, वह प्रयोग पूरी तौर पर विफल रहा।

संतोष सिंह कहते हैं कि उसकी वजह यह रही कि कुशेश्वरस्थान में मुसहर और यादव के बीच वर्चस्व को लेकर लड़ाई रही है। इस हकीकत को राजद ने नजर अंदाज कर दिया।

वहीं, वर्षो बाद राजद का लालटेन देख कर जिस तरीके से यादव और मुस्लिम वोटर मिजाज में आ गये थे, इसका असर यह हुआ कि कुशेश्वरस्थान में अन्य जातियां दूसरी ओर गोलबंद हो गई। और पिछले चुनाव से लगभग 5 प्रतिशत वोट कम पड़ने के बावजूद जदयू 12 हजार से अधिक वोट से चुनाव जीत गया।"

इस परिणाम के बाद अब यह बहस भी छिड़ गई है कि लालू प्रसाद यादव के मैदान में उतरने के बावजूद राजद की दोनों सीटों पर हार क्यों हो गई ? क्या पहले वाला उनका जादू अब नहीं रह ?

पत्रकार संतोष सिंह ने साफ कहा कि "बिहार की राजनीति में लालू अब प्रासंगिक नहीं रहे। उप चुनाव के परिणाम ने एक तरह से यह तय कर दिया है। उनकी सभा से या फिर राजनीतिक शैली से भले ही यादव और मुसलमान वोटर आक्रमक हो जाते हैं लेकिन दूसरी और अन्य वोटर राजद से अलग भी हो जाता है।"

उधर, कांग्रेस की तो इन चुनावों में और दुर्गति हो गई। जो इस बार तारापुर में कांग्रेस के प्रत्याशी थे, वे पिछले वर्ष के विधानसभा चुनाव में यहां से निर्दलीय मैदान में उतरे थे। पिछले चुनाव में तारापुर से निर्दलीय चुनाव लड़े इस बार के कांग्रेस प्रत्याशी को 12 हजार से अधिक वोट आया था।

लेकिन इस बार 4 हजार से भी कम वोट आया। यही हाल लोजपा प्रत्याशी का भी रहा। कुशेश्वरस्थान में पिछले चुनाव में लोजपा प्रत्याशी को 12 हजार से अधिक वोट आया था, लेकिन इस बार लोजपा 5 हजार में सिमट कर रह गई। तारापुर में भी यही स्थिति रही। यहां भी पिछले चुनाव से लगभग तीन हजार वोट कम आया लोजपा को।

पत्रकार संतोष सिंह एक और महत्वपूर्ण तथ्य की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार की राजनीति में अब बनिया वर्ग बीजेपी का कोर वोटबैंक नहीं रहा। यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लाख कोशिश के बावजूद बनिया वोट में सेंधमारी करने में राजद कामयाब रहा था।

उस चुनाव में पांच विधायक बनिया समाज से राजद के टिकट पर चुनाव जीत कर आये। इस बार फिर तारापुर में बीजेपी के बनिया समाज के नेताओं के मैदान में उतरने के बावजूद बनिया वोटर में बड़ा बिखराव हुआ है। कुशेश्वर स्थान में भले ही जदयू को बड़ी जीत मिली है लेकिन यहां भी बनिया वोटर में बिखराव दिखा है।

साल 2020 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो कुशेश्वरस्थान में जदयू को 64 हजार 199 वोट आया था। वहीं, राजद प्रत्याशी को 56943 वोट आया था। जदयू 7 हजार 225 वोट के अंतर से चुनाव जीता था। वहीं, इस बार जेडीयू को 78966 वोट प्राप्त हुआ है, जबकि राजद को 75145 वोट मिला है। जदयू यहां 3821 मतों से चुनाव जीत गया है।

इसका मतलब यह हुआ कि इस बार के चुनाव में जदयू को पिछले चुनाव की तुलना में 14,199 वोट ज्यादा आया है। वहीं, राजद को 18,202 वोट ज्यादा मिला है , फिर भी राजद 3821 वोट से चुनाव हार गया। अर्थात संकेत साफ हैं कि बनिया का वोट राजद के साथ जुड़ा लेकिन अन्य वर्गों का साथ नहीं मिला।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बिहार की राजनीति में इंपैक्ट की अक्सर चर्चा होती है। पिछले विधानसभा चुनावों में जब उनकी पार्टी जदयू तीसरे नम्बर पर आ गई थी तभी से कहा जाने लगा कि उनका पहले वाला असर नहीं रहा।

नीतीश कुमार की चर्चा करते हुए पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि उनकी राजनीति में अब वो धार नहीं रही। दोनों चुनाव जीतने के बावजूद ये कहना कि नीतीश कुमार की राजनीति में अब वो धार नहीं रही तोड़ अटपटा लगता है लेकिन जिस कुशेश्वर स्थान में भी जदयू ने जीत हासिल की है, वहां भी नीतीश कुमार के समीकरण वाला वोट जदयू को कैसे मिला है मंत्री संजय झा बेहतर बता सकते हैं।

तारापुर में भी यही स्थिति रही मतलब जदयू लव कुश और अति पिछड़ा के बदौलत राजद की तरह ही अंतिम चरण तक फाइट में बना रह सकता है लेकिन फाइनली जीतने के लिए उन्हें सवर्ण वोटर का भरपूर सहयोग चाहिए। यह इस चुनाव में साफ दिख रहा था।"

कुशेश्वर स्थान और तारापुर में भी लव कुश और अति पिछड़ा और महादलित का वोटर कम नहीं है, लेकिन सवर्ण थोड़ा सा भी मुख मोड़ लेता तो हार निश्चित थी।" संतोष सिंह कहते हैं।

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