Living Root Bridges Meghalaya: मेघालय के लिविंग ब्रिज यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल, 15 से 200 फीट तक ऊंचे बने कुछ पुल 200 साल से भी पुराने
Living Root Bridges Meghalaya: मेघालय के विख्यात लिविंग ब्रिज (Living Bridges of Meghalaya) को यूनेस्को ने हाल में ही वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स के संभावित सूची (Tentative List of World Heritage Sites) में शामिल किया है।
Living Root Bridges, Meghalaya: मेघालय के लिविंग ब्रिज यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल, 15 से 200 फीट तक ऊंचे बने कुछ पुल 200 साल से भी पुराने
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Living Root Bridges Meghalaya: मेघालय के विख्यात लिविंग ब्रिज (Living Bridges of Meghalaya) को यूनेस्को ने हाल में ही वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स के संभावित सूची (Tentative List of World Heritage Sites) में शामिल किया है। मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स और वेस्ट जैंतिया हिल्स जिलों (East Khasi Hills & West Jaintia Hills) के 70 से अधिक गाँवों में इस तरह के 100 से अधिक पुल हैं।
मेघालय के खासी जनजाति को ऐसे पुलों के निर्माण में महारत हासिल है, और यह उनका परम्परागत ज्ञान (Traditional Knowledge) है। ऐसे पुलों को स्थानीय भाषा में जिन्ग्किएन्ग जरी (Jingkieng Jri) कहा जाता है। कुछ पुल दो मंजिला भी हैं और कुछ पुलों की उम्र 200 वर्षों से भी अधिक है। मेघालय में जिन गाँव में सड़कें नहीं हैं, या फिर नदियों पर पुल नहीं हैं – उन क्षेत्रों में आवागमन, शिक्षा, स्वास्थ्य, मतदान और आर्थिक गतिविधियों के लिए इस तरह के पुल बहुत उपयोगी हैं। इन पुलों की ऊंचाई पानी से 15 से 250 फीट तक ऊंची है।
लिविंग ब्रिज को रूट ब्रिज (Root Bridge) भी कहा जाता है। दरअसल इस पुल के लिए पहले बांस को नदी के आरपार फैलाया जाता है और इसके बबाद इसके किनारों पर इस पूरे क्षेत्र में बहुतायद से पनपने वाले, रबर के पेड़ यानि फाईकस एलास्टिका (Indian Rubber Tree or Ficus elastica), की जड़ें लपेट दी जाती हैं। जड़ें जैसे जैसे आगे बढ़ती हैं और मोटी होती जाती हैं, पुल की मजबूती बढ़ती जाती है। ऐसे नए पुलों को उपयोग लायक बनाने में लगभग 2 दशक का समय लग जाता है।
शुरू में इन पुलों पर से प्रति दिन 15 से 20 व्यक्ति पार कर पाते हैं, पर बाद में इनकी मजबूती बढ़ने के बाद प्रतिदिन 50 से अधिक लोग पार कर जाते हैं। लिविंग ब्रिज इन्हें इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका निर्माण पेड़ की बढ़ती और जिन्दा जड़ों द्वारा किया जाता है – इसी कारण से बहुत से लोग इन्हें रूट ब्रिज भी कहते हैं।
सिविल इंजीनियरिंग के सन्दर्भ में इस प्रकार के पुल, निलंबित यानी सस्पेंशन ब्रिज की श्रेणी में आते हैं। पर सिविल इंजीनियरिंग पद्धति द्वारा बनाए गए पुलों और इन पुलों में बहुत अंतर होता है। सिविल इंजीनियरिंग पद्धति से बने पुलों की समय के साथ मजबूती कम होती जाती है, जबकि लिविंग ब्रिज समय के साथ जड़ों के बढ़ने के कारण पहले से अधिक मजबूत हो जाते हैं। इन पुलों के लिए केवल प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग होता है और सभी निर्माण सामग्री स्थानीय सम्पदा होती है, जबकि सामान्य पुल केवल मानव-निर्मित पदार्थों से बनाये जाते हैं, जिनका परिवहन सुदूर क्षेत्रों से किया जाता है और पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं। लिविंग पुलों में पानी के बहाव या नदी के किनारों से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती है।
यूनेस्को की वेबसाइट पर लिविंग पुलों के बारे में लिखा गया है कि ऐसे पुल खासी जनजाति के परम्परागत ज्ञान का नायाब नमूना हैं और ये विशेष पारिस्थितिकी तंत्र हरेक मौसम की मार झेलते हुए भी शताब्दियों तक टिके रहते हैं। ऐसे पुल मनुष्य और प्रकृति के परस्पर समन्वय का आदर्श उदाहरण हैं और इनमें प्राचीन संस्कृति, परंपरा और सामूहिक भागीदारी की झलक मिलती है। लिविंग ब्रिज सामाजिक तौर पर वनस्पति विज्ञान के उपयोग (ethno-botanical knowledge) का आदर्श उदाहरण हैं और और यह इस तरह की एक लम्बी यात्रा को दर्शाता है और मानव द्वारा निर्मित कला का अनोखा नमूना है।
23 वर्षीय मोर्निंगस्टार खोंग्थाव (Morningstar Khougthaw) लिविंग ब्रिज फाउंडेशन के संस्थापक हैं, और उन्होंने यूनेस्को के इस पहल का स्वागत किया है। यह फाउंडेशन सभी लिविंग ब्रिज का संरक्षण और देखभाल का काम करता है और ऐसे नए पुलों को बनाने में मदद भी करता है। मोर्निंगस्टार खोंग्थाव के गाँव, रंगथ्य्ल्लिंग (Rangthylling), में इस तरह के 20 पुल काम कर रहे हैं।
मेघालय के लिविंग ब्रिज जैसी संरचना पूरी दुनिया में और कहीं नहीं है और यह प्रकृति का विनाश किये बिना इसका उपयोग करने और इस क्षेत्र के परम्परागत विज्ञान और अभियांत्रिकी का एक अनोखा उदाहरण है। हमारे देश के अब तक कुल 49 स्थल या आकृतियाँ यूनेस्कों की संभावित सूची में शामिल हैं, इनमें से कुछ स्थान तो वर्ष 1998 से ही इस सूची में शामिल हैं।
हमारे देश के 19 राज्यों में कुल 40 स्थल यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में शामिल हैं – इनमें से 32 सांस्कृतिक स्थल/केंद्र/इमारत (Cultural Sites) हैं, 7 प्राकृतिक क्षेत्र (natural sites) हैं और 1 सास्कृतिक और प्राकृतिक mixed, cultural+natural) है। हमारा देश वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स की संख्या के सन्दर्भ में दुनिया में छठे स्थान पर है।
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