अनलॉक में भी बंद हैं आंगनबाड़ियां और पोषण सेवाएं, NRC में नहीं गूंज रहीं किलकारियां

कहीं पोषण की जिम्मेदारी से पीछे तो नहीं हट रही मोदी सरकार, सरकार को अभी यह भी नहीं पता कि पिछले 6 महीने में देशभर में कितने बच्चे कुपोषण की बलि चढ़ गए और फिलहाल कितने बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मौत की घड़ियां गिन रहे हैं...

Update: 2020-09-08 07:59 GMT

भोपाल से सौमित्र रॉय की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो, भोपाल। देश में सोमवार 7 सितंबर से शुरू हुए पोषण माह के लिए अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाज से कुपोषण को दूर करने में मदद का आह्वान करते हुए पौष्टिक भोजन की रेसिपी सरकारी पोर्टल में भेजने का आग्रह भी किया। प्रधानमंत्री के इस आह्वान से यह धारणा और पुष्ट हो जाती है कि सरकार 6 साल की उम्र तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और धात्री माताओं को पोषण देने की अपनी जिम्मेदारी से तेजी के साथ मुंह मोड़ती जा रही है।

सरकारी आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं कि 25 मार्च से जारी लॉकडाउन के बाद से देश में आंगनबाड़ी और सबसे निचले स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाएं जिस कदर प्रभावित हुई हैं, उसके चलते आने वाले महीनों में देश में कुपोषित बच्चों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होगी।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का डेटा कहता है कि इस साल अप्रैल से जून तक देश के 966 पोषण पुनर्वास केंद्रों में महज क्षमता के 9-13 प्रतिशत कुपोषित बच्चे ही दाखिल हुए। अप्रैल में पोषण पुनर्वास केंद्रों (एनआरसी) में दाखिल होने वाले बच्चों की संख्या 1315 थी, जो कि पिछले साल अप्रैल में दाखिल हुए बच्चों की संख्या का सिर्फ 9 फीसदी है। इसी तरह मई में 3472 बच्चे एनआरसी में दाखिल हुए, जो 13 प्रतिशत और जून में 3472 बच्चों का दाखिल कराया गया, जो पिछले साल के जून में दाखिल बच्चों का 16 प्रतिशत है।


मध्यप्रदेश की बात करें तो कुपोषण से सर्वाधिक प्रभावित धार, अलीराजपुर और झाबुआ में एनआरसी खाली पड़े हैं। इन जिलों में आंगनबाड़ी केंद्रों के 25 मार्च से ही बंद होने के कारण न तो बच्चों की वृद्धि निगरानी हो रही है और न ही कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया जा रहा है। राष्ट्रीय पोषण केंद्र हैदराबाद द्वारा 2018 में जारी किए गए आंकड़ों के तहत अलीराजपुर में 54.6%, झाबुआ में 48.6% और धार में 38.5% बच्चे कुपोषित पाए गए हैं।

वर्ष 2016 के सितंबर माह में कुपोषण के लिए कुख्यात मध्य प्रदेश के श्योपुर में कुपोषण 116 मासूमों को लील गया था। इसके बाद मध्यप्रदेश में पहली बार जिले को तीन हिस्सों में बांटकर 23 ग्रोथ मॉनिटरों को नियुक्त किया गया। लेकिन पिछले साल 31 मई को श्योपुर में इन सभी ग्रोथ मॉनिटरों की अनुबंध अवधि को नहीं बढ़ाया गया। जिले में पोषण अभियान की निगरानी के लिए एक भी ग्रोथ मॉनिटर नहीं हैं।

मध्यप्रदेश में कुल 8903 आंगनवाड़ी शहरी क्षेत्रों में और ग्रामीण क्षेत्रों में 51558 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। कोरोना काल में राज्य की शिवराज सिंह सरकार ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को कोविड संक्रमण की जांच में लगा दिया और 6 साल तक के बच्चों और गर्भवती, धात्री महिलाओं को सूखा राशन किट बांटने निर्देश दिए।

स्वसहायता समूहों के जरिए बांटे जाने वाले राशन किट के लिए समूहों को 4 महीने से पैसा नहीं मिला तो उन्होंने काम करना बंद कर दिया। यही हाल राज्य की 108 एंबुलेंस सेवाओं का भी है, जिन्हें कोविड मरीजों को ढोने के लिए इस्तेमाल में लाया जा रहा है।

आंगनबाड़ी बंद है। स्कूल बंद हैं। बच्चों के लिए मिलने वाली 6 जरूरी पोषण सेवाएं बंद हैं और राज्य के महिला बाल विकास विभाग की एमआईएस भी बंद है। शिवराज सरकार ने राज्य में अनलॉक-4 के तहत बाजार खोल दिए हैं। आवाजाही पर रोक हट चुकी है। बसें भी चल गई हैं, लेकिन आंगनबाड़ियों को खोलने की किसी को फिक्र नहीं। बजाय इसके, पोषाहार के रूप में बच्चों को अंडे देने के सवाल पर फिर राजनीति शुरू हो चुकी है।

भारत में पांच साल से कम उम्र के 3 में से 2 बच्चे कुपोषित हैं। बावजूद इसके, बीते 6 माह से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का एमआईएस भी बंद है। सितंबर और अक्टूबर मलेरिया और डेंगू का सीजन होता है। मलेरिया प्रभावित बच्चों के कुपोषण का शिकार होने की आशंका तीन गुना ज्यादा होती है।

लेकिन सरकार को अभी यह भी नहीं पता कि पिछले 6 महीने में देशभर में कितने बच्चे कुपोषण की बलि चढ़ गए और फिलहाल कितने बच्चे कुपोषण का शिकार होकर मौत की घड़ियां गिन रहे हैं। शहरों के बाद अब जिस तरह गांवों में कोरोना फैल रहा है, अगर इसका असर पहले ही गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों को हुआ तो गांव के गांव बच्चों की मौत के मातम में डूब जाएंगे।  

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