सुसाइड कैपिटल बन रहा है भोपाल, हर दिन दो खुदकुशी, 45 फीसदी आत्महत्याएं 40 साल से कम उम्र में
खुदकुशी करने वालों में 45 फीसदी 20 से 40 साल की उम्र के हैं, जबकि 40 से 60 साल की उम्र के 25 प्रतिशत और 20 साल से कम उम्र के 20 प्रतिशत लोग हैं, यानी खुदकुशी करने वाले लोगों में 20 साल से कम और 40 साल की उम्र का औसत 65 फीसदी है...
भोपाल। झीलों का शांत खुशनुमा शहर कहे जाने वाले भोपाल को कोरोना की नजर लग गई है। अगस्त की शुरुआत में लॉकडाउन हटने के बाद न सिर्फ शहर में कोरोना बेकाबू हो रहा है, वहीं हर दिन दो लोगों की खुदकुशी भी दर्ज हो रही है। भोपाल में बीते 6 माह में 310 लोग मौत को गले लगा चुके हैं, जबकि पिछले साल 353 लोगों ने खुदकुशी की थी।
खुदकुशी करने वालों में 45 फीसदी 20 से 40 साल की उम्र के हैं, जबकि 40 से 60 साल की उम्र के 25 प्रतिशत और 20 साल से कम उम्र के 20 प्रतिशत लोग हैं। यानी खुदकुशी करने वाले लोगों में 20 साल से कम और 40 साल की उम्र का औसत 65 फीसदी है, जो कि एक बेहद खतरनाक स्थिति को जताता है।
सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि खुदकुशी करने वाले 75 फीसदी लोगों ने ऐसा कोई कारण पीछे नहीं छोड़ा है, जिसमें उन्होंने किसी बीमारी या मानसिक आघात को आत्महत्या का कारण बताया हो।
ऐसा भी नहीं है कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आत्महत्या के मामले लंबे लॉकडाउन के कारण पैदा हुए तनाव या निराशा के कारण हो रहे हों। 25 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद शहर में जहां 31 मई तक 58 खुदकुशी के मामले दर्ज हुए, वहीं जून में 50, जुलाई में 58 और अगस्त में 59 मामले दर्ज किए गए। इस माह 8 सितंबर तक भोपाल में 18 लोग आत्महत्या कर चुके हैं।
मनोवैज्ञानिक विच्छेदन की मांग
भारत में हर आत्महत्या के मामले की सायकोलॉजिकल अटॉप्सी नहीं की जाती। यहां तक कि एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में भी मनोवैज्ञानिक विच्छेदन नहीं किया गया। सीबीआई इस पर अभी विचार कर रही है। भोपाल में आत्महत्या के मामलों में 200 फीसदी का इजाफा होने के बाद मनोवैज्ञानिकों ने इन मौतों की सायकोलॉजिकल अटॉप्सी करने की मांग उठाई है।
इन मामलों में हुई है सायकोलॉजिकल अटॉप्सी
हालांकि भारत में सायकोलॉजिकल अटॉप्सी का चलन बहुत ही कम है। इससे पहले सुनंदा पुष्कर की मौत और बुराड़ी सामूहिक आत्महत्या के मामले में ही सायकोलॉजिकल अटॉप्सी की गई थी। अगर सुशांत के मामले में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है तो भारत में यह तीसरा मामला होगा।
सोशल डिस्टेंसिंग बढ़ा रहा है हताशा
भोपाल की काउंसलिंग सायकोलॉजिस्ट रुपाली पुरोहित बताती हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के कारण कोई भी घर के बाहर अपने निकट दोस्त या संबंधी से उस तरह से मिलकर अपनी बात नहीं कह पा रहा है जो कोविड से पहले किया करता था। वीडियो कॉल से बातें तो होती हैं, लेकिन उसमें अपनेपन के अहसास के बीच खुलकर कई बातें नहीं हो पातीं।
भोपाल में युवाओं को आत्महत्या जैसा बड़ा कदम उठाने से रोकने और उनकी बातों को सुनने, समाधान निकालने के लिए हेल्पलाइन 14425 शुरू की गई है, जिसे लक्ष्य, राज्य सरकार और यूएनएफपीए मिलकर चला रहे हैं। इसके अलावा स्पंदन की भी हेल्पलाइन है, जिसमें आत्महत्या को प्रेरित व्यक्ति को हालात से उबरने में पूरी मदद की जाती है।