जज ने अपनी जूनियर महिला अधिकारी को भेजे आपत्तिजनक संदेश, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कैसे न्यायिक अधिकारी हैं आप
प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, व्हाट्सएप संदेश काफी आक्रामक और अनुचित हैं, एक न्यायाधीश के लिए जूनियर अधिकारी के साथ ऐसा आचरण स्वीकार्य नहीं है....
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 16 फरवरी को मध्यप्रदेश के एक जिला न्यायाधीश के आचरण पर तीखी टिप्पणी व्यक्त की, जिन्होंने एक कनिष्ठ अधिकारी को आपत्तिजनक और अनुचित संदेश भेजे और इस आचरण को महज 'फ्लर्ट' करार दिया।
जज द्वारा अपनी एक जूनियर महिला अफसर को व्हाट्सएप पर जो मैसेज भेजे गये उससे खफा सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में पूछा कि आप कैसे न्यायिक अधिकारी हैं, हमें समझ नहीं आ रहा है
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के एक पूर्व जिला न्यायाधीश ने एक जूनियर न्यायिक अधिकारी द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता अर्जुन गर्ग के साथ वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र श्रीवास्तव ने जिला न्यायाधीश की ओर से कनिष्ठ महिला अधिकारी को भेजे गए कई व्हाट्सएप संदेशों को पढ़ा।
श्रीवास्तव ने पीठ के समक्ष कहा, "वह एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी हैं, इसलिए एक महिला अधिकारी के साथ उनका व्यवहार अधिक उपयुक्त होना चाहिए था।" इससे सहमत होते हुए पीठ ने भी माना कि एक जूनियर अधिकारी के साथ फ्लर्ट करना किसी न्यायाधीश के लिए स्वीकार्य आचरण नहीं है।
न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और वी. रामासुब्रमण्यन के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "व्हाट्सएप संदेश काफी आक्रामक और अनुचित हैं। एक न्यायाधीश के लिए जूनियर अधिकारी के साथ ऐसा आचरण स्वीकार्य नहीं है।"
श्रीवास्तव ने पीठ के समक्ष यह भी कहा कि महिला अधिकारी एक समझौता चाहती थीं, लेकिन इस मामले की जांच कर रही हाईकोर्ट की समिति ने इसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया है कि वह महिला के साथ फ्लर्ट कर रहा था।
श्रीवास्तव ने कहा, "वह किस तरह के न्यायिक अधिकारी है? हमें तो समझ ही नहीं आ रहा।" इस स्तर पर, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह श्रीवास्तव की प्रस्तुतियों से सहमत हैं।
याचिकाकर्ता जिला जज का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता आर. बालासुब्रमण्यम ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि महिला अधिकारी ने यौन उत्पीड़न निरोधक अधिनियम के तहत अपनी शिकायत वापस ले ली है और इसलिए हाईकोर्ट द्वारा अनुशासनात्मक कार्यवाही सुनवाई योग्य नहीं है।
पीठ ने बालासुब्रमण्यम से कहा कि महिला ने बेशक शिकायत वापस ले ली है, लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या हाईकोर्ट की ओर से जांच की जानी चाहिए। बालासुब्रमण्यन ने दोहराया कि सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी ने हाईकोर्ट को बताया है कि महिला अधिकारी ने अपनी शिकायत वापस ले ली है, मगर फिर भी उनके मुवक्किल के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लिंग संवेदीकरण समिति के समक्ष यह मामला बंद हो गया, क्योंकि महिला ने समिति में भाग लेने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा, "अब हाईकोर्ट आगे बढ़ना चाहता है। विभागीय जांच में आगे बढ़ने के लिए भी वह कर्तव्य से बंधा हुआ है। क्या कोई कानून है, जो हाईकोर्ट को जांच के साथ आगे बढ़ने से रोक सकता है?"
श्रीवास्तव ने कहा, "हाईकोर्ट इस मामले को आगे बढ़ा रहा है, भले ही याचिकाकर्ता सेवा से सेवानिवृत्त हो गया हो, क्योंकि वह एक मजबूत संदेश भेजना चाहता है।" विस्तृत सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने मामले को एक हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया।