इंदौर में भी भारत बंद और किसान अध्यादेश के विरोध में प्रदर्शन का पुरजोर समर्थन किया गया
प्रदर्शनकारियों का यह भी कहना था कि अब तक किसान आत्मनिर्भर था परन्तु केंद्र सरकार उन्हें अब कॉर्पोरेट का गुलाम बनाने पर आमादा है...
जन्ज्वार, इंदौर। 250 किसान संगठनों के मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की अपील पर 25 सितम्बर को पूरे देश में किसान विरोधी बिलों को रद्द करने की मांग को लेकर हुए भारत बंदऔर प्रदर्शनों का इंदौर में भी पुरजोर समर्थन किया गया।
विभिन्न किसान संगठनों और वामपंथी समाजवादी दलों के कार्यकर्ताओं ने जहां मालवा मिल चौराहे पर करीब 1 घंटे प्रदर्शन और नारेबाजी की वही इंदौर जिले के कई गांवों में भी किसान संगठनों की ओर से विरोध प्रदर्शन ,रैली और पुतला दहन के आयोजन हुए । मालवा मिल चौराहे पर किसान संघर्ष समिति, अखिल भारतीय किसान सभा ,,भारतीय किसान सभा, किसान खेत मजदूर संगठन ,भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ,मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी इंडिया, लोकतांत्रिक जनता दल और एसयूसीआई तथा इनसे जुड़े विभिन्न संगठनों के आव्हान पर बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन में भागीदारी की। कार्यकर्ता हाथों में किसान विरोधी बिलों के खिलाफ नारे लिखी तख्तियां लिए हुए थे तथा बड़ी देर तक नारेबाजी भी की ।
प्रदर्शन का नेतृत्व सोहनलाल शिंदे ,रूद्र पाल यादव, रामस्वरूप मंत्री, कैलाश लिंबोदिया, अजय यादव ,प्रमोद नामदेव आदि ने किया ।प्रदर्शनकारियों का कहना था कि मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीनों किसान विरोधी बिलों से देश का अन्नदाता कारपोरेट के हाथों बिकने पर मजबूर होगा तथा वह अपने ही खेत में मजदूर बन जाएगा । वही स्टाक सीमा खत्म कर देने से जमाखोरों को बढ़ावा मिलेगा और लोगों को भी महंगे दाम पर जीवन आवश्यक वस्तुएं खरीदने को मजबूर होना पड़ेगा ।अर्थात यह बिल किसान और उपभोक्ता दोनों को लूटने की ही खुली छूट देंगे ।
प्रतिरोध प्रदर्शन का समापन करते हुए सोशलिस्ट पार्टी इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष रामस्वरूप मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने किसान, किसानी और गांव को बर्बाद करने,मंडी व्यवस्था समाप्त करने, न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की व्यवस्था को खत्म करने, कार्पोरेट कंपनियों को मुनाफाखोरी और जमाखोरी की छूट देने, किसानों की जमीन कंपनियों को सौंपने के उददेश्य से लॉकडाउन के समय में तीन किसान विरोधी बिल (1) आवश्यक वस्तु कानून 1955 में संशोधन बिल, (2) मंडी समिति एपीएमसी कानून (कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार संवर्धन व सुविधा बिल) (3) ठेका खेती (मूल्य आश्वासन पर बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा बिल, 2020 एवं एक प्रस्तावित नया संशोधित बिजली बिल 2020 लाकर कृषि क्षेत्र को कार्पोरेट के हवाले कर दिया है तथा आजादी के बाद किए गए भूमि सुधारों को खत्म करने का रास्ता प्रशस्त कर दिया है।
प्रदर्शन में प्रमुख रूप से एसके दुबे, कैलाश गोठानिया, सोहनलाल शिंदे, रामस्वरूप मंत्री, रूद्र पाल यादव ,कैलाश लिम्बोदिया, अरुण चौहान, अजय यादव ,सीएल सर्रावत ,भारत सिंह यादव ,जयप्रकाश गुगरी, मोहम्मद अली सिद्दीकी, रामकिशन मौर्य ,शफी शेख ,भागीरथ कछवाय, माता प्रसाद मौर्य, अंचल सक्सेना, दुर्गादास सहगल, अजीत सिंह पवार, सुमित सोलंकी ,सहित बड़ी संख्या में किसान संगठनों और वामपंथी समाजवादी दलों से जुड़े कार्यकर्ता शरीक थे ।
प्रदर्शनकारियों का यह भी कहना था कि अब तक किसान आत्मनिर्भर था परन्तु केंद्र सरकार उन्हें अब कॉर्पोरेट का गुलाम बनाने पर आमादा है। अब तक बीज, खाद, कीटनाशक पर कार्पोरेट का कब्जा था अब कृषि उपज और किसानों की जमीन पर भी कारपोरेट का कब्जा हो जाएगा।
विद्युत संशोधन बिल के माध्यम से सरकार बिजली के निजीकरण का रास्ता प्रशस्त कर रही है। जिसके बाद किसानों को बिजली पर मिलने वाली सब्सिडी समाप्त हो जाएगी । जिसके चलते किसानों को महंगी बिजली खरीदनी होगी। केंद्र सरकार ने किसानों की आमदनी दुगुनी करने की घोषणा की थी, लेकिन किसान विरोधी कानून लागू हो जाने के बाद किसानों की आमदनी आधी रह जाएगी तथा किसानों पर कर्ज और आत्महत्याएं दुगुनी हो जाना तय है ।
देश मे बेरोजगारों की संख्या 15 करोड़ पहुंच चुकी है। ऐसी हालत में 65 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के जीवकोपार्जन के साधन कृषि को बर्बाद करने से बेरोजगारी अनियंत्रित हो जाएगी।