Marital rape का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली HC के खंडित फैसले को दी गई चुनौती

Marital rape : मैरिटल रेप (Marital rape) यानी वैवाहिक दुष्कर्म (Marital rape) का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है, दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के विभाजित फैसले के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की गई है...

Update: 2022-05-17 07:39 GMT

Marital rape का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली HC के खंडित फैसले को दी गई चुनौती

Marital rape : मैरिटल रेप (Marital rape) यानी वैवाहिक दुष्कर्म (Marital rape) का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) के विभाजित फैसले के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दायर की गई है। दरअसल वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) अपराध है या नहीं, इस पर दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) की दो जजों वाली बेंच ने बंटा हुआ फैसला सुनाया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान दोनों जजों की एक राय एक मत नहीं थी। इसी के चलते दोनों जजों ने अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तावित किया था।

दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया था खंडित फैसला

बता दें कि इससे पहले दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) की दो जजों की खंडपीठ ने मैरिटल रेप (Marital rape) के अपराधीकरण को लेकर बंटा हुआ फैसला सुनाया था। बेंच में से एक जज ने अपने फैसले में मैरिटल रेप (Marital rape) को जहां अपराध माना है वहीं दूसरे जज ने इसे अपराध नहीं माना था। सुनवाई के दौरान जहां खंडपीठ की अध्यक्षता करने वाले न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया, वहीं न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है।

वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की याचिका

दरअसल याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 375(दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी थी। इस धारा के अनुसार विवाहित महिला से उसके पति द्वारा की गई यौन क्रिया को दुष्कर्म (Marital rape) नहीं माना जाएगा जब तक कि पत्नी नाबालिग न हो।

केंद्र के बार-बार समय मांगने के रवैये पर नाराजगी

बात दें कि उच्च न्यायालय ने वैवाहिक दुष्कर्म (Marital rape) को अपराध घोषित करने के मामले में पक्ष रखने के लिए बार-बार समय मांगने पर केंद्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी। अदालत ने केंद्र को समय प्रदान करने से इनकार करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ के समक्ष केंद्र ने तर्क रखा था कि उसने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस मुद्दे पर उनकी टिप्पणी के लिए पत्र भेजा है। केंद्र के अधिवक्ता ने कहा कि जब तक इनपुट प्राप्त नहीं हो जाते, तब तक कार्यवाही स्थगित कर दी जाए।

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