Marital Rape को अपराध मानने पर दिल्ली HC के जज एकमत नहीं, अब सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई
Marital Rape : दिल्ली हाई कोर्ट ने मैरिटल रेप (वैवाहिक बलात्कार) को अपराध घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर खंडित फैसला सुनाया है, यानी कि दिल्ली हाई कोर्ट के दोनों जजों के मैरिटल रेप (Marital Rape) पर अलग-अलग राय है...
Marital Rape : दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने मैरिटल रेप (वैवाहिक बलात्कार) को अपराध घोषित करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर खंडित फैसला सुनाया है। यानी कि दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के दोनों जजों के मैरिटल रेप (Marital Rape) पर अलग-अलग राय है। मैरिटल रेप (Marital Rape) सम्बन्धी याचिकाओं में दिल्ली हाईकोर्ट ने विभाजित फैसला सुनाया है। बात दें कि एक जज ने कहा कि शादीशुदा जीवन में पत्नी की मर्जी के बिना यौनिक सम्बंध बनाने को अपराध नहीं मानना संविधान के खिलाफ है, जबकि दूसरे जज ने आई पी सी की धारा 376 के इस सम्बन्धी प्रावधान को सही ठहराया है।
मैरिटल रेप पर दो जज एकराय नहीं
बात दें कि दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप (Marital Rape) को अपराध घोषित करने संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दो जजों ने अपनी अलग-अलग राय जाहिर की है। जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध बताया है। उन्होंने आईपीसी (IPC) की धारा 375 के अपवाद को असंवैधानिक बताया है। वहीं जस्टिस सी हरिशंकर इससे सहमत नहीं हैं, दोनों जजों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में मामला चले।
मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में लाने की मांग
बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट में दायर याचिका में मांग की गई थी कि शादीशुदा जीवन में अगर किसी महिला के साथ उसका पति जबरन या उसकी मर्जी के खिलाफ संबंध बनाता है तो उसको मैरिटल रेप के दायरे में लणा चाहिए।
याचिकाकर्ता ने इस मामले में अलग- अलग देशों का उदहारण दिया। साथ ही महिला की अस्मिता और उसके सम्मान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर बिना शादीशुदा महिला के साथ उनकी बिना मर्जी के संबंध स्थापित करना अपराध की श्रेणी में आता है तो आखिर शादीशुदा महिला को वो अधिकार क्यों नहीं मिल सकता।
वैवाहिक बलात्कार अपवाद को दी गई चुनौती
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 रेप के अपराध को परिभाषित करती है, जबकि इस सेक्शन में पुरानी मानसिकताओं को हटाने, सहमति के महत्व पर जोर देने और सभी प्रासंगिक सेक्सुअल एक्ट्स को कवर करने के लिए संशोधन किया गया है, फिर भी यह एक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किया गैर- सहमति वाले यौन संबंध के लिए एक अपवाद को बरकरार रखता है।
सीनियर एडवोकेट रेबेका जॉन ने न्याय मित्र (कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ) के रूप में उन्होंने बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में बलात्कार के अपराध को क्या माना जाता है। उन्होंने बताया कि महिला की सहमति 375 में मौलिक है और इसलिए हम इसे दूर नहीं कर सकते हैं। इस 'वैवाहिक बलात्कार अपवाद' को दिल्ली हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून द्वारा समान व्यवहार का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) सहित विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
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