Dehradun News Hindi। मौत के 16 साल बाद मिला इस फौजी का शव, 2005 में उत्तराखंड की इस चोटी पर फहराया था तिरंगा

Dehradun News Hindi। बर्फ से ढकी पर्वतश्रंखलाओं की लंबी कतारों को अपने में समेटे हिमालय पर्वत अपने रहस्य-रोमांच के बारे में जाना जाता रहा है। कई अनकहे किस्से-कहानियां इसके चप्पे-चप्पे पर छिपे पड़े हैं, जिनका कहा जाना अभी शेष है।

Update: 2021-09-26 17:35 GMT

Dehradun News Hindi। बर्फ से ढकी पर्वतश्रंखलाओं की लंबी कतारों को अपने में समेटे हिमालय पर्वत अपने रहस्य-रोमांच के बारे में जाना जाता रहा है। कई अनकहे किस्से-कहानियां इसके चप्पे-चप्पे पर छिपे पड़े हैं, जिनका कहा जाना अभी शेष है। ऐसा ही एक किस्सा एक फौजी की मौत के सोलह साल बाद अब नमूदार हुआ है, जब बर्फ पिघलने के बाद उसकी लाश बरामद हुई है। उत्तराखंड के जोशीमठ इलाके के हिमालय की पहाड़ियों में गाजियाबाद के फौजी अमरीश त्यागी का शव फौजी की मौत के 16 साल बाद बर्फ में दबा मिला है।

उत्तर-प्रदेश के गाजियाबाद जनपद के हिसाली गांव निवासी अमरीश त्यागी का यह शव सोलह साल पहले तब से इन पहाड़ियों की बर्फ में दबा पड़ा था जब वह भारतीय सेना में पर्वतारोही फौजी के तौर पर 23 सितंबर 2005 को सतोपंथ चोटी पर तिरंगा फहराने के बाद वापस लौटते समय खाई में गिर गए थे। इस हादसे के ठीक सोलह साल बाद अब 23 सितंबर 2021 को अमरीश का शव जोशीमठ की इस खाई की बर्फ पिघलने के बाद दबा मिला है। हालांकि बर्फ हटने और हवा के संपर्क में आने से शव सड़ना शुरु हो गया है। शव को सुरक्षित करने के साथ ही प्रशासन अमरीश के शव को उनके गांव पहुंचाने की व्यवस्था कर रहा है। अमरीश के घरवालों को भी इस बाबत खबर कर दी गयी है। एक-दो दिन में अमरीश का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव पहुंचेगा। जहां उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा।

नया नहीं है हिमालय से बरसों बाद शव मिलने का सिलसिला

हिमालय को न जानने वालों के लिए सोलह साल बाद शव मिलने की घटना भले ही विस्मयकारी और रोमांचक हो। लेकिन हिमालय को जानने वालों के लिए यह कोई अनोखी बात नहीं है। इससे पहले भी कई बार सालों पुराने शव बरामद होते रहे हैं। हिमाचल और उत्तराखंड की बर्फीली पहाड़ियों में अभी तक कि जानकारी के अनुसार 45 साल पुरानी लाश तक दबी मिली है। दरअसल हिमालय पर होने वाले हादसों के दौरान जो कि बर्फ पर से पैर फिसलने के दौरान गहरी खाई में गिरने या किसी तूफान के आने पर बर्फीली चट्टानों में दबने जैसे होते हैं, लोगों की लाश पानी और हवा की पहुंच से दूर होने के साथ-साथ ही कई-कई फुट नीचे माइनस टेम्प्रेचर में दबी ये लाशें सालों तक सुरक्षित रहती हैं। ग्लोबल वार्मिंग के असर से जैसे ही बर्फ एक सीमा से अधिक पिघलनी शुरू होती है, वैसे ही ये शव दिखने लगते हैं।

हिमालय में होने वाले ऐसे हादसों की बात करें तो 7 फरवरी 1968 को हुआ यह हादसा बरबस ही याद आता है। जब भारतीय वायुसेना का एन-12 विमान 98 जवानों को चंडीगढ़ से लेकर लद्दाख जा रहा था। हिमाचल की चंद्रप्रभा पर्वत श्रृंखला के पास मौसम खराब होने के कारण यह विमान क्रैश हो गया था। इस हादसे के बाद जहाज के सारे जवान लापता हो गए थे। 15 साल बाद 16 अगस्त 2013 को हवलदार जगमाल सिंह निवासी गांव मीरपुर, रेवाड़ी (हरियाणा) का शव हिमाचल प्रदेश के चंद्रभागा क्षेत्र में बर्फ में दबा हुआ मिला था। शव के दाएं हाथ पर बंधी सिल्वर डिश पर आर्मी नंबर से उनकी पहचान हुई थी। जिस पर 45 साल बाद 4 सितंबर 2013 को मीरपुर गांव में शहीद जगमाल सिंह का अंतिम संस्कार हुआ था।

वहीं यूपी के मैनपुरी जिले के कुरदैया गांव निवासी गयाप्रसाद 15 राजपूत बटालियन में हवलदार के पद पर तैनात थे। 1996 में वे अपने साथियों संग सियाचिन में ड्यूटी कर रहे थे। अचानक वे बर्फीली खाई में गिर गए। उन्हें खोजने के लिए चलाए गए तमाम ऑपरेशन भी बेनतीजा साबित हुए थे। इस घटना के भी अट्ठारह साल के बाद अगस्त 2014 में एक खोजी दल को उनकी लाश उत्तरी ग्लेशियर के खंडा और डोलमा पोस्ट के बीच बर्फ में दबी मिली। जबकि इस हादसे के बाद 1999 में सेना द्वारा गफलत के चलते गयाप्रसाद के परिजनों को एक पत्र भेजकर उनके पाकिस्तानी सेना के खिलाफ चलाए गए 'आपरेशन मेघदूत' में शहीद होने की जानकारी दी थी।

महाराष्ट्र के टीवी पाटिल सेना में हवलदार के पद पर तैनात थे। सियाचिन में ड्यूटी के दौरान 27 फरवरी 1993 को वह एक हिम दरार में गिर गए थे। 21 साल बाद अक्टूबर 2014 में एक पेट्रोलिंग टीम को उनका शव बर्फ में दबा मिला था। तापमान शून्य से भी नीचे होने के चलते उनका शव पूरी तरह सुरक्षित था। यहां तक की सैनिक की जेब में रखी परिवार की एक चिट्ठी और मेडिकल सर्टिफिकेट तक इतना सुरक्षित था कि उनकी पहचान तक इन्हीं दस्तावेजों से हुई थी। जिसके बाद पैतृक घर पर उनका शव लाया गया और अंतिम संस्कार किया गया था।

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