MGNREGA News: मनरेगा कानून कई विसंगतियों का शिकार, झारखंड के गढ़वा में लाखों मजदूरों का 36.89 करोड़ मजदूरी भुगतान अब तक लंबित

MGNREGA News: मनरेगा योजना की अवधारणा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार मुहैया कराने लेकर था, जो अब कई विसंगतियों का शिकार होकर अपनी अवधारणा ही खोती जा रही है।

Update: 2022-06-25 16:15 GMT

MGNREGA News: मनरेगा कानून कई विसंगतियों का शिकार, झारखंड के गढ़वा में लाखों मजदूरों का 36.89 करोड़ मजदूरी भुगतान अब तक लंबित

विशद कुमार की रिपोर्ट  

MGNREGA News: मनरेगा योजना की अवधारणा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार मुहैया कराने लेकर था, जो अब कई विसंगतियों का शिकार होकर अपनी अवधारणा ही खोती जा रही है। बताना जरूरी होगा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा / MNREGA) भारत में लागू एक रोजगार गारंटी योजना है, जिसे 7 सितंबर 2005 को विधान द्वारा अधिनियमित किया गया। यह योजना प्रत्येक वित्तीय वर्ष में किसी भी ग्रामीण परिवार के उन वयस्क सदस्यों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराती है।

नरेगा योजना को 2 अक्टूबर 2005 को पारित किया गया था। भारत में इसकी शुरुआत सबसे पहले 2 फरवरी 2006 को आंध्र प्रदेश के बांदावाली जिले के अनंतपुर नामक गाँव में हुआ था। शुरुआत में इस योजना को लगभग 200 जिलों में लागू किया गया था। बाद में इसे 1 अप्रैल 2008 को पूरे भारत में लागू कर दिया गया।

31 दिसंबर 2009 को इस योजना के नाम में परिवर्तन करके इसे महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना कर दिया गया। जबकि पहले यह राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (नरेगा) के नाम से जाना जाता थायह योजना 2 फ़रवरी 2006 को 200 जिलों में शुरू की गई, जिसे 2007-2008 में अन्य 130 जिलों में विस्तारित किया गया और 1 अप्रैल 2008 तक अंततः भारत के सभी 593 जिलों में इसे लागू कर दिया गया।

अब यह योजना कई विसंगतियों का शिकार होकर अपना अस्तित्व खोती जा रही है। जिसे हम हाल के दिनों झारखंड के गढ़वा जिला में देख सकते हैं। जहां वित्तीय वर्ष 2021-22 में अक्टूबर से मनरेगा की योजनाओं में काम कर चुके जिले के लाखों मजदूरों का 36.89 करोड़ मजदूरी भुगतान अब तक लंबित है।

बता दें कि झारखंड में मनरेगा मजदूरों की मजदूरी लंबित रहने से मनरेगा की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है। इसका असर सबसे अधिक गढ़वा जिले में साफ दिख रहा है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में अक्टूबर से मार्च तक मनरेगा की योजनाओं में काम कर चुके गढ़वा जिले के लाखों मजदूरों का 36.89 करोड़ मजदूरी भुगतान अब तक लंबित है। जो पूरे राज्य में अन्य जिलों की अपेक्षा सबसे अधिक है। ऐसे में योजनाओं में काम करने वाले मजदूरों की संख्या प्रत्येक दिन घट रही है। वहीं अधिकारी से लेकर मेठ और मजदूर एवं बिचौलिया कार्यों के प्रति रुचि नहीं नही दिखा रहे हैं।

मजदूरों के नहीं मिलने से स्थिति ऐसी है कि मनरेगा से संचालित बिरसा हरित आम बागवानी, प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण), पशु शेड, डोभा, तालाब, बांध निर्माण, भूमि समतलीकरण, मिट्टी मोरम सड़क निर्माण व मरम्मती, मेड़बन्दी, सिंचाई कूप निर्माण सहित अन्य प्रकृति की करीब 74 हजार योजना लंबित पड़ा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार जिले में 6.52 लाख पंजीकृत मनरेगा मजदूर हैं। इनमें 3.40 लाख सक्रिय मजदूरों में सक्रिय महिला मजदूरों की संख्या 1.55 लाख हैं। जो नियमित रूप से मनरेगा में काम करते हैं। लेकिन इन दिनों यह काम नही कर रहे हैं। आगे भी यदि ऐसी ही स्थिति रही तो मजदूरों के पास दूसरे राज्यों में पलायन करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नही होगा। बताया जाता है कि राज्य में कोटिवार मजदूरों की भुगतान प्रक्रिया की शुरुआत होने से यह स्थिति बनी है।

रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 में जून महीने से कोटिवार मजदूरी भुगतान होने की शुरुआत के बाद से महीनों तक मजदूरी लंबित होने के कारण योजनाओं से मजदूरों के घटने का सिलसिला शुरू हुआ। जहां एक महीने में करीब एक लाख परिवार मनरेगा में मजदूरी करते थे। तो अब प्रत्येक महीने काम करने वाले परिवारों की संख्या वर्तमान महीनों में काफी कम हो गयी।

माह - वर्ष- 2021 में स्थिति 2022 में स्थिति

  • जनवरी - 57,282 - 63,099
  • फरवरी - 56,021 - 42,515
  • मार्च - 69,906 - 36,946
  • अप्रैल - 89,640 - 27891
  • मई - 83,530 - 8731

जून - 60,101 - नौ जून तक-18

बता दें राज्य में वित्तीय वर्ष 2021-22 का जहां पूरे राज्य में 328 करोड़ रुपये मजदूरी बकाया है। वहीं सबसे अधिक गढ़वा जिले में मजदूरों का 36.89 करोड़ रुपये मजदूरी बकाया है। इसके बाद गिरिडीह में 27.84, दुमका में 20.50, पलामू में 18.77, देवघर में 18.65, हजारीबाग में 16.91, रांची में 15.87, चतरा में 15.86, साहेबगंज में 14.42, लातेहार में 14.19, बोकारो में 12.63, जामताड़ा में 13.25, सरायकेला खरसांवा व पाकुड़ में 11.49, गोड्डा में 10.13, पश्चिमी सिंहभूम में 9.97, सिमडेगा में 9.64, रामगढ़ में 9.39, गुमला में 9.04, पूर्वी सिंहभूम में 8.79, धनबाद में 7.09, लोहरदगा में 5.61, खूंटी में 5.14, कोडरमा में 4.69, करोड़ बकाया है।

रिपोर्ट के अनुसार गढ़वा जिले में मनरेगा से संचालित 74,361 योजनायें लंबित पड़ी हुई हैं। सबसे अधिक रंका में 12,042 योजनायें अब तक अधूरी पड़ी है। इसी तरह बरडीहा में 2,071, बड़गड़ में 1,099, भंडरिया में 1,255, भवनाथपुर में 3,590, विशुनपुरा में 1,512, चिनिया में 2,972, डंडा में 940, डंडई में 4,212, धुरकी में 4,822, गढ़वा में 4,855, कांडी में 4,035, केतार में 3,139, खरौंधी में 5,389, मझिआंव में 1,954, मेराल में 4335, नगर उंटारी में 5324, रमकंडा में 4,486, रमना में 3,239 व सगमा में 3,092 योजनायें लंबित पड़ी हुई हैं।

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