Mirzapur News : भारत के सबसे ज्यादा बड़े चमगादड़ की प्रजाति को बचाने के लिए आगे आयी युवाओं की शोध टीम

Mirzapur News : यह स्थान उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर में 'भारतीय उड़न लोमड़' का यह एकमात्र निवास स्थान है,अगर इन पेड़ों को काटा जाता है, तो हम मिर्जापुर में इंडियन फ्लाइंग फॉक्स का अंतिम निवास स्थान खो देंगे और शायद भविष्य में यहा से विलुप्त हो जाएंगे......

Update: 2022-03-21 11:48 GMT

(भारत के सबसे ज्यादा बड़े चमगादड़ की प्रजाति को बचाने के लिए आगे आयी युवाओं की शोध टीम)

संतोष देव गिरी की रिपोर्ट

Mirzapur News। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर (Mirzapur) जनपद में स्थित भारत के सबसे ज्यादा बड़े चमगादड़ समूह की प्रजाति को बचाने के लिए इन दिनों युवा शोधकर्ताओं की टीम आगे आकर खड़े होने के साथ ही साथ शासन प्रशासन से इनके संरक्षण एवं बचाव के लिए अभियान छेड़ दिया है। खास बात यह है कि यह कोई मामूली चमगादड़ (Bat) नहीं है बल्कि 'फलाहारी' किस्म के चमगादड़ हैं। जबकि आमतौर पर अभी तक देखा और सुना गया है कि चमगादड़ मांसाहारी होते हैं, लेकिन मिर्जापुर में पाए गए इस अद्भुत किस्म के चमगादड़ फलाहारी किस्म के हैं।

मिर्जापुर जनपद में एक ऐसा भी स्थान है जहां भारतीय उड़न लोमड़/Indian Flying Fox (वैज्ञानिक नाम- Pteropus medius) का बसेरा है। यह मुख्यत: फलाहारी होते हैं जिसके वजह से इसको 'ग्रेटर इंडिया फ्रूट बैट' भी कहते हैं, जो भारत में पाए जाने वाले सबसे बड़े चमगादड़ की प्रजाति है एवं दुनिया के सबसे बड़े चमगादड़ों में से एक है। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जनपद, की मड़िहान तहसील अंतर्गत आने वाले गांव नेवरहिया के पास लालगंज-कलवारी रोड पर प्रस्तावित सड़क चौड़ीकरण परियोजना के कारण काटे जाने वाले पेड़ों में से कुल 13 पेड़ों पर इस प्रजाति का 50 वर्ष से भी पुराना निवास है जो अब गंभीर खतरे में हैं। यह मिर्जापुर जिले में भारतीय उड़न लोमड़ का एकमात्र पर्यावास माना जा रहा है।


50 वर्ष से अधिक बताई जा रही है उड़न लोमड़ की बस्ती की उम्र

इस संबंध में विंध्य पारिस्थितिकी और प्राकृतिक इतिहास फाउंडेशन की शोध टीम ने प्रकृतिवादी एवं पटेहरा निवासी कार्तिक सिंह के नेतृत्व में जमीनी स्थिति की समीक्षा कर काफी जानकारी एकत्रित की हैं जिनमें मौजूदा सड़क के किनारे ऐसे 13 यूकेलिप्टस के पेड़ हैं जो 'भारतीय उड़न लोमड़' का पर्यावास हैं। ग्रामीणों द्वारा इस उड़न लोमड़ की बस्ती की उम्र 50 वर्ष से अधिक बताई जा रही है। संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा की गई गणना के अनुसार इन पेड़ों पर कुल 287 'भारतीय उड़न लोमड़' की मौजूदगी पाई गई हैं। जो पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से काफी उपयोगी बताए जा रहे हैं जिनका संरक्षण न केवल नितांत आवश्यक है बल्कि इन्हें सहेजने की भी आवश्यकता बताई गई है।

मिर्जापुर में 'भारतीय उड़न लोमड़' का यह एकमात्र निवास स्थान है

जानकारी के अनुसार, यह स्थान उत्तर प्रदेश के जिला मिर्जापुर में 'भारतीय उड़न लोमड़' का यह एकमात्र निवास स्थान है। अगर इन पेड़ों को काटा जाता है, तो हम मिर्जापुर में इंडियन फ्लाइंग फॉक्स का अंतिम निवास स्थान खो देंगे और शायद भविष्य में यहा से विलुप्त हो जाएंगे। इस संदर्भ में शोध टीम के सदस्य बताते हैं कि 'सड़क चौड़ीकरण परियोजना सड़क के दोनों किनारों पर कृषि क्षेत्रों से पुन: संरेखित करके पहचाने गए पेड़ों को काटे बिना भी की जा सकती है।' टीम का तर्क है कि

'मिर्जापुर में भारतीय उड़न लोमड़ के एकमात्र निवास स्थान-13 यूकेलिप्टस के पेड़ों को काटने से छूट देने पर विचार करना जरूरी है। सड़क के दोनों ओर खेत हैं जिसमें से एक अतिरिक्त सड़क आसानी से बनाई जा सकती है।'


वहीं दूसरी ओर विंध्य बचाओ के संस्थापक एवं मिर्जापुर जनपद के वरिष्ठ पत्रकार शिव कुमार उपाध्याय का कहना है, 'मिर्ज़ापुर में भारतीय उड़न लोमड़ का यह एकमात्र पर्यावास है। अगर समय रहते जिला प्रशासन ने कारवाई नहीं की तो यह प्रजाति जिले से विलुप्त हो जाएंगे।'

विंध्य बचाओ के संरक्षणकर्ता कार्तिक सिंह ने बताया कि 'सड़क के दोनों तरफ खेत है, जहां से एक अतिरिक्त सड़क निकाली जा सकती है। इससे सड़क चौड़ीकरण के साथ साथ वो 13 पेड़ बच जाएंगे जिस पर इन चमगादारों का निवास है।'

इस विषय पर विंध्य बचाओ की ओर से जिलाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी एवं मुख अभियंता-लोक निर्माण विभाग को स्थिति का विवरण देते हुए अनुरोध पत्र दिया गया है। 

विंध्य क्षेत्र मेंं जल-जंगल, जीवोंं के संरक्षण की दिशा में संघर्षरत है विंध्य बचाओ टीम

यह केवल पहला अवसर नहीं है जब अद्भुत किस्म के चमगादड़ो के प्रजाति के संरक्षण एवं बचाव के लिए विंध्य बचाओ अभियान की टीम आगे आई हो, इसके पहले भी पिछले कई वर्षों से अनवरत विंध्य बचाओ अभियान के युवाओं की टोली विंध्य क्षेत्र के जल-जंगल, वन्यजीवों को सहेजने की दिशा में अनवरत लगे होने के साथ ही संघर्षरत भी है। यही कारण रहा है कि यह टीम ना केवल वन माफियाओं से लेकर भू-माफियाओं के आंखों की किरकिरी बन गई थी, बल्कि इस टीम के लोगों को हतोत्साहित करने के लिए झूठे मुकदमे में भी फंसाने का कुचक्र रचा जा चुका है। बावजूद इसके टीम के सदस्यों का हौसला आज भी बुलंद बना हुआ है।

टीम के सदस्यों का स्पष्ट कहना है कि वह किसी व्यक्ति, विशेष के लिए नहीं बल्कि समूचे समाज के लिए, पर्यावरण संरक्षण के लिए, जल-जीव के संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं ऐसे में उन्हें इन परेशानियों से दो चार होना स्वभाविक है।

विंध्य बचाओ शोधकर्ताओं के कैमरे जंगल से हो चुके हैं गायब

विंध्य क्षेत्र के मिर्जापुर और सोनभद्र के जंगलों में दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण एवं उनकी गणना के लिए निरंतर काम कर रहे विंध्य बचाओ अभियान के शोधकर्ताओं की टीम द्वारा कुछ वर्ष पूर्व अहरौरा और सुकृत के जंगलों में गुप्त कैमरे लगाए गए थे। जिनके जरिए वह वन्यजीवों की गणना करने के साथ ही साथ उनके संरक्षण की दिशा में कार्य करने की सोच रखे थे, लेकिन इन कैमरों पर वन माफियाओं इन नजर पड़ गई जिन्हें चुरा लिया गया था जिसका आज तक पता नहीं चल पाया है। इन कैमरों के गायब होने से वन विभाग कि सुरक्षा व सतर्कता पर भी सवाल खड़े होते हैं। हालांकि इतने के बाद भी विंध्य बचाओ अभियान की टीम निराश और हताश नहीं हुई है वह निरंतर अपने अभियान में जुटी हुई है।

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