BREAKING : कृषि कानून वापस नहीं लेगी मोदी सरकार, 15 जनवरी को दी वार्ता की अगली तारीख
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि तीनों कानूनों पर किसान यूनियन के साथ चर्चा हुई, बैठक में कोई निर्णय नहीं हो सकता, 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे बैठक होगी, हमने किसानों को विकल्प देने को कहा है....
नई दिल्ली। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान करीब डेढ़ महीने से आंदोलनरत हैं। सरकार के साथ नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों की आठ दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन अब तक इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका है। आज फिर सरकार और किसानों के बीच एक बार फिर बैठक हुई लेकिन सरकार की ओर से कोई अहम फैसला नहीं लिया गया है। सरकार ने किसान नेताओं को बातचीत के लिए अगली तारीख 15 जनवरी दी है।
बैठक के बाद अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हनान मोल्लाह ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि एक गर्म चर्चा थी, हमने कहा कि हम कानूनों को निरस्त करने के अलावा कुछ नहीं चाहते हैं। हम किसी भी अदालत में नहीं जाएंगे, यह या तो किया जाएगा या हम लड़ना जारी रखेंगे। 26 जनवरी को हमारी परेड योजना के अनुसार होगी।
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक किसान नेता हन्नान मोल्लाह ने कहा किसान मौत से लड़ने के लिए तैयार हैं, कोई विकल्प नहीं है। किसान नेता जोगिंदर सिंह ने कहा कि सरकार हमारी ताकत का परीक्षण ले रही है, हम झुकेंगे नहीं, लगता है हम लोहड़ी, बैसाखी त्योहार यहाँ बिताएंगे।
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा कि तीनों कानूनों पर किसान यूनियन के साथ चर्चा हुई। बैठक में कोई निर्णय नहीं हो सकता। 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे बैठक होगी। हमने किसानों को वैकल्पिक प्रस्ताव देने को कहा है। बहुत से लोग कानून के पक्ष में हैं। 15 जनवरी को समाधान की उम्मीद है।
अखिल भारतीय किसान सभा ने ट्वीट्स में क्या कहा-
- कृषि अधिनियमों को निरस्त करने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा मजबूत हो रहा है, रेवाड़ी में गंगा की सीमा में एक और विरोध स्थल खुल गया है, जबकि मानेसर का विरोध लगातार मजबूत हो रहा है।
- यह आंदोलन न केवल लोगों की एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बना रहा है। स्वार्थ की सेवा के कॉर्पोरेट संस्कृति के विपरीत गुरुद्वारा सेवा संस्कृति से लिया गया संदेश पड़ोसी के लिए बलिदान और गहन विचार में से एक है।
- खेती करने वाले लोगों के बीच व्यापक, गहरी एकता, पानी के विभाजन पर क्षेत्रीय असंतोषों को बुझाने के प्रयासों को समाप्त कर देगी और एक ऐसा वातावरण बनाएगी जहां जल संसाधन कॉर्पोरेट लूट से मुक्त हो जाते हैं और खेती और लोगों के विकास के लिए अधिक कुशलता से उपयोग किए जाते हैं।
- यह केवल सरकारी खरीद और पीडीएस नहीं है, इस साल पहले से ही मोदी सरकार ने गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, जौ और अन्य की आपूर्ति को मुक्त करने का फैसला किया है। गरीब आदमी का खाना अमीर आदमी के ईंधन के रूप में काम करेगा।
किसान सरकार के सामने अपनी चार प्रमुख मांगों लेकर डटे हुए हैं। किसानों की चार मांगे निम्नवत हैं-
- तीन कृषि कानूनों में संशोधन नहीं, इन्हें रद्द करने पर चर्चा हो।
- राष्ट्रीय किसान आयोग के सुझाए एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान पर चर्चा हो।
- एनसीआर व आसपास के क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता के प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश 2020 में ऐसे संशोधन जिनमें किसानों पर दंड के प्रावधान हैं उन पर चर्चा हो।
- किसानों के हितों की रक्षा के लिए 'विद्युत संशोधन विधेयक 2020' के मसौदे में जरूरी बदलाव पर चर्चा हो।