143 साल पुराने पुल का पुनर्निर्माण कर दिया 12 लाख में, 2 करोड़ के ठेके का 94 परसेंट खा गयी ओरेवा कंपनी : गुजरात मॉडल का घिनौना और भयावह सच

ओरेवा कंपनी ने मोरबी पुल के नवीनीकरण के लिए आवंटिक कुल बजट का 6% ही खर्च किया और बाकी पैसा डकार गई, सोशल मीडिया पर तमाम लोग इसे भाजपा को मिले चुनावी चंदे से भी जोड़ रहे हैं...

Update: 2022-11-06 13:46 GMT

मोरबी हादसे के बाद प्रधानमंत्री मोदी की ओरेवा कंपनी के मालिक जयसुख पटेल के पिता ओधव पटेल के साथ यह तस्वीर सोशल मीडिया पर हुई वायरल

Morbi bridge collapse SCAM : मोरबी ब्रिज हादसे में पांचवें दिन गुजरात सरकार ने स्थानीय नगर पालिका के चीफ ऑफिसर संदीप सिंह झाला को जहां सस्पेंड किया तो वहीं घटना के बाद गार्ड और मजदूर स्तर के कुछ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, लेकिन पुल का रिनोवेशन करने वाली कम्पनी के मैनेजर द्वारा पुल टूटने को एक्ट ऑफ़ गॉड बताकर मृतकों की गरिमा का मजाक उड़ाने वाली कम्पनी के मालिकाल लोग किसी भी कार्यवाही से अब तक अछूते हैं।

लगभग 150 लोगों की मौत के बाद पूरे देश को हिलाकर रख देने इस हादसे में जहां अभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है तो लोगों का एक सवाल यह भी सामने आ रहा है कि अगर दिल्ली के उपहार कांड के लिए अंसल ब्रदर्स जेल जा सकते हैं तो जयसुख पटेल पर अब कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? हालांकि यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब चुनावी बेला में झूम रही गुजरात सरकार को आने वाले दिनों में देना पड़ सकता है। ऐसी कोई वजह है भी नहीं कि विधानसभा के चुनाव में यह सवाल जोर-शोर से न उठे।

राज्य सरकार के शहरी विकास विभाग ने मोरबी नगर पालिका के जिन चीफ ऑफिसर संदीप सिंह झाला को शनिवार को संस्पेंड किया है, उन्होंने इसी साल 7 मार्च को अजंता मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के ओरेवा ग्रुप के साथ झूलते ब्रिज की मरम्मत की जिम्मेदारी देने के लिए 300 रुपये के स्टांप पेपर पर करार किया गया था।

इसके तहत ओरेवा को अगले 15 साल यानी की 2037 तक के पुल सौंपा गया था। जांच में सामने आया है कि 2008 से इस पुल का संचालन कर रहे ओरेवा ग्रुप का कांट्रैक्ट 2018 में खत्म हो गया था। इसके बाद कंपनी के प्रमुख जयसुख पटेल ने खुद ही रिन्यूअल के लिए नगरपालिका को अर्जी थी। इसके बाद 2020 और 2021 में ब्रिज कोविड के चलते बंद रहा था।

7 मार्च 2022 को हुए इस करार को नगर पालिका के बोर्ड ने पास नहीं किया था, जबकि यह करार जब हुआ था तब यह शर्त थी कि मोरबी की नगर पालिका की सामान्य सभा में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा। नगर पालिका और ओरेवा ग्रुप के बीच करार होने के बाद 29 मार्च को नगर पालिका की सामान्य सभा की बैठक हुई। इसमें बजट पास करने की कार्रवाई की गई, लेकिन मरम्मत और अगले 15 सालों के लिए फिर ओरेवा ग्रुप को झूलता पुल देने की प्रस्ताव सदन में नहीं रखा गया है। गुजरात म्युनिसिपलिटी एक्ट के अनुसार इस तरह के करार को बहुमत के साथ बोर्ड की मंजूरी जरूरी है, लेकिन मोरबी ब्रिज के मामले में ऐसा नहीं हुआ।

पुल टूटने के बाद चल रही जांच में जहां बड़े पैमाने पर खामियां नजर आ रहीं हैं तो यह भी साफ दिख रहा है कि जिस करार में यह तय हुआ था कि ओरेवा ग्रुप 142 साल पुराने ब्रिज को रेनोवेट कराने का पूरा खर्च उठाएगा। यह काम आठ से 12 महीने में पूरा कर लिया जाएगा। ओवरक्राउडिंग को रोकने के लिए टिकट सिस्टम भी अमल में लाया जाएगा, इन सभी शर्तों और नियमों की अनदेखी करते हुए 26 अक्टूबर को खोला गया यह ब्रिज 30 अक्टूबर की शाम को ही हादसे का शिकार हो गया।

12 लाख रुपये ही किए खर्च

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार गुजरात के मोरबी में हुए केबल पुल हादसे के मामले में एक चौंकाने वाली बात यह सामने आई है, जो इस पूरे काले धंधे की बखिया उधेड़ने को काफी है। ओरेवा समूह ने 143 साल पुराने पुल के रेनोवेशन में महज 12 लाख रुपये ही खर्च किये, जबकि इसके लिए 2 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इस तरह देखें तो कंपनी ने नवीनीकरण में कुल बजट का 6% ही खर्च किया और बाकी पैसा डकार गई। सोशल मीडिया पर तमाम लोग इसे भाजपा को मिले चुनावी चंदे से भी जोड़ रहे हैं।

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