Narendra Giri Case: फर्जी हैं नरेंद्र गिरि की तीनों वसीयत, आनंद और बलबीर में कोई नहीं उत्तराधिकारी, गद्दी के लिए हो सकता है संघर्ष

Narendra Giri Case: अखाड़ा परिषद और मठ दोनों ही बलबीर गिरि को महंत मानने और महंत की 'आत्महत्या' को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर CBI अपनी जांच में पाती है कि महंत ने वाकई सुसाइड किया है...

Update: 2021-09-29 13:18 GMT

(फर्जी हैं नरेंद्र गिरी की तीनो वसीयतें)

Narendra Giri Death Case (जनज्वार) : यूपी में प्रयागराज के बाघम्बरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि मौत मामले (Narendra Giri Death Case) में रोज-ब-रोज एक नई बात निकलकर सामने आ रही है। कभी उनका सुसाइड लेटर, तो कभी लेटर का वीडियो वर्जन। इन सबके साथ तीन वसीयतें भी सामने आईं, लेकिन अब इन वसीयतों के वजूद पर निरंजनी अखाड़े ने सवाल खड़े कर दिए हैं। मठ एवं अखाड़े के एक वरिष्ठ संत और पदाधिकारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि ये तीनों वसीयत मठ की परंपरा का उल्लंघन करके लिखवाई गई हैं। उन्होंने वसीयत बनाने की प्रक्रिया पर प्रमाण के साथ सवाल खड़े किए।

मठ के वरिष्ठ संत कहते हैं, 'इस मठ की परंपरा है की वसीयत में मठ के कुछ संतों को गवाह के तौर में शामिल किया जाए। उत्तराधिकारी को चुनते वक्त मठ के वरिष्ठ संतों और पदाधिकारियों की भी सलाह ली जाए। मठ में अब तक सभी महंतों ने इसी प्रक्रिया के तहत अपने उत्तराधिकारी चुने और वसीयतें बनवाईं, लेकिन फिलहाल जो वसीयतें सामने आईं हैं, वे सभी इस मठ के नियम का उल्लंघन करके बनाई गई हैं।' वे बताते हैं, 'इन वसीयतों में दर्ज उत्तराधिकारी को किसी भी हालत में मठ स्वीकार नहीं करेगा।'

दरअसल, महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद जब उनका सुसाइड नोट (Suicide Note) सामने आया, तब पता चला कि उन्होंने तीन बार अपनी वसीयत बदली। आखिरी बार जून 2020 में उन्होंने अपने शिष्य बलबीर गिरि के नाम वसीयत की। यह खबर मीडिया के लिए जितनी नई थी, लगभग मठ के लिए भी उतनी ही नई थी।

वहीं, मठ के दूसरे संतों और अखाड़ा परिषद के लोगों ने इस पर ऐतराज जताया। उन्होंने कहा, पहले सुसाइड का सच सामने आए, उसके बाद उत्तराधिकारी को गद्दी सौंपी जाएगी। दरअसल, नरेंद्र गिरि बाघम्बरी मठ के महंत होने के साथ ही अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष भी थे। यह मठ निरंजनी अखाड़े के तहत आता है।

मठ से लेकर अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों ने महंत की मौत के तुरंत बाद ही बलबीर गिरि को मठ की सत्ता सौंपने की जगह मौत के रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए न केवल अखाड़े के स्तर पर जांच शुरू कर दी थी, बल्कि देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी से पड़ताल की मांग भी की थी। दैनिक भास्कर से जानकारी साझा करते हुए वरिष्ठ पदाधिकारी कहते हैं, 'हमारे पास मौजूदा वसीयतों को फर्जी प्रमाणित करने के लिए मठ के डॉक्युमेंट्स हैं। हम समय आने पर इन कागजों को सबके सामने लाएंगे।'

अब तक दो बातें साफ हो चुकी हैं, अखाड़ा परिषद और मठ दोनों ही बलबीर गिरि को महंत मानने और महंत की 'आत्महत्या' को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर CBI अपनी जांच में पाती है कि महंत ने वाकई सुसाइड किया है और बलबीर गिरि किसी भी एंगल से इसमें शामिल नहीं हैं तो क्या मठ महंत की तीसरी वसीयत को अमल में लाएगा? जवाब है नहीं, लेकिन ऐसा क्यों? इसका जवाब मठ की प्राचीन परंपरा और नियमों को खंगालने पर मिलेगा।

निरंजनी अखाड़े के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि अगर महंत ने वाकई ये तीनों वसीयतें की हैं तो उन्होंने मठ की परंपरा का 'तिरस्कार' किया है। वे कहते हैं, 'अब तक जितने भी महंत हुए, उन्होंने अपने उत्तराधिकारी को मठ की प्राचीन परंपरा के हिसाब से चुना। मठ की परंपरा या इसे मठ का कानून भी कहें तो गलत नहीं होगा।

इसके मुताबिक सत्तासीन महंत अपने उत्तराधिकारी को चुनने का अधिकार तो रखता है, लेकिन इसमें मठ के अन्य जिम्मेदार संतों और पदाधिकारियों का मशविरा भी शामिल होता है। वसीयत में बाकायदा मशविरा देने वाले ये लोग बतौर गवाह दर्ज होते हैं, लेकिन सामने आ रही तीनों में से किसी भी वसीयत में महंत ने किसी से कोई मशविरा नहीं किया। गवाह के तौर पर मठ का कोई व्यक्ति इन तीनों वसीयतों में शामिल नहीं है।'

अब जबकि मठ और अखाड़े के पदाधिकारी इस वसीयत को परंपरा के खिलाफ मान रहे हैं तो विवाद बढ़ना तय है। मठ के सेवादार नाम न बताने की शर्त पर दैनिक भास्कर से बातचीत में दबे मुंह इस बात को स्वीकारते हैं कि यहां के पदाधिकारियों को डर है कि बलबीर अगर महंत बने तो सत्ता की डोर उनके आसपास के लोगों के हाथ में होगी। मठ ऐसे युवाओं के जमावड़े का महज अड्डा भर रह जाएगा जिन्हें धन और मठ के यश को अपने खाते में करने से मतलब होगा। मठ भ्रष्ट होने की राह पर जा सकता है।

बलबीर की जगह आनंद गिरी की योग्यता पर मठ के ज्यादातर पदाधिकारियों को भरोसा है। जब युवाओं के जमावड़े का जिक्र होता है तो सेवादार पत्र में शामिल अभय द्विवेदी, अभिषेक, सुमित तिवारी और साथ में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से प्राचीन इतिहास में PhD करने वाले निर्भय द्विवेदी की तरफ इशारा करते हैं। निर्भय और अभय दोनों भाई हैं।

अभय महंत जी के शिष्य हैं और अब निर्भय बलबीर के बेहद करीबी माने जाते हैं। लेटर में अभय द्विवेदी, अभिषेक और सुमित तिवारी के नामों का भी जिक्र किया गया है। फिलहाल अभी पत्र की प्रमाणिकता साबित होनी है। लिहाजा बलबीर गिरि की जगह किसी और को सत्ता सौंपी गई तो मठ के भीतर सत्ता संघर्ष साफ दिखेगा।

Tags:    

Similar News